चिन्मय विद्यालय में छह दिवसीय ज्ञाण यज्ञ का शुभारंभ
बोकारो के चिन्मय विद्यालय में ज्ञान-यज्ञ का उद्घाटन हुआ। आचार्य अद्वैतानंद सरस्वती ने अयोध्या कांड पर अपने विचार प्रस्तुत किए। स्वामी जी ने त्याग और बलिदान के महत्व पर जोर दिया। कार्यक्रम में मुख्य...

बोकारो। सेक्टर-5 स्थित चिन्मय विद्यालय के तपोवन सभागार में शुक्रवार को छह दिवसीय ज्ञान-यज्ञ की शुरुआत हुई। आचार्य चिन्मय मिशन के वरीय आचार्य स्वामी अद्वैतानंद सरस्वती हैं। स्वामी जी अयोध्या कांड के विशेष प्रसंग पर अपना वस्तुनिष्ठ व वैज्ञानिक विश्लेषण प्रस्तुत करेंगे। प्रवचन स्थल पर पहुंचने वाले सभी अतिथियों को तिलक मिश्री अर्पित कर स्वागत किया गया। परम पूज्य स्वामी जी का स्वागत पूर्ण कुंभ दर्शन एवं वैदिक मंत्र उच्चारण के साथ किया गया। स्वामी जी की आगमन पर विद्यालय के नौनिहालों ने श्रीमद् भगवद् गीता के पुरुषोत्तम योग का संवेत पाठ किया। मुख्य अतिथि प्रभारी निदेश बोकारो इस्पात संयंत्र के बीके तिवारी व राजश्री बनर्जी अधिशासी निदेशक मानव संसाधन विभाग बोकारो इस्पात संयंत्र ने दीप जलाकर कार्यक्रम का शुभारंभ किया।
श्री गणेश व गुरु परंपरा का स्मरण करते हुए पूज्य स्वामी अद्वैतानंद जी ने आज के प्रवचन की शुरुआत की । कहा कि त्याग से बड़ा कोई अमृत तत्व नहीं है। इसका सुंदर मूर्त रूप यदि कहीं देखना हो तो वह है श्री रामचरितमानस का अयोध्या कांड। इसमें भगवान श्री राम पिता के वचन पालन के लिए राज का त्याग कर 14 वर्ष के कठिन वनवासी जीवन का व्रत लेते हैं और वन के कांटों भरे पथ पर विचरण करने के लिए अयोध्या का त्याग करते हैं। जनक नंदनी राजकुमारी सीता पातिव्रत्य धर्म की उच्च प्रतिष्ठा को स्थापित करती हुई राज-सुख का त्याग कर अपने पति की अनुगामिनी बनती है। लक्ष्मण जी अपने भाई एवं आराध्य की सेवा के लिए राजमहल का त्याग करते हैं। धर्मात्मा भरत धर्म कि प्रतिष्ठा के लिए राज सिंहासन पर साक्षात धर्म-स्वरुप अपने बड़े भाई का अधिकार है। इस धर्म कि प्रतिष्ठा के लिए सिंहासन का त्याग कर 14 वर्ष तक नंदीग्राम में तपस्वी जीवन जीते हैं। आज के लोभ मोह ईष्या, द्वेश एंव कटुता भरे संसार में त्याग, बलिदान, प्रेम, आदर्श भातृत्व प्रेम, मातृ-पितृ भक्ति एवं तपस्या का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए अयोध्या कांड का अनुशीलन अति आवश्यक है।
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