क्या विधवा पुनर्विवाह के बाद सास-ससुर को पेंशन मिलनी चाहिए,बेटे की मौत के 40साल बाद आया फैसला
न्यायालय ने कहा, ‘इस मामले में शंकरी देवी पारिवारिक पेंशन के लिए पात्र पाई गई हैं, वह याचिका दायर करने से पहले तीन वर्षों की अवधि के लिए बकाया राशि की हकदार होंगी।’

हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला देते हुए केंद्र सरकार को एक मृत BSF सैनिक की 83 साल की मां को पारिवारिक पेंशन देने का निर्देश दिया है। इसके साथ ही कोर्ट ने सरकार से यह भी कहा कि विधवा के पुनर्विवाह के बाद मृतक के माता-पिता को पारिवारिक पेंशन के लिए पात्र माना जाए। अदालत ने बुजुर्ग महिला को केस दायर करने के तीन साल पहले से पेंशन देने का निर्देश दिया है। यह केस एक ऐसे दिवंगत सैनिक के माता-पिता ने दायर किया था, जिनके बेटे की मृत्यु साल 1985 में शादी के 10 दिन बाद ही रहस्यमयी परिस्थितियों में हो गई थी।
बेटे की मौत के बाद बहू को पेंशन मिलती रही, लेकिन पांच साल बाद 1990 में जब उसने दूसरी शादी कर ली तो पेंशन मिलना बंद हो गई। इसके बाद से ही सैनिक के माता-पिता पारिवारिक पेंशन पाने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रहे थे। कोर्ट में केस के लंबित रहने के दौरान ही बुजुर्ग की मौत भी हो गई, लेकिन अब उच्च न्यायालय ने बुजुर्ग महिला को पेंशन जारी करने का निर्देश देते हुए छह सप्ताह का समय दिया है।
सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के दिवंगत जवान की 83 वर्षीय मां के पक्ष में फैसला सुनाते हुए हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा 'विधवा के पुनर्विवाह के बाद उसके दिवंगत पति के माता-पिता पारिवारिक पेंशन के हकदार हो जाते हैं'।
जस्टिस संदीप शर्मा की एकल पीठ ने केंद्र सरकार को याचिकाकर्ता शंकरी देवी को पारिवारिक पेंशन जारी करने का निर्देश दिया, और कहा कि उन्हें पिछले कई दशकों से उनके उचित दावे से वंचित रखा गया था। कोर्ट ने बीएसएफ के वेतन एवं लेखा प्रभाग द्वारा उन्हें पेंशन से वंचित रखने के लिए जारी किए नामंजूरी के आदेश को भी रद्द कर दिया। इसमें उन्हें इस पेंशन के लिए अपात्र घोषित कर दिया गया था।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि उसका बेटा लेख राम 1979 में बीएसएफ में शामिल हुआ था और 1985 में उसकी शादी सुरक्षा नाम की महिला से हुई थी। हालांकि, विवाह के बमुश्किल दस दिन बाद ही लेख राम की रहस्यमय परिस्थितियों में मृत्यु हो गई। जिसके बाद उसकी विधवा सुरक्षा देवी को पारिवारिक पेंशन मिलने लगी। पांच साल बाद दिसंबर 1990 में सुरक्षा देवी ने दूसरी शादी कर ली, जिससे वह पारिवारिक पेंशन के लिए अपात्र हो गई। इसके अलावा उसने खुद स्वेच्छा से विभाग को यह लिखकर दे दिया कि वह अपने पुनर्विवाह के बाद पारिवारिक पेंशन नहीं लेना चाहती है।
इसके बाद शंकरी देवी और उनके पति स्वर्गीय सीता राम (जिनका निधन याचिका के लंबित रहने के दौरान हो गया) ने पारिवारिक पेंशन के लिए आवेदन किया। हालांकि, अधिकारियों ने उनके अनुरोध को इस आधार पर अस्वीकार कर दिया था कि एक मृतक सरकारी कर्मचारी के माता-पिता पेंशन के लिए पात्र नहीं हैं। हालांकि उनके इस दावे को अब अदालत ने गलत करार दे दिया है।
कोर्ट ने कहा, 'चूंकि याचिकाकर्ता सालों से अपने उचित दावे के लिए लड़ रही है और साथ ही एक जरूरी तथ्य भी है कि याचिकाकर्ता 83 साल की है, इसलिए यह न्यायालय आशा और विश्वास करती है कि केंद्र सरकार के आदेश पर शीघ्रता से आवश्यक कार्यवाही होगी।'
केंद्र सरकार को केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियमों के प्रासंगिक प्रावधानों के अनुसार कार्य करने का निर्देश देते हुए, न्यायालय ने कहा, 'केंद्र सरकार को नियम 50 के उप-खंड 10 के अनुसार, पारिवारिक पेंशन के अनुदान के लिए याचिकाकर्ता द्वारा की गई प्रार्थना पर विचार करने का निर्देश दिया जाता है, जो विधवा के पुनर्विवाह के बाद माता-पिता को पेंशन का हकदार बनाता है।'
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