डी-लिस्टिंग से IPO तक… सेबी ने लिए कई बड़े फैसले; किस पर असर, समझें
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड के निदेशक मंडल की बैठक में कई प्रस्तावों को मंजूरी दी गई। इसमें पीएसयू की डी-लिस्टिंग से लेकर स्टार्टअप्स के आईपीओ को लेकर भी फैसला हुआ। आइए इसके बारे में विस्तार से जान लेते हैं।

भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने निवेशकों के हित को ध्यान में रखते हुए कई अहम फैसले लिए हैं। बाजार नियामक ने बुधवार को सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) की डी-लिस्टिंग प्रक्रिया के अलावा आईपीओ रिफॉर्म समेत विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) के लिए नियमों में बदलाव किए हैं। बता दें कि यह तुहिन कांत पांडेय के सेबी चेयरमैन बनने के बाद निदेशक मंडल की दूसरी बैठक थी। पांडेय ने इस साल एक मार्च को बाजार नियामक के प्रमुख का पद संभाला था।
पीएसयू के लिए क्या फैसला?
सेबी के निदेशक मंडल ने ऐसे पीएसयू के लिए एक अलग स्वैच्छिक डी-लिस्टिंग(शेयर बाजार से हटना) का स्ट्रक्चर पेश करने का फैसला किया जिनमें सरकार के पास 90 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी है। बता दें कि डी-लिस्टिंग में कंपनी के शेयर पर ट्रेडिंग नहीं की जा सकती है।
इसके साथ ही निदेशक मंडल ने उन विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) के लिए नियमों को आसान बनाने का फैसला किया, जो केवल भारत सरकार के बॉन्ड (आईजीबी) में निवेश करते हैं। इसके साथ ही नियामक ने आईजीबी-एफपीआई के लिए सभी फिजिकल बदलावों की सूचना देने के लिए एकसमान 30-दिवसीय अवधि तय की है। फिलहाल एफपीआई को सात से लेकर 30 दिन के भीतर प्रमुख बदलावों की सूचना देना होता है।
आईपीओ से जुड़ा यह फैसला
प्रमोटर के रूप में पहचाने जाने वाले स्टार्टअप संस्थापकों को कंपनी का आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) लाने से एक साल पहले आवंटित ईएसओपी (ईसॉप) को बनाए रखने की भी मंजूरी दी गई। इसके साथ ही सेबी ने निदेशकों और प्रमुख प्रबंध कर्मचारियों सहित चुनिंदा शेयरधारकों के लिए आईपीओ दस्तावेज दाखिल करने से पहले डीमैट रूप में शेयर रखना भी अनिवार्य कर दिया है।
इसके अलावा बाजार में लिस्टेड कंपनियों द्वारा पात्र संस्थागत नियोजन (क्यूआईपी) अलॉटमेंट संबंधी दस्तावेज की सामग्री को युक्तिसंगत बनाने की अनुमति देने के प्रस्ताव को भी निदेशक मंडल ने मंजूरी दी।