पाकिस्तान में भी हिंदू देवी-देवताओं की पूजा करती है यह जनजाति, अनोखी है शादी की परंपरा
पाकिस्तान और अफगानिस्तान की सीमा पर हिंदूकुश के पहाड़ों में कलाश जनजाति रहती है। इस जनजाति के लोग हिंदू देवी देवताओं से मिलते देवताओं की मूर्तिपूजा करते हैं।

पाकिस्तान ऐसा देश है जहां अल्पसंख्यकों की जिंदगी बेहद कठिन है। पाकिस्तान में रहने वाले अल्पसंख्यकों पर अत्याचार की घटनाएं दिनों दिन बढ़ रही हैं। वहीं पाकिस्तान में ही हिंदुकुश की पहाड़ियों में एक ऐसी जनजाति फल फूल रही है जो कि मूर्तिपूजा करती है। हिंदुकुश के पहाड़ों से घिरी घाटियों में कलाश नाम की जनजाति रहती है। इस जनजाति की स्त्रियों के बेहद खूबसूरत माना जाता है। इनकी कुछ परंपराएं अनोखी हैं। वहीं इनकी कई परंपराएं हिंदुओं से मिलती-जुलती हैं।
अफगानिस्तान की सीमा के पास हिंदूकुश पहाड़ों में रहने वाली यह जनजाति बाहरी दुनिया से ज्यादा संपर्क नहीं रखती है। हिंदूकुश पहाड़ को लेकर ऐतिहासिक और पौराणिक मान्यताएं हैं। कहा जाता है कि इस इलाके में जब सिकंदर की जीत हुई तो इसे कौकासोश इंदिकौश के नाम से जाना जाने लगा। यह यूनानी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ हिंदुस्तानी पर्वत है। वहीं यह भी कहा जाता है कि कलाश जनजाति का संबंध सिकंदर से है। हालांकि इतिहासकारों का कहना है कि इस जनजाति का अस्तित्व पहले से था। हालांकि यहां सिकंदर के लड़ाकों की वजह से नस्ल में मिलावट जरूरी हुई होगी।
जनसंख्या है बेहद कम
पाकिस्तन की जनगणना के मुताबिक इस जनजाति की संख्या 4 हजार के ही करीब है। 2018 में ही पाक सरकार ने इसे अलग जनजाति माना था। कलाश परिवारों में महिलाएं ही घर चलाती हैं। पुरुष शराब के शौकीन होते हैं। स्त्री और पुरुष साथ मिलकर शराब पीते हं। इसके अलावा ये लोग बांसुरी और ड्रम बजाते हैं
मूर्ति पूजा करते हैं कलाशी
हिंदूकुश पर्वत में एकांत में रहने की वजह से उन्होंने अपनी संस्कृति बचाकर रखी है। कलाश जनजाति के लोग मुर्तिपूजा में विश्वास करते हैं। वे लोग शिव, इंद्र और यम से मिलते जुलते देवी देवताओं की पूजा करते हैं। हालांकि ये खुद को हिंदू नहीं मानते कलाशी महिलाएं भेड़-बकरियां चलाने का काम करती हैं। इसके अलावा वे माला और रंगीन पर्स वगैरह तैयार करती हैं जिन्हें बेचने के लिए पुरुष बाहर जाते हैं। महिलाओं के पहनावे में एक खास तरह की पहाड़ी टोपी शामिल होती है। इसके अलावा वे चिड़िया के पंखों का भी इस्तेमाल करती हैं।
खुद अपना पति चुनती हैं लड़कियां
कलाश जनजाति में महिलाओं के पास अपना पति चुनने की आजादी रहती है। सालभर में तीन बार इनका खास त्योहार गंजूलिक होता है। इस मौके पर लड़के और लड़कियां इकट्ठी होती हैं। इस दौरान अगर किसी को कोई लड़का पसंद आता है तो वह उसके साथ जा सकती है। वहीं अगर महिला को कोई दूसरा पुरुष भी पसंद आ जाए तो उसे भी उसके साथ जाने की आजादी होती है। लड़कियां हफ्तेभर या फिर महीने के बाद जब घर लौटती हैं तो उनकी शादी करा दी जाती है।
महिलाओं पर वैसे शादी-विवाह को लेकर बंदिशें नहीं हैं। हालांकि उनकी कुछ परंपराएं हैं। जैसे कि पीरियड्स के दौरान महिलाओं को घर से बाहर कम्युनिटी सेंटर में रहना पड़ता है। यहां पर सारी सुविधाएं उपलब्ध होती हैं। पीरिडय्स के बाद वे यहीं से नहा-धोकर घर वापस आती हैं। उनका मानना है कि पीरियड्स के दौरान छुआछूत से उनके ईश्वर नाराज हो जाते हैं।
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