अस्पताल भवन अपग्रेड हुआ पर चिकित्सा व्यवस्था नहीं सुधरी
फोटो कांडी एक: कांडी का पुराना अस्पताल भवन हालिया तरक्की में बन गया सीएचसी। फोटो कांडी दो: अस्पताल का बना भव्य भवन रामरंजन कांडी। करीब डेढ़ लाख की आ

कांडी, प्रतिनिध। करीब डेढ़ लाख की आबादी के लिए बना इकलौता अस्पताल अपग्रेड तो होता गया लेकिन चिकित्सा व्यवस्था में अपेक्षित सुधार नहीं हुआ। अस्पताल की चिकित्सका सुविधा आबादी के अनुसार अपग्रेड नहीं किया गया। उसका खमियाजा स्थानीय लोगों को भुगतना पड़ रहा है। ब्रिटिश काल में कांडी एक बेचिरागी गांव था। 1923 में सोन नदी में आई भीषण बाढ़ में वार्ड एंड इंकम्बर्ड इस्टेट सोनपुरा बह गया। 52 गली व 54 बाजार के लिए प्रसिद्ध सोनपुरा इस्टेट की राजधानी जल प्लावित हो गई। बाढ़ में तहस नहस हो चुके इस्टेट ने सोनपुरा से स्कूल, अस्पताल, बाजार, डाकघर सब लाकर कांडी में स्थापित किया।
वहां के लोगों को भी यहीं लाकर बसाया गया। कांडी की टोपोग्राफी अपेक्षाकृत अनुकूल थी। कांडी इतनी ऊंचाई पर था कि बाढ़ के यहां पहुंचने की कभी संभावना ही नहीं थी। वहीं का अस्पताल डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के राजकीय औषधालय के रूप में 1927 में कांडी में खुला। लोग बताते हैं कि समुचित संसाधन के अभाव के बाद भी ब्रिटिश सरकार में उक्त अस्पताल में लोगों का इलाज होता था। उन्हें यहां दवाएं भी मिलती थीं। वयोवृद्ध लोगों ने बड़े फख्र से यह संस्मरण सुनाया है। घोड़े पर चढ़कर दूर के गावों में इलाज करने जाते थे डॉक्टर: आजादी के बाद भी जब कहीं सड़क नहीं थी। गाड़ियां नहीं चलती थीं। उस दौर में इस अस्पताल में डॉक्टर द्वारिका नाथ मिश्रा पोस्टेड थे। मरीजों के आने पर यहां जितना संभव था इलाज करते थे। वहीं जो रोगी आने लायक नहीं होता उसके इलाज के लिए घोड़े पर चढ़कर मरीज के घर 10-15 किमी दूर जाया करते थे। आज सभी संसाधन होने पर भी यह अस्पताल सर्वथा साधनहीन बना हुआ है। नाम बड़ा और दर्शन छोटा वाली कहावत होती है चरितार्थ: अस्पताल को लेकर वर्षों से एक कहावत यहां लोकोक्ति बन चुकी है कि नाम बड़ा पर दर्शन थोड़ा। सवा तीन करोड़ की लागत से भव्य भवन बन बया। पहले यह राजकीय औषधालय के नाम से जाना जाता था। उनमें ग्रेजों का बनाया एक भवन भी था। वह आज भी मौजूद है। उस वक्त अस्पताल के सामने डॉक्टर का क्वार्टर भी बना हुआ था। उसमें डॉक्टर रहते थे। बाद में यह राज्य सरकार के अधीन चला गया। तब इसका नाम हो गया स्वास्थ्य उपकेंद्र कांडी। वर्षों तक अस्पताल इसी नाम से चलता रहा। उसके बाद दूसरी बार अपग्रेड हुआ तो इसका नाम हो गया अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र। अस्पताल व इसकी सुविधा में कोई बदलाव नहीं हुआ। कई दशक इसी नाम से काम चलता रहा। एक बार फिर यह अस्पताल प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हो गया। उसके बाद भी व्यवस्था ढाक के वही तीन पात जैसी ही रही। रोगी को रेफरल व सीएचसी मझिआंव रेफर किया जाता रहा। इलाज के लिए ही नहीं जांच के लिए भी। अस्पताल बदस्तूर अपग्रेड होता रहा। अब यह सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बन गया। अस्पताल का नाम बदलता गया पर व्यवस्था नहीं सुधरी। चिकित्सकों से लेकर हमेशा ही चिकित्सका सुविधाओं की कमी रही। उसका खमियाजा स्थानीय लोग भुगत रहे हैं।
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