Challenges Facing Bengali Community in Jharkhand Language Culture and Identity Crisis बोले देवघर: बंगाली भाषा, संस्कृति और पहचान बचाने की हो पहल, Deogarh Hindi News - Hindustan
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बोले देवघर: बंगाली भाषा, संस्कृति और पहचान बचाने की हो पहल

बंगाली समाज, विशेषकर देवघर और झारखंड के अन्य हिस्सों में, कई गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा है। बंगाली भाषा, परंपराएँ और पहचान संकट में हैं। आर. एन. बोस लाइब्रेरी इस समाज की सांस्कृतिक धरोहर का...

Newswrap हिन्दुस्तान, देवघरWed, 2 April 2025 02:41 AM
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बोले देवघर: बंगाली भाषा, संस्कृति और पहचान बचाने की हो पहल

बंगाली समाज, विशेष रूप से देवघर और झारखंड के अन्य हिस्सों में रहने वाले बंगाली समुदाय, आज कई गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा है। हालांकि यह समाज संस्कृति, भाषा और शिक्षा के प्रति जागरूक रहा है, फिर भी समय के साथ बंगाली भाषा, परंपराओं और सामाजिक पहचान को लेकर कई समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं। अगर समय रहते इन चुनौतियों का समाधान नहीं किया गया, तो बंगाली समाज की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित रखना कठिन हो जाएगा। देवघर का राज नारायण बसु लाइब्रेरी (आर. एन. बोस लाइब्रेरी) केवल एक पुस्तकालय नहीं, बल्कि बंगाली समाज की सांस्कृतिक धरोहर का केंद्र भी है। 123 वर्ष पुराने इस ऐतिहासिक भवन की स्थापना 1902 में आनंद वास लाइब्रेरी के तहत की गई थी। इस पुस्तकालय की नींव केवल ज्ञान और अध्ययन के लिए नहीं रखी गई थी, बल्कि यह बंगाली समाज की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित और मजबूत करने का भी एक महत्वपूर्ण मंच रहा है।

बंगाली समाज की पहचान और लाइब्रेरी की भूमिका: देवघर जिले में लगभग 50,000 बंगाली लोगों की आबादी है, जो अपनी संस्कृति, परंपरा और भाषा को बचाने और आगे बढ़ाने के लिए प्रयासरत हैं। इसी संदर्भ में आर. एन. बोस लाइब्रेरी का महत्व और भी बढ़ जाता है। यह केवल पुस्तकों तक सीमित नहीं है, बल्कि बंगाली साहित्य, कला, संगीत, नृत्य, पेंटिंग, और धार्मिक आयोजनों का भी केंद्र बन चुकी है।

वर्तमान समय में, इस लाइब्रेरी का स्वरूप काफी बदल चुका है। पहले जहां यह केवल अध्ययन और पुस्तकों तक सीमित थी, वहीं अब बांग्ला संस्कृति को बचाने और बढ़ावा देने के लिए विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।

बंगाली भाषा का पतन और पहचान का संकट: बंगाली समाज की सबसे बड़ी समस्या अपनी मातृभाषा से दूर होना है। आज की युवा पीढ़ी बंगाली भाषा बोलने, पढ़ने और लिखने में रुचि नहीं ले रही। इसके पीछे कई कारण हैं। स्कूलों में अंग्रेजी और हिंदी माध्यम की पढ़ाई का बढ़ता प्रभाव, जिससे बच्चे बांग्ला भाषा को कम महत्व देने लगे हैं। माता-पिता का यह सोचना कि बच्चे अगर हिंदी या अंग्रेजी में शिक्षित होंगे तो उन्हें बेहतर अवसर मिलेंगे। बंगाली भाषा में रोजगार और सरकारी अवसरों की कमी, जिसके कारण युवा अन्य भाषाओं को प्राथमिकता देने लगे हैं। डिजिटल युग में बंगाली साहित्य और पत्र-पत्रिकाओं की घटती लोकप्रियता। अगर यह प्रवृत्ति जारी रही, तो आने वाले वर्षों में देवघर और झारखंड के बंगाली समुदाय में बंगाली भाषा विलुप्ति की कगार पर पहुंच सकती है।

बंगाली संस्कृति और परंपराओं का लुप्त होना: पहले बंगाली समाज में कला, संगीत, नृत्य, नाटक और त्योहारों को बहुत महत्व दिया जाता था, लेकिन अब ये परंपराएँ धीरे-धीरे खत्म होती जा रही हैं। इसके पीछे कई कारण हैं। नई पीढ़ी अब बांग्ला सांस्कृतिक आयोजनों में कम रुचि दिखा रही है। मोबाइल, इंटरनेट और सोशल मीडिया की वजह से युवा बंगाली संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं। बंगाली समाज की सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए सरकारी सहयोग नहीं मिलता, जिससे इनका आयोजन कठिन हो जाता है। अगर यही स्थिति बनी रही, तो भविष्य में बंगाली समाज की सांस्कृतिक पहचान खतरे में पड़ सकती है।

बंगाली समाज का राजनीतिक और सामाजिक हाशिए पर जाना: झारखंड और बिहार जैसे राज्यों में बंगाली समाज की राजनीतिक और सामाजिक स्थिति कमजोर होती जा रही है। कई बार यह समुदाय राजनीतिक रूप से उपेक्षित महसूस करता है। बंगाली समाज से जुड़े मुद्दों को राजनीतिक स्तर पर अधिक महत्व नहीं दिया जाता। सरकारी नौकरियों और प्रशासनिक पदों पर बंगाली समुदाय की भागीदारी कम हो रही है। झारखंड और बिहार जैसे राज्यों में बंगाली समुदाय के सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए कोई विशेष योजना नहीं बनाई गई। इसका परिणाम यह हुआ कि बंगाली समाज धीरे-धीरे राजनीतिक और सामाजिक रूप से हाशिए पर चला गया है, जिससे उनकी पहचान और अधिकारों को बनाए रखना कठिन हो गया है।

बंगाली भाषा और संस्कृति के संरक्षण की आवश्यकता: हालांकि राज नारायण बसु लाइब्रेरी (आर. एन. बोस लाइब्रेरी) देवघर में बंगाली समाज के लिए एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक केंद्र बन चुकी है, लेकिन वर्तमान समय में यह कई गंभीर समस्याओं और चुनौतियों का सामना कर रही है।

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