एक देश, एक चुनाव: 10% तक GDP ग्रोथ, इकोनॉमी के लिए बनेगा बूस्टर डोज?
- केंद्र सरकार ने 2 सितंबर 2023 को पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक साथ चुनाव कराने पर उच्च स्तरीय समिति का गठन किया था। इसका मुख्य मकसद यह पता लगाना था कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराना कितना उचित होगा।
One Nation, One Election Impact: एक राष्ट्र, एक चुनाव... बीते कुछ दिनों से इस मुद्दे को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष आमने-सामने है। लोकसभा के पटल में रखे गए इस विधेयक को लेकर देश दो खेमे में बंट गया है। इसके तर्क में कहा जा रहा है कि इससे ना सिर्फ समय की बचत होगी बल्कि इकोनॉमी को भी बूस्ट मिलेगा। वहीं, विपक्षी खेमे का तर्क है कि यह विधेयक संघीय ढांचे के खिलाफ है। लेकिन सवाल है कि क्या एक राष्ट्र, एक चुनाव का कॉन्सेप्ट सचमूच इकोनॉमी को बूस्ट दे सकेगा? आज हम इसे समझने की कोशिश करते हैं।
क्या है एक राष्ट्र, एक चुनाव
दरअसल, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया गया था। इस आयोग ने मार्च 2024 में अपनी रिपोर्ट वर्तमान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी थी। रिपोर्ट में शुरुआत में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने की अनुशंसा की गई है। सितंबर 2024 में केंद्र सरकार ने आयोग की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया था।
कई देशों की प्रक्रिया का अध्ययन
एक राष्ट्र, एक चुनाव की संभावना तलाशने के लिए गठित आयोग ने लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ कराने की अनुशंसा करने से पहले दक्षिण अफ्रीका, स्वीडन और बेल्जियम समेत सात देशों की चुनाव प्रक्रिया का अध्ययन किया है। ऐसे देश जहां एक साथ चुनाव होते हैं, उनमें जर्मनी, जापान, इंडोनेशिया और फिलिपीन शामिल हैं।
इकोनॉमी पर क्या असर
आयोग के अध्यक्ष पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का तर्क है कि अगर यह विधेयक लागू हो जाता है, तो इससे चुनाव प्रक्रिया को प्रोत्साहन मिलेगा और देश के आर्थिक विकास में भी यह मददगार साबित होगा। कोविंद के मुताबिक इससे आर्थिक विकास को भी बढ़ावा मिलेगा। देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर मौजूदा 7.23 प्रतिशत से 1.5 प्रतिशत तक और बढ़ जाएगी। पूर्व राष्ट्रपति का कहना है कि यदि मौजूदा जीडीपी में 1.5 अंक जोड़ दिए जाएं, तो 10 प्रतिशत (जीडीपी) के आंकड़े तक पहुंचने में ज्यादा समय नहीं लगेगा। तब भारत दुनिया की शीर्ष तीन-चार आर्थिक महाशक्तियों में शामिल हो जाएगा। बता दें कि जीडीपी का 1.5 प्रतिशत वित्त वर्ष 2023-24 में 4.5 लाख करोड़ रुपये के बराबर रहा है। यह रकम भारत के हेल्थ सेक्टर पर कुल सार्वजनिक खर्च का आधा और शिक्षा पर खर्च का एक तिहाई बनता है।
महंगाई दर पर कितना असर
रिपोर्ट बताती है कि एक साथ चुनाव होने से जीडीपी के लिए नेशनल ग्रॉस फिक्स्ड कैपिटल फॉर्मेशन (निवेश) का अनुपात करीब 0.5 प्रतिशत बढ़ जाने की उम्मीद रहेगी। इस मॉडल पर सार्वजनिक खर्च 17.67 प्रतिशत बढ़ जाएगा। कोविंद समिति की रिपोर्ट ने मुद्रास्फीति पर एक साथ चुनावों के प्रभाव का विश्लेषण किया और पाया कि एक साथ चुनाव होने और अलग-अलग चुनाव होने, इन दोनों ही परिस्थितियों में महंगाई कम होती है। हालांकि, एक साथ चुनाव होने के मामले में महंगाई दर अधिक गिर जाएगी। यह अंतर करीब 1.1 प्रतिशत का हो सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि चुनाव के दो वर्ष पहले और दो वर्ष बाद राजकोषीय घाटा 1.28 प्रतिशत तक बढ़ सकता है।
सरकारी खजाने में बचत
रिपोर्ट कहती है कि एक साथ चुनाव कराने से कई चुनाव चक्रों से जुड़े वित्तीय खर्च में काफी कमी आ सकती है। यह मॉडल प्रत्येक व्यक्तिगत चुनाव के लिए मानव-शक्ति, उपकरणों और सुरक्षा संबंधी संसाधनों की तैनाती से संबंधित खर्च को घटाता है। यह मॉडल आर्थिक विकास और निवेशकों के विश्वास के लिए अनुकूल वातावरण को बढ़ावा देता है।
पहले भी हो चुका प्रयोग
यह पहली बार नहीं है जब एक साथ चुनाव कराने का प्रस्ताव आया है। साल 1951 से 1967 तक लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ आयोजित किए गए थे। हालांकि, कुछ राज्य विधानसभाओं के समय से पहले भंग होने के कारण 1968 और 1969 में एक साथ चुनाव कराने में बाधा आई थी। इसके अलावा चौथी लोकसभा भी साल 1970 में समय से पहले भंग कर दी गई थी, फिर 1971 में नए चुनाव हुए।