अलग-थलग पड़े ईरान के सुप्रीम लीडर खामेनेई, इजरायली हमलों में ढहा करीबी सर्कल; बेटे का उदय
इस संघर्ष ने मध्य पूर्व में तनाव को और बढ़ा दिया है। ट्रंप ने कहा कि वे खामेनेई की ठिकाने की जानकारी रखते हैं लेकिन अभी उनकी हत्या नहीं करेंगे। ट्रंप ने तेहरान के निवासियों को तत्काल निकलने की चेतावनी भी दी।

ईरान पर इजरायल के लगातार और सटीक हवाई हमलों ने न केवल उसकी सैन्य क्षमताओं को नुकसान पहुंचाया है, बल्कि सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई की आंतरिक ताकत और निर्णय प्रक्रिया को भी झकझोर कर रख दिया है। रिपोर्टों के मुताबिक, इन हमलों में खामेनेई के कई विश्वसनीय सैन्य और खुफिया सलाहकार मारे जा चुके हैं, जिससे वे अब पहले से कहीं अधिक अकेले और रणनीतिक रूप से कमजोर हो गए हैं।
86 वर्षीय खामेनेई 1989 से सत्ता में हैं। वे आज ईरान को उसके सबसे बड़े भू-राजनीतिक संकटों में से एक के बीच से गुजरते हुए नेतृत्व दे रहे हैं। इजरायल के हमले ईरान के परमाणु कार्यक्रम को रोकने के मकसद से किए जा रहे हैं, और अब ये हमले खामेनेई के बेहद करीबी लोगों को भी निशाना बना रहे हैं।
सलाहकारों की मौत से बना सत्ता का शून्य
रायटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, खामेनेई के आंतरिक सर्कल से जुड़े पांच लोगों ने पुष्टि की है कि हालिया हवाई हमलों में रेवोल्यूशनरी गार्ड्स के प्रमुख कमांडर हुसैन सलामी, मिसाइल कार्यक्रम के प्रमुख आमिर अली हाजीजादेह, और शीर्ष खुफिया अधिकारी मोहम्मद काजेमी मारे गए हैं। ये सभी 15–20 लोगों की उस मुख्य सलाहकार टीम का हिस्सा थे, जो राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति जैसे अहम मसलों पर खामेनेई को सलाह देते थे। इस टीम में वरिष्ठ मौलवी, राजनेता और रिवोल्यूशनरी गार्ड्स के उच्च अधिकारी शामिल होते हैं। यह खामेनेई के कार्यालय द्वारा बुलाए जाने पर बैठक करती है और उसकी प्रमुख विशेषता है- ईरानी क्रांति और खामेनेई के प्रति पूर्ण निष्ठा।
आंतरिक और बाहरी दबाव की दोहरी मार
ईरान पहले ही कड़े पश्चिमी प्रतिबंधों, घरेलू आर्थिक संकट, और 2022 जैसे जनविरोध प्रदर्शनों से जूझ रहा है। खामेनेई का सत्ता पर पकड़ अब तक रिवोल्यूशनरी गार्ड्स और बसीज मिलिशिया के बल पर कायम रही है, जिन्होंने 1999, 2009 और 2022 में विरोध प्रदर्शनों को कुचल दिया। लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि मौजूदा आर्थिक असंतोष किसी भी दिन इतना गहरा हो सकता है कि उसे दबाना असंभव हो जाए।
राजनीतिक रीढ़ अभी जीवित, लेकिन सैन्य सोच में कमी
जहां सैन्य नुकसान ने सभी का ध्यान खींचा है, वहीं खामेनेई के कुछ पुराने राजनीतिक सलाहकार अब भी सक्रिय हैं। इनमें शामिल हैं –
- विदेश नीति विशेषज्ञ अली अकबर वेलायती
- पूर्व विदेश मंत्री कमाल खर्राजी
- पूर्व संसद अध्यक्ष अली लारीजानी
- खुफिया मामलों के वरिष्ठ रणनीतिकार अली असगर हेज़ाज़ी
हालांकि, वरिष्ठ सैन्य कमांडरों की मौत के बाद खामेनेई की सबसे बड़ी कमजोरी उसकी क्षेत्रीय सैन्य रणनीति और आंतरिक सुरक्षा की दिशा में दिखाई दे रही है।
मोजतबा खामेनेई: सत्ता का अगला चेहरा?
सत्ता के इस पुनर्गठन की छाया में एक नाम और तेजी से उभर रहा है- खामेनेई के पुत्र मोजतबा खामेनेई। मध्य स्तर के मौलवी मोजतबा ने पिछले दो दशकों में कई शक्तिशाली गुटों, खासकर रिवोल्यूशनरी गार्ड्स के साथ गहरे संबंध बनाए हैं और अब उन्हें खामेनेई के उत्तराधिकारी के रूप में देखा जाने लगा है। इस संकट के बीच, खामेनेई के बेटे मोजतबा खामेनेई को पहले से ही ईरान की सत्ता में एक छिपा हुआ लेकिन शक्तिशाली खिलाड़ी माना जाता है। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि ये हमले मोजतबा के लिए नेतृत्व की ओर बढ़ने का अवसर प्रदान कर सकते हैं, हालांकि अभी तक खामेनेई के उत्तराधिकारी के रूप में कोई आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है।
बाहरी नुकसान भी गंभीर?
ईरान के बाहर भी खामेनेई के लिए नुकसान उतना ही गंभीर रहा है। हिजबुल्लाह प्रमुख हसन नसरल्लाह खामेनेई के करीबी सहयोगी थे, वह सितंबर में एक इजरायली हमले में मारे गए। सीरिया के बशर अल-असद को ईरान के "प्रतिरोध की धुरी" और प्रमुख सहयोगी कहा जाता था लेकिन दिसंबर में उनको विद्रोहियों ने उखाड़ फेंका। इजरायल ने ईरान की "प्रतिरोध धुरी" को बुरी तरह से कुचल दिया गया है।
ईरान की "प्रतिरोध की धुरी" (Axis of Resistance) एक क्षेत्रीय गठबंधन है, जिसे ईरान ने पश्चिमी देशों (विशेष रूप से अमेरिका और इजरायल) के प्रभाव का मुकाबला करने के लिए बनाया है। यह गठबंधन मध्य पूर्व में ईरान समर्थित विभिन्न सशस्त्र समूहों और सरकारों का एक नेटवर्क है, जो इस्लामिक रिपब्लिक की विचारधारा और रणनीतिक हितों को बढ़ावा देता है। इसका मुख्य उद्देश्य इजरायल और अमेरिका के क्षेत्रीय प्रभुत्व को चुनौती देना, शिया इस्लाम का प्रसार करना, और ईरान के भूराजनीतिक प्रभाव को मजबूत करना है।
"प्रतिरोध की धुरी" के प्रमुख सदस्य
हिजबुल्लाह (लेबनान): लेबनान का शिया सशस्त्र समूह, जिसे ईरान ने 1980 के दशक में गठित किया। यह इजरायल के खिलाफ सबसे शक्तिशाली गैर-राज्य खिलाड़ी है, जिसके पास एडवांस रॉकेट और मिसाइलें हैं। हिजबुल्लाह को ईरान से वित्तीय और सैन्य समर्थन मिलता है।
हमास और इस्लामिक जिहाद (फिलिस्तीन): गाजा पट्टी में सक्रिय ये सुन्नी समूह इजरायल के खिलाफ लड़ते हैं। हालांकि यह संगठन सुन्नी हैं लेकिन ये ईरान से हथियार, प्रशिक्षण और वित्तीय सहायता प्राप्त करते हैं।
हूती विद्रोही (यमन): यमन में शिया-प्रेरित हूती समूह, जो सऊदी अरब के नेतृत्व वाले गठबंधन के खिलाफ लड़ रहा है। ईरान इन्हें हथियार और रणनीतिक समर्थन प्रदान करता है।
शिया मिलिशिया (इराक और सीरिया): इराक में पॉपुलर मोबिलाइजेशन फोर्सेज (PMF) और सीरिया में विभिन्न शिया समूह, जो ईरान के इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) के निर्देश में काम करते हैं। ये समूह ISIS के खिलाफ लड़ाई में भी सक्रिय रहे।
सीरिया की असद सरकार: बशर अल-असद की सरकार ईरान की प्रमुख सहयोगी है। ईरान ने सीरियाई गृहयुद्ध में असद को सैन्य और आर्थिक रूप से समर्थन दिया, जिससे सीरिया में ईरान का प्रभाव बढ़ा।
हाल के इजरायली हमलों ने इस गठबंधन को गंभीर झटका दिया है। सितंबर 2024 में हिजबुल्लाह के नेता हसन नसरल्लाह की हत्या, और अक्टूबर 2024 में IRGC के कई वरिष्ठ कमांडरों की मौत ने "प्रतिरोध की धुरी" की सैन्य और रणनीतिक क्षमता को कमजोर किया। इसके अलावा, हमास और हूती समूहों पर बढ़ते दबाव ने ईरान की क्षेत्रीय रणनीति को और जटिल बना दिया है।
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