अहमदाबाद प्लेन के बाद गौरीकुंड हेलीकॉप्टर क्रैश: कौन सी कम्युनिकेशन टेक होती हैं यूज, क्यों टूटता है संपर्क? Gaurikund helicopter crash days after plane crash in ahmedabad How Helicopters and Airplanes Communicate, Gadgets Hindi News - Hindustan
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अहमदाबाद प्लेन के बाद गौरीकुंड हेलीकॉप्टर क्रैश: कौन सी कम्युनिकेशन टेक होती हैं यूज, क्यों टूटता है संपर्क?

हेलीकॉप्टर और एरोप्लेन लगातार ग्राउंड स्टेशन और अन्य विमानों से संपर्क में रहते हैं। लेटेस्ट टेक के चलते उड़ानें सुरक्षित रहती हैं और किसी भी आपात स्थिति में तेजी से कदम उठाए जा सकते हैं। यही वजह है कि जब किसी विमान से संपर्क टूटता है तो यह एक चेतावनी का संकेत होता है, जिसे गंभीरता से लिया जाता है।

Pranesh Tiwari लाइव हिन्दुस्तानSun, 15 June 2025 11:57 AM
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अहमदाबाद प्लेन के बाद गौरीकुंड हेलीकॉप्टर क्रैश: कौन सी कम्युनिकेशन टेक होती हैं यूज, क्यों टूटता है संपर्क?

अहमदाबाद में एयर इंडिया का विमान क्रैश होने के चंद दिनों बाद ही आज रविवार को उत्तराखंड के गौरीकुंड में हेलीकॉप्टर क्रैश होने से सात लोगों की जान चली गई। सामने आया है कि अचानक हेलीकॉप्टर का संपर्क कंट्रोल रूम से टूट गया और बाद में स्थानीय लोगों ने क्रैश साइट हो रिपोर्ट किया। समझना जरूरी है कि एरोप्लेन और हेलीकॉप्टर कौन सी कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करते हैं और कंट्रोल रूम से संपर्क टूटने की संभावित वजह क्या हो सकती है।

दरअसल, हेलीकॉप्टर और एरोप्लेन जैसे उड़ान भरने वाले अलग-अलग आकार के सभी विमान लेटेस्ट कम्युनिकेशन टेक यूज करते हैं, जिससे वे जमीन पर मौजूद एयर ट्रैफिक कंट्रोल (ATC), अन्य एयरक्राफ्ट्स और ग्राउंड स्टेशन से संपर्क बनाए रख सकें। इसकी मदद से ना सिर्फ उनकी उड़ान आसान रहती है, बल्कि यह सुरक्षा के लिहाज से भी यह बेहद जरूरी होता है। जब हम 'संपर्क टूटने' की बात करते हैं, तो इसका सीधा संबंध पायलट और कंट्रोल रूम के बीच के कम्युनिकेशन सिस्टम से होता है।

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कौन-कौन सी कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी होती हैं यूज?

1. VHF रेडियो कम्युनिकेशन (Very High Frequency)

ज्यादातर डोमेस्टिक फ्लाइट्स में यूज होने वाला यह सबसे आम कम्युनिकेशन सिस्टम है जो पायलट और ATC के बीच संपर्क बनाता है। इसकी फ्रीक्वेंसी रेंज आमतौर पर 118MHz से 137MHz के बीच होती है। हालांकि, इसकी रेंज लिमिटेड होती है (लगभग 200–250 किमी), इसलिए लंबी दूरी पर उड़ान के दौरान पायलट को अलग-अलग स्टेशंस से संपर्क बनाकर रखना पड़ता है।

2. HF रेडियो (High Frequency)

लंबे अंतरराष्ट्रीय रूट्स पर, जैसे कि समुद्र के ऊपर, VHF सिग्नल काम नहीं करते। ऐसे में HF रेडियो का इस्तेमाल किया जाता है। HF रेडियो सिग्नल आयोनोस्फियर (आसमान का बादलों से नीचे वाले हिस्से) से रिफ्लेक्ट होकर दूरदराज के कंट्रोल स्टेशंस तक पहुंच सकते हैं और इसकी रेंज हजारों किलोमीटर हो सकती है।

3. SATCOM (Satellite Communication)

सैटेलाइट आधारित यह टेक्नोलॉजी बहुत ज्यादा दूरी और खराब मौसम में भी संपर्क बनाए रखती है। SATCOM के जरिए वॉयस और डाटा दोनों को एक्सचेंज किया जा सकता है। यही वजह है कि इसका इस्तेमाल विशेष रूप से आधुनिक और बड़े विमान करते हैं।

4. ADS-B (Automatic Dependent Surveillance – Broadcast)

यह एडवांस्ड टेक्नोलॉजी विमान की पोजिशन, एल्टीट्यूड और स्पीड को ऑटोमेटिकली ट्रांसमिट करती है। ऐसे में ग्राउंड स्टेशन और अन्य विमानों को विमान की लोकेशन दिखती रहती है और यह रेडार की तुलना में अधिक सटीक और आधुनिक तरीका है।

5. ACARS (Aircraft Communications Addressing and Reporting System)

ACARS एक डिजिटल डाटा लिंक सिस्टम है जिससे विमान और ग्राउंड स्टेशन के बीच टेक्स्ट बेस्ड मेसेजेस का एक्सचेंज होता है। इसका इस्तेमाल मौसम रिपोर्ट, टेक्निकल अलर्ट्स और अन्य ऑपरेशनल कम्युनिकेशन के लिए किया जाता है।

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संपर्क टूटने का मतलब क्या होता है?

संपर्क टूटने का मतलब है कि विमान का पायलट एयर ट्रैफिक कंट्रोल (ATC) से कम्युनिकेट या बात नहीं कर पा रहा है। इसका मतलब यह नहीं होता कि विमान क्रैश हो गया है, बल्कि इसकी कई वजहें हो सकती हैं। उदाहरण के लिए विमान का रेडियो या इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम फेल होने पर भी यह दिक्कत आ सकती है। इसके अलावा सैटेलाइट कनेक्शन में खामी से भी संपर्क टूट सकताहै।

कई बार पायलट गलत फ्रीक्वेंसी पर हो सकता है और आखिरी वजह विमान का क्रैश होना मानी जाती है। अगर किसी विमान से लंबे वक्त तक संपर्क नहीं हो पा रहा और उसकी पोजीशन पता नहीं चल रही तो माना जाता है कि वह क्रैश हो गया है और उसके संभावित मलबे की तलाश शुरू की जाती है।

संपर्क टूटने के बाद क्या होता है?

विमान से अचानक संपर्क टूटने पर ATC विमान से दोबारा संपर्क करने की कोशिश करता है। अगर संपर्क नहीं हो पाता, तो विमान को 'Missing' या 'Unresponsive' घोषित किया जाता है और सैन्य या सिविल रेस्क्यू टीम अलर्ट हो जाती हैं। इसके बाद फ्लाइट ट्रैकिंग सिस्टम (जैसे फ्लाइटरेडार) में विमान की आखिरी पोजिशन को देखा जाता है और उसका पता लगाने की कोशिश की जाती है। साथ ही तय किया जाता है कि दुर्घटना जैसी स्थिति में जल्द से जल्द रेस्क्यू टीम को भेजा जाए।

(प्रतीकात्मक फोटो)

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