छाया पकड़ने की कोशिश
दुनिया में इतने ज्यादा मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारे और तरह-तरह के प्रार्थनाघर हैं, लोगों की लंबी-लंबी कतारें उनमें लगी हुई हैं, करोड़ों का कारोबार चलता है, फिर भी दुनिया परमात्मा की उपस्थिति से रिक्त मालूम होती है। एक आध्यात्मिक सूनापन…

दुनिया में इतने ज्यादा मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारे और तरह-तरह के प्रार्थनाघर हैं, लोगों की लंबी-लंबी कतारें उनमें लगी हुई हैं, करोड़ों का कारोबार चलता है, फिर भी दुनिया परमात्मा की उपस्थिति से रिक्त मालूम होती है। एक आध्यात्मिक सूनापन लगता है, कोई सुकून नहीं दिखाई देता। इतनी हिंसा, इतने उपद्रव क्या भगवत्ता का प्रमाण देते हैं?
ओशो का निदान है कि असली परमात्मा से हमारा कोई संबंध नहीं है, हमने उसकी अनगिनत छाया बना ली हैं। तरह-तरह की मूर्तियां बनाकर हम अपनी सांत्वना कर लेते हैं कि यही परमात्मा है। लेकिन ये छाया हैं, इनका मूल जो है, वह तो चेतना है, उसे पकड़ा नहीं जा सकता। हमने प्रार्थना को पहले रख लिया है और परमात्मा को पीछे। प्रार्थना यानी मांग। हमने छाया को पहले रख लिया है और मूल को पीछे। छाया को पकड़ने चले हैं और मूल पकड़ में आता नहीं।
एक कहानी है। सुबह की धूप में घर के आंगन में एक बच्चा खेल रहा था और अपनी छाया को पकड़ने की कोशिश में जुटा था। वह अपनी छाया पर झपट्टा मारता, मगर छाया पकड़ में नहीं आती, तो रोता-चिल्लाता और फिर से झपट्टा मारता। उसकी मां उसे समझाए जा रही थी कि बेटा, छाया पकड़ में नहीं आती! मगर वह मानता ही नहीं था। छाया सामने दिखाई पड़ रही, तो पकड़ में क्यों नहीं आएगी? यह ताे रही हाथ भर की दूरी पर। तो वह फिर उसकी ओर सरकता, फिर पकड़ने की कोशिश करता, लेकिन वह जैसे ही साया की ओर सरकता, छाया भी आगे सरक जाती।
द्वार पर एक फकीर आया। वह बच्चे की चेष्टा देखकर हंसने लगा। उसने उसकी मां से कहा, क्या मैं अंदर आ सकता हूं? मैं समझा सकता हूं इस बच्चे को। मां थक गई थी। उसने कहा, जरूर आइए, सुबह से मुझे परेशान किए हुए है, काम भी नहीं करने देता। छाया पकड़ना चाहता है! छाया भी कहीं पकड़ी जाती है? फकीर ने कहा, पकड़ने का ढंग होता है। उसने बच्चे का हाथ लिया और उसके ही सिर पर रख दिया। तुरंत उसकी छाया बदल गई। इधर बच्चे का हाथ सिर पर गया, उधर छाया भी पकड़ में आ गई। बच्चा खिलखिलाने लगा।
अपने को पकड़ने से छाया पकड़ में आ गई। मूल को पकड़ा, तो छाया पकड़ में आ गई। यह गहरा सूत्र है उन सबके लिए, जो बाहर खोज रहे हैं। बाहर लोग जो खोज रहे हैं, वे सब छाया हैं। ईश्वर नाम का कोई व्यक्ति कभी नहीं मिलेगा। ईश्वर आपके ही निर-अहंकार भाव-दशा का नाम है! वह कोई व्यक्ति नहीं, वह कोई आकाश में स्वर्ण-सिंहासन पर विराजमान जगत का शासक नहीं। परमात्मा है आपकी ही वह विशुद्ध स्थिति, जब अहंकार की जरा सी भी मात्रा शेष नहीं रह जाती।
अमृत साधना
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।