विमान दुर्घटना का एक विरल गवाह
तब द्वितीय विश्व युद्ध चरम पर था। विध्वंस की दर्दनाक खबरों से अखबार सने रहते थे। हवाई जहाजों का इस्तेमाल सफर के लिए कम और युद्ध के लिए ज्यादा हो रहा था। कनाडा में भी अक्सर आसमान से यान तेजी से गुजरते थे…

तब द्वितीय विश्व युद्ध चरम पर था। विध्वंस की दर्दनाक खबरों से अखबार सने रहते थे। हवाई जहाजों का इस्तेमाल सफर के लिए कम और युद्ध के लिए ज्यादा हो रहा था। कनाडा में भी अक्सर आसमान से यान तेजी से गुजरते थे और कोलाहल गूंज उठता था। एक दिन ऐसा ही कोलाहल गुजर रहा था, पर तभी बहुत तेज धमाके के साथ सेना के दो विमान टकरा गए थे, उनका मलबा जमीन पर आ गिरा था। फिर क्या था, देखने वालों का तमाशा लग गया। जिसे देखो, वही देखने दौड़ा जा रहा था।
पास ही चल रहे स्कूल में एक बच्चे का मन भी मचल उठा। पता नहीं, पास से विमान कैसा दिखता है और उसमें भी आपस में टकराए विमान कैसे दिखते हैं? वह आठ वर्षीय बालक खुद को रोक न सका, जैसे ही स्कूल में दूसरी घंटी बजी, उसे मौका मिल गया, वह अपने एक साथी के साथ चुपचाप कक्षा से निकल भागा। दोनों बच्चे ऐसे दौड़े, मानो उड़कर पहुंच जाना चाहते हों। यह उम्र ही ऐसी होती है, मन जहाज से भी तेज उड़ता है। कुछ ही देर में दोनों बच्चे दुर्घटना वाली जगह पर पहुंच गए थे। दुर्गंध का आलम था। विमान के टुकड़े दूर-दूर तक फैले थे और कुछ अधजले हिस्से सुलग रहे थे। वह बालक हादसे के मंजर को देर तक निहारता रहा। दिलो-दिमाग में सवाल उमड़ रहे थे, पर सबसे बड़ा सवाल यही था कि विमान आखिर आपस में क्यों टकरा गए? क्या उन्हें आपस में टकराने से रोकने के प्रबंध नहीं थे?
वहां जमा लोगों की बातों को भी वह बालक ध्यान से सुन रहा था, पर लोगों के बीच चर्चा सामान्य किस्म की थी। लोग बस यही सुनने-सुनाने में लगे थे कि किसने क्या देखा, कैसे देखा? कोई तो बस यही बताने में लगा था कि दुर्घटना के समय वह क्या कर रहा था? बहरहाल, लोगों के आम सवालों से अलग उस बालक को सिर्फ यही खास सवाल मथ रहा था कि विमानों की ऐसी दुर्घटना को कैसे रोका जा सकता है? इसी सवाल से परेशान वह स्कूल पहुंचा था। तीसरी घंटी बजी ही थी और वह धीरे से कक्षा में घुस रहा था, पर शिक्षक ने पकड़ लिया। शिक्षक ने डांटते हुए कहा कि स्कूल से ऐसे भागने की वजह से तुम्हें दंड मिलेगा। बालक ने कहा, सर, आप दंड देंगे, तो दंड मैं कुछ दिन बाद भूल जाऊंगा, पर विमान दुर्घटना हमेशा याद रहेगी।
शिक्षक समझदार थे और शायद उनके भी मन में इच्छा थी कि काश, कक्षा लेने का झमेला न होता, तो वह भी स्कूल से भागकर दुर्घटना को करीब से देख आते। ऐसे में, चतुर शिक्षक ने बालक को दंड सुनाते हुए कहा, तुम्हारे लिए दंड यही है कि जो तुम वहां देखकर आए हो, उसे कागज पर लिखकर दिखाओ।
बालक ने जो देखा था, उसे खूब मन लगाकर लिख डाला। हादसे की दास्तान लिखते हुए भी उसे यही सवाल मथता रहा कि क्या उन्हें टकराने या दुर्घटना से रोका जा सकता था? पहले देखना और उसके बाद उसे लिखना, दोनों ही दिलो-दिमाग में बस गए। मन ही मन में उसने ठान लिया कि वह ऐसा यंत्र विकसित करेगा, जिससे विमान दुर्घटनाओं को रोका जा सके।
अपने सपने के अनुरूप उसने बड़े होकर इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल की और एक विमानन कंपनी के साथ अपने करियर की शुरुआत की। कुछ ही वर्षों में विमानन उद्योग में उनकी पहचान बन गई। लोग जानने लगे कि सी डोनाल्ड बेटमैन नाम के एक इंजीनियर हैं, जिनका मकसद ही विमानन क्षेत्र को सुरक्षित बनाना है। फ्लाइट सेफ्टी के अनेक यंत्र और उपाय वह लगातार विकसित करते चले गए। उनकी सबसे महत्वपूर्ण कामयाबी 1960 के दशक के अंत में मूल ग्राउंड प्रॉक्सिमिटी वार्निंग सिस्टम (जीपीडब्ल्यूएस) के आविष्कार के साथ दुनिया के सामने आई। यह तकनीक पायलट को किसी सामने आने वाली चीज से टकराने से पहले ही सचेत कर देती है और बचने-संभलने का मौका देती है।
विमान क्षेत्र प्रणाली, हेड-अप डिस्प्ले, गति नियंत्रण, स्टॉल चेतावनी प्रणाली, स्वचालित विमान उड़ान नियंत्रण प्रणाली और वजन-संतुलन प्रणाली से संबंधित 40 से अधिक अमेरिकी व 80 विदेशी पेटेंट के मालिक बेटमैन को सुरक्षित विमान सेवा का सबसे ज्यादा श्रेय दिया जाता है। बेटमैन किसी भी आविष्कार के बाद रुके नहीं, आविष्कार की गुणवत्ता सुधारने में लगे रहे।
दुनिया में कहीं भी कोई विमान दुर्घटना होती थी, तो बेटमैन (1932-2023) बारीक से बारीक सूचनाएं दर्ज करते थे और समाधान सोचते थे। विमानों की दुनिया में सर्वाधिक लोगों की जान बचाने का श्रेय वैज्ञानिक बेटमैन को दिया जाता है। आज दुनिया में कहीं कोई दुर्घटना होती है, तो अनायास बेटमैन याद आते हैं और लगता है कि वह होते, तो दुर्घटना का गहराई से अध्ययन करके कोई न कोई बचाव यंत्र जरूर बनाते।
प्रस्तुति : ज्ञानेश उपाध्याय
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