बोले रांची: वित्त आयोग बने संरचनात्मक व औद्योगिक विकास में सहभागी
16वें वित्त आयोग की टीम 4 दिवसीय दौरे पर झारखंड आ रही है। आयोग रांची और देवघर में राज्य सरकार और स्थानीय निकायों से मिलेगी। चैंबर के प्रतिनिधियों ने आयोग से मांग की कि झारखंड को विशेष अनुदान और आर्थिक...

रांची, संवाददाता। 16वें वित्त आयोग की टीम चार दिवसीय दौरे पर बुधवार को झारखंड आ रही है। 31 मई तक के प्रस्तावित दौरे पर आयोग रांची, देवघर जिलों में राज्य सरकार, स्थानीय निकायों के प्रतिनिधियों संग बैठक करेगी। इस मुद्दे पर हिन्दुस्तान ने बोले रांची कार्यक्रम कर झारखंड चैंबर ऑफ कॉमर्स से सुझाव जाने। चैंबर प्रतिनिधियों ने कहा- राज्य सरकार को ऐसे क्षेत्रों में आयोग से आर्थिक सहयोग की मांग करनी चाहिए, जिससे राज्य का चौतरफा विकास हो। वित्त आयोग राज्य के संरचनात्मक और औद्योगिक विकास में सहभागी बने। हिन्दुस्तान के बोले रांची कार्यक्रम में चैंबर के प्रतिनिधि ने कहा कि झारखंड से कमाई के अनुरूप केंद्र सरकार द्वारा खर्च और अनुदान दिया जाना चाहिए।
झारखंड एक खनिज संपदा से भरपूर राज्य है, लेकिन इसके बावजूद यहां के लोगों को न्यायपूर्ण आवंटन नहीं मिल पाता। एक समानुपातिक अनुदान मिलने से राज्य का विकास होगा। मानव संसाधन का पलायन रोका जा सकेगा। राज्य से पलायन को रोकने के लिए रोजगार सृजन एक महत्वपूर्ण कदम है। जब युवाओं को अपने राज्य में ही रोजगार के अवसर मिलेंगे, तो वे दूसरे राज्यों में पलायन नहीं करेंगे। हमें राज्य में रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए उद्योगों को बढ़ावा देना और कौशल विकास कार्यक्रमों को मजबूत करना होगा। उन्होंने कहा कि राज्य से कृषि उत्पाद के निर्यात के लिए अविलंब समुचित आधारभूत संरचना एवं ईको सस्टिम को विकसित करने की आवश्यकता है। यहां मार्केटिंग इंफ़्रा शून्य है। प्रखंड स्तर पर गोडाउन की स्थापना, ड्राई पोर्ट का निर्माण किया जाना आवश्यक है। किसानों की आमदनी में वृद्धि हेतु उनके उत्पाद की बिक्री की व्यवस्था देश के मुख्य शहरों और विदेश में निर्यात की व्यवस्था विकसित करने की पहल होनी चाहिए। राज्य के वित्तीय प्रबंधन और अनुदान की राशि के उपयोग की भी समीक्षा जरूरी है। उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों की चुनौतियां झारखंड के कई जिले लंबे समय से उग्रवाद से प्रभावित रहे हैं, जिससे शासन, विकास और निवेश बाधित हुए हैं। इन क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। सुरक्षा बलों की तैनाती और प्रशासनिक खर्च भी अधिक होता है। ऐसे में वहां विकास योजनाओं को लागू करना कठिन होता है। आयोग से आग्रह किया जाना चाहिए कि इन विशेष परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए झारखंड को अतिरिक्त अनुदान दिया जाए। साथ ही, एलडब्लूई प्रभावित जिलों के लिए विशेष सहायता योजना बने, ताकि सामाजिक-आर्थिक मुख्यधारा में इन इलाकों को शामिल किया जा सके। चैंबर प्रतिनिधियों ने कहा कि नक्सलवाद का पूरी तरह से खात्मा तब तक संभव नहीं है, जब तक समस्या की जड़ तक नहीं जाएंगे। अगर समकालीन ये समसामयिक समस्याएं बनी रहेंगी तो फिर पैदा होंगे, इसलिए हमें करना क्या है, यह हमारा पहला फोकस प्वाइंट होना चाहिए और यह बहुत बड़ा विषय है। राज्य में पहले 19 एलडब्ल्यूई प्रभावित क्षेत्र थे, आज 5 जिले कहा जा रहा है। अब इन पांच जिलों में रोजगार कितने हैं। सुरक्षा क्या है। सामाजिक न्याय क्या है। ग्रामीण विकास कितना है। रोड अप्रोचेज कितने हैं। रोजगार के साधन कितने हैं और स्किल डेवलपमेंट कितना है, इन सब के बारे में सोचना पड़ेगा। सदस्यों ने कहा कि हमारी एक भी नदी ऐसी नहीं है, जिसका पानी कोई पी सके। राज्य में नदियों की स्थिति क्या है, कहीं कोयला धोया जाता है। इसपर बड़ी योजना तैयार की जा सकती है।इसी तरह झारखंड में जीतने ओपन कास्ट माइंड है। उसमें अरबों गैलन पानी पड़े हुए हैं, जो बर्बाद होता है। उसका उपयोग नहीं होता है। इन चीजों का आकलन करके सरकार वित्त आयोग के सामने रखे तो कोई बड़ी योजना बन सकती है। इस पानी का उपयोग को कैसे खेती के काम में या दूसरे काम में किया जा सकता है। फ्रेट इक्वलाइजेशन नीति से हुए नुकसान के भरपाई की मांग पूर्व राज्यसभा सांसद ने कहा कि 1992 में स्टील पर फ्रेट इक्वलाइजेशन नीति लागू हुई और तय हुआ कि देश में लोहा एक दाम में बिकेगा। उस समय झारखंड अकेला राज्य था, जहां दो स्टील प्लांट थे। इससे राज्य को दशकों तक काफी नुकसान हुआ। इसकी भरपाई होनी चाहिए। कहा कि जिस राज्य से मजदूर पलायन होते हैं, वहां से पूंजी और टैलेंट का भी पलायन होता है। आयोग विचार करे कि यहां से श्रम क्यों निर्यात होता है? खनिज संपदा होने के बावजूद राज्य को इससे कम लाभ चैंबर प्रतिनिधियों बोले- रिन्यूएबल एनर्जी, औद्योगिक क्षेत्रों में इनपे बड़े पैमाने पर हम निवेश करें, तो वित्त आयोग इसमें कुछ हमें समर्थन दे सकता है। खनिज संपदा होने के बाद भी राज्यों को इससे कम लाभ होता है। फॉरेस्ट होने के कारण हम बहुत कुछ नहीं कर पाते। जनजातीय क्षेत्र होने के कारण उनकी संरक्षण की जिम्मेवारी के कारण भी हमें कुछ आर्थिक नुकसान होता है। उसकी भरपाई कैसे होगी, आयोग इसका भी तरीका निकाले। विस्थापितों के पुनर्वास के लिए राज्य में आदर्श ग्राम होने चाहिए हम आयोग से यह भी अपेक्षा करते हैं कि झारखंड जैसे जनजातीय क्षेत्र में जहां किसी कारण से विस्थापन होता है, उनका पुनर्वास किया जाए। अब तक बड़े पैमाने पर पलायन हुए हैं। पुनर्वास नहीं हो पाया है। जब देश आगे बढ़ रहा है तो इन लोगों के लिए भी इनके पुनर्वास के लिए कुछ आदर्श ग्राम होने चाहिए, ताकि भविष्य में विस्थापन का उतना विरोध नहीं हो, जो अभी हम देख रहे हैं और वह विकास के आड़े नहीं आए। राज्य के लिए विशेष अनुदान की मांग हो झारखंड को वित्त आयोग के समक्ष अपने पक्ष को तथ्यों, आंकड़ों और क्षेत्रीय विषमताओं के आधार पर ठोस तरीके से रखना होगा। राज्य को चाहिए कि वह सामाजिक सूचकांकों, खनिज दोहन के नुकसान, एलडब्लूई के प्रभाव और संसाधन जुटाने की सीमाओं को विस्तृत रूप से प्रस्तुत करे। आयोग के समक्ष यह भी रखा जाए कि प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध होते हुए भी झारखंड को पर्यावरणीय नुकसान, विस्थापन और सामाजिक तनाव झेलना पड़ता है। नीति निर्माताओं, विशेषज्ञों और जनप्रतिनिधियों की भागीदारी से एक ठोस मेमोरेंडम तैयार कर राज्य को विशेष श्रेणी का दर्जा और विशेष अनुदान की मांग मजबूती से रखनी चाहिए। बुनियादी ढांचे के लिए अलग से वित्तीय सहायता मिलनी चाहिए झारखंड में अभी भी अनेक ग्रामीण और अर्ध शहरी क्षेत्रों में सड़क, बिजली, शुद्ध पेयजल और इंटरनेट जैसी बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है। इससे न केवल नागरिकों की जीवन गुणवत्ता प्रभावित होती है, बल्कि निवेश और औद्योगिक विकास भी बाधित होता है। 16वें वित्त आयोग को यह बताया जाना चाहिए कि राज्य की भौगोलिक विषमताएं और खनिज संसाधनों की उपस्थिति के बावजूद झारखंड अभी तक मूलभूत संरचना में पिछड़ा हुआ है। ग्राम सड़कों, ग्रामीण विद्युतीकरण, जलापूर्ति योजनाओं और डिजिटल कनेक्टिविटी के लिए अलग से वित्तीय सहायता आवश्यक है। डिजिटल इंडिया के लक्ष्य को तभी साकार किया जा सकता है, जब झारखंड जैसे राज्यों को बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में प्राथमिकता दी जाए। साथ ही, योजनाओं के कार्यान्वयन के लिए स्थानीय निकायों को सशक्त बनाने की दिशा में वित्तीय आयोग को ठोस सुझाव देने चाहिए। झारखंड की सामाजिक क्षेत्र में स्थिति चिंताजनक है। राज्य की साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत से नीचे है। स्कूलों में शैक्षणिक और आधारभूत ढांचे की भारी कमी है। स्वास्थ्य क्षेत्र में चिकत्सिकों की कमी, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की बदहाल स्थिति है। :: बोले सदस्य :: इंफ्रास्ट्रक्चर में केवल सड़क, रेल, यातायात नहीं, बल्कि बिजली, औद्योगिक क्षेत्र के हर वर्ग के लिए पानी और व्यापार की सुगमता इन सब पर भी उतना ही ध्यान दिया जाय। क्योंकि, इसकी कमजोरी हमारी वित्तीय व्यवस्था को कमजोर करती है। झारखंड में शिकायत रहती है कि बैंकों का सीडी रेश्यो कम है, जो आयोग का भी चिंता का विषय होना चाहिए। -महेश पोद्दार, पूर्व राज्यसभा सांसद झारखंड में जीतने ओपन कास्ट माइंस हैं, उसमें अरबों गैलन पानी पड़े हुए हैं। जो बर्बाद होता है, उसका उपयोग नहीं होता है। इन चीजों का आकलन करके सरकार वित्त आयोग के सामने रखे तो कोई बड़ी योजना बन सकती है। खपत के मामले में भी हमारा राज्य पीछे है। इसलिए खपत बढ़ना चाहिए, इससे उपभोग बढ़ेगा तो बाजार बढ़ेगा, बाजार बढ़ेगा तो आय होगी। -अयोध्यानाथ मिश्र राज्य में लघु वनोपज का उत्पादन होता है। परन्तु समुचित बाजार व्यवस्था नहीं रहने से किसानों को उचित मूल्य नहीं मिल पाता है। -प्रमोद सारस्वत वित्त आयोग से निवेदन है कि स्वास्थ्य, कृषि, टूरिज्म, शिक्षा, जल संचयन, ऊर्जा और रोड इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए पर्याप्त सहायता की जाय। -मुकेश अग्रवाल हम खनन प्रभावित क्षेत्रों में एनवायरमेंटल रेस्टोरेशन और स्वास्थ्य सेवा के लिए ग्रीन कंपनसेशन फंड या उच्च अनुदान के निर्माण की मांग करते हैं। -आदित्य मल्होत्रा ग्रामीण क्षेत्रों से जिला मुख्यालय आने में घंटों लगते हैं। इसके लिए अच्छे संपर्क पथ बनाये जाने के लिए विशेष सहायता निधि की जरूरत है। -किशन अग्रवाल झारखंड एक खनिज संपदा से भरपूर राज्य है। लेकिन, इसके बावजूद यहां के लोगों को न्यायपूर्ण आवंटन नहीं मिल पाता। -आनंद कोठारी पंचायत स्तर पर रोजगार का सृजन और उसमे महिलाओं की भागीदारी जरूरी है। विशेष पैकेज के रूप में अनुदान देने पर विचार किया जाय। -रमेश साहू पंचायतों के विकास के लिए वित्त आयोग से धनराशि की अपेक्षा है। पर्याप्त अनुदान नहीं मिलने के कारण पंचायतों में विकास कार्य ठप हैं। -राजू चौधरी हमें राज्य में रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए उद्योगों को बढ़ावा देना और कौशल विकास कार्यक्रमों को मजबूत करना होगा। -तेजविंदर सिंह किसानों की आमदनी में वृद्धि हेतु उनके उत्पाद की बिक्री की व्यवस्था देश के मुख्य शहरों और विदेश में निर्यात की व्यवस्था की पहल होनी चाहिए। -कार्तिक प्रभात रेल, रोड इंफ्रास्ट्रक्चर, पेयजलापूर्ति, पर्याप्त विद्युत आपूर्ति व उपयुक्त स्वास्थ्य सुविधा को विकसित करने के लिए आयोग विशेष अनुदान दे। -नवजोत अलंग आयोग राज्य सरकार को फिल्म, कला, संस्कृति के लिए अनुदान राशि दे। सब्सिडी नहीं मिलने से निर्माता निदेशक कार्य नहीं कर पा रहे। -आनंद जालान राज्य के खनिज संसाधन, वनों और पारंपरिक कारीगरी को आधार बनाकर स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजन के लिए पैकेज मिले। -रोहित अग्रवाल
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