Hindustan nazariya column 16 June 2025 गरीबी तो घटी, पर गरीबों का जीवन ज्यादा नहीं बदला, Nazariya Hindi News - Hindustan
Hindi Newsओपिनियन नजरियाHindustan nazariya column 16 June 2025

गरीबी तो घटी, पर गरीबों का जीवन ज्यादा नहीं बदला

हाल ही में आई विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2011-12 में भारत में चरम गरीबी 27.1 प्रतिशत थी, जो 2022-23 में घटकर सिर्फ 5.3 प्रतिशत रह गई। इस दौरान लगभग 27 करोड़ लोग गरीबी-रेखा से ऊपर आ गए हैं…

Hindustan लाइव हिन्दुस्तानSun, 15 June 2025 11:28 PM
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गरीबी तो घटी, पर गरीबों का जीवन ज्यादा नहीं बदला

दीपांशु मोहन, प्रोफेसर, ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी

हाल ही में आई विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2011-12 में भारत में चरम गरीबी 27.1 प्रतिशत थी, जो 2022-23 में घटकर सिर्फ 5.3 प्रतिशत रह गई। इस दौरान लगभग 27 करोड़ लोग गरीबी-रेखा से ऊपर आ गए हैं। यह आंकड़ा बहुत महत्वपूर्ण है, लेकिन यह निष्कर्ष गरीबी आंकने के तरीके पर सवाल खड़े करता है। क्या हम भारत में कुछ ही लोगों को गरीब मान रहे हैं या गरीबी के पूरे दायरे को समझने में विफल हो रहे हैं?

भारत में गरीबी मापने का पैमाना मुख्य रूप से आय या उपभोग है। यह अभाव के बारे में बहुत कुछ नहीं कहता। तेंदुलकर समिति और बाद में रंगराजन समिति ने उपभोग के तरीके में आ रहे बदलाव को दर्शाने के लिए गरीबी रेखा में सुधार तो किया,पर मानदंड आय को ही बनाए रखा। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम, यानी यूएनडीपी के बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) सहित सभी मानक इस बात पर जोर देते हैं कि गरीबी के आकलन में शिक्षा, स्वास्थ्य व जीवन स्तर के अभावों को भी शामिल किया जाना चाहिए। आलोचकों का कहना है, महामारी के बाद बिना किसी जमीनी सर्वेक्षण के केवल अनुमानित आंकड़ों पर आधारित ये निष्कर्ष प्रगति की टेढ़ी-मेढ़ी तस्वीर पेश करते हैं। ये लोंगों को मिली सुविधाओं या व्यवस्था की कमियों को ठीक से सामने नहीं लाते।

गरीबी घटने के इस अनुमान को मान भी लें, तो यह किसके फायदे में है? आय में वृद्धि तो हुई है, पर स्वास्थ्य सेवाओं, शिक्षा, परिवहन और डिजिटल बुनियादी ढांचे जैसी आवश्यक सार्वजनिक सुविधाओं तक लोगों की पहुंच में कमी बनी हुई है। बहुसंख्यक आबादी के लिए इन सुविधाओं को प्राप्त करना टेढ़ी खीर है। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश में 2011-12 में 65 प्रतिशत तक अति-गरीबी थी। अब देश में जो गरीबी में कमी दर्ज की गई है, उनमें इन राज्यों में ही दो-तिहाई तक कमी बताई गई है। मगर ‘असमानता सूचकांक रिपोर्ट 2025’ में इन राज्यों में विषमता की तस्वीर अधिक गहरी है। असमानता सूचकांक पांच कसौटियों- बुनियादी सुविधाओं, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, सामाजिक-आर्थिक सेवा और कानूनी मदद की उपलब्धता पर राज्यों का आकलन करता है। इसमें उत्तर प्रदेश और बिहार ‘आकांक्षी’ श्रेणी में बने हुए हैं। उत्तर प्रदेश में केवल 19 प्रतिशत और बिहार में 21.5 फीसदी परिवारों को खाना पकाने का स्वच्छ ईंधन मिल पाता है। उधर, गोवा में 90 प्रतिशत परिवार पक्के घरों में रहते हैं, जबकि केरल में 83.4 प्रतिशत और तमिलनाडु में 87.9 प्रतिशत हैं। इनके मुकाबले बिहार, यूपी, झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य बहुत पीछे हैं।

अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के ‘स्टेट ऑफ वर्किंग इंडिया 2021’ रिपोर्ट द्वारा घरेलू आय के आंकड़ों का विश्लेषण कोविड के आर्थिक प्रभाव को उजागर करता है। इस विश्लेषण के अनुसार, सबसे निचली 10 प्रतिशत आबादी की आय में 27 प्रतिशत की भारी गिरावट देखी गई, जबकि 40 से 50 फीसदी आबादी की आय में 23 प्रतिशत व शीर्ष 10 प्रतिशत लोगों की कमाई में 22 प्रतिशत की गिरावट देखी गई। इसी तरह ‘हंगर वॉच सर्वेक्षण’ ने 2022 में बताया कि 80 प्रतिशत प्रतिभागियों ने किसी न किसी रूप में खाद्य असुरक्षा का अनुभव किया, जिसमें 25 प्रतिशत गंभीर संकट (जैसे भूखे रहने) में थे। सर्वेक्षण के शुरुआती महीने में 41 प्रतिशत लोगों ने अपने आहार की पोषण गुणवत्ता में गिरावट की शिकायत की, जबकि 67 प्रतिशत लोगों ने बताया कि वे रसोई गैस खरीदने में असमर्थ हैं। 2022 में प्यू रिसर्च सेंटर की रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया कि महामारी के कारण भारत में लगभग साढे सात करोड़ नए लोग गरीबी की खाई में चले गए। बाद में ‘स्टेट ऑफ वर्किंग इंडिया 2023’ के अध्ययन में भी इसकी पुष्टि की गई।

पीएम आवास योजना, उज्ज्वला योजना, जन-धन योजना वआयुष्मान भारत जैसे कल्याणकारी कार्यक्रमों ने लोगों की सुविधाओं को बढ़ाने और नगदी हस्तांतरण में सुधार किया है, पर चुनौतियां कायम हैं। इनकी बारीकी से जांच करने पर हकीकत पता चलेगी। हमें संस्थागत क्षमता, राजनीतिक इच्छाशक्ति व सार्वजनिक वस्तुओं के समान वितरण पर ध्यान देना चाहिए।

(साथ में अदिति देसाई)

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