खाना पकाते वक्त इन बातों का रखें ध्यान, शरीर को मिलेगा सही पोषण
भोजन का असली मकसद शरीर को तंदुरुस्त बनाना है। स्वाद के साथ सेहत की जुगलबंदी से ही बात बनेगी। आपके हाथों से बना खाना कैसे रहेगा सेहतमंद भी, बता रही हैं स्वाति शर्मा

मां चाहे बच्चों और परिवार को पोषण भरा भोजन देना, लेकिन बच्चों को चाहिए होता है बाहर जैसा कुछ लजीज खाना। बाहर के खाने में उन्हें स्वाद ज्यादा मिलता है, फिर चाहे वह सेहतमंद हो या नहीं। वहीं अगर आप घर पर सेहत का ख्याल रखते हुए भोजन पकाएं तो स्वाद से ही सबसे ज्यादा समझौता करना पड़ जाता है। ऐसे में बच्चे घर के खाने से बचने की कोशिश करते हैं। उन्हें लुभाने के लिए कभी-कभी भोजन पकाते समय आप सेहत और स्वाद का तालमेल बनाने की जुगत लगाने लगती हैं। पर अकसर इस प्रक्रिया में आप कुछ ऐसी गलतियां कर रही होती हैं, जो सेहत से खिलवाड़ कर सकती हैं। अगर परिवार को सेहतमंद रखना है तो भोजन पकाने में कुछ बातों की सावधानी बरतनी होगी:
बर्तन भी सेहत के लिए जिम्मेदार
घर में खाना पकाते समय सबसे पहले सही बर्तन का चुनाव करना जरूरी है। सबसे पहले घर से एल्युमिनियम के बर्तन हटा दें क्योंकि ये स्वास्थ्य को बहुत ज्यादा प्रभावित करते हैं। इसकी जगह आप स्टील के कुकर इस्तेमाल कर सकती हैं। नॉनस्टिक की जगह कास्ट आयरन के बर्तन और अन्य सब्जियों के लिए लोहे के बर्तन ले सकती हैं। पीतल के बर्तन भी सेहतमंद होते हैं, लेकिन उसमें दूध या खट्टा भोजन नहीं पकाएं।
पकाने का तरीका भी रखता है मायने
भोजन पकाने के लिए आप क्या तरीका अपना रही हैं, यह भी आपके भोजन की गुणवत्ता तय करता है। शेफ रिया पांडे कहती हैं कि भोजन को स्टीम, बेक या ग्रिल करने पर अतिरिक्त तेल से बचा जा सकता है। खाना पकाने के इन तरीकों में वसा की मात्रा भी कम होती है और भोजन को कोई नुकसान भी नहीं पहुंचता। डीप फ्राई की जगह एयर फ्रायर का इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके साथ ही खाने को बार-बार गर्म करने से भी बचना चाहिए। इससे भोजन का पोषण खत्म हो जाता है। कुछ भोजन जिन्हें उबालने की जगह भूनने का विकल्प भी मौजूद है, वहां भूनना बेहतर होता है।
सामग्री में करें बदलाव
आप घर पर ही कई व्यंजन बेहतर तरीके से बना सकती हैं। रिया कहती हैं कि इन दिनों ग्लूटन एलर्जी अपने आप में एक समस्या है। इससे बचने के लिए शुद्ध गेहूं के आटे की जगह ज्यादा फाइबर वाला आटा इस्तेमाल करें, जैसे आप रागी, जौ और चना के आटे को गेहूं के आटे में मिला सकती हैं या केवल इनकी रोटी बना सकती हैं। गेहूं का आटा भी बिना छाने इस्तेमाल करना बेहतर रहता है। इसी प्रकार रिफाइंड या वेजिटेबल ऑयल से बचें और उसकी जगह देसी घी, सरसों का तेल या ऑलिव ऑयल का इस्तेमाल करें। साधारण चावल की जगह आप ब्राउन राइस इस्तेमाल कर सकती हैं। भोजन पकाते समय उसमें ज्यादा से ज्यादा सब्जियां डालें, सब्जियों को बारीक काटने से वह आसानी से खाई जा सकती हैं। आलू से बचना है तो उसकी जगह उबले काले चने इस्तेमाल कर सकती हैं।
तड़के को न करें नजरअंदाज
भोजन में तड़के की खास भूमिका होती है। तड़के से मसालों की गुणवत्ता बरकरार रहती है और वह भोजन में आसानी से घुल जाती है। भोजन में तेल कम रखना है, तो आप धुएं का तड़का भी लगा सकती हैं। इसके लिए मिट्टी के दिए में जलता हुआ कोयला रखें और उसमें मसाले डाल दें। धुंआ आने पर उसे भोजन के बीच में संभालकर रखें और पैन को ढक दें। धुएं से तड़के की खुशबू खाने में समा जाएगी।
बाहर के भोजन में रखें खयाल
घर पर खाना बनाने के लिए अगर ब्रेड जैसी सामग्री बाहर से खरीद रही हैं तो यह जरूर जांचें कि वह प्राकृतिक तौर पर फर्मेंट किया गया हो। यही ख्याल आपको घर पर भी भोजन फर्मेंट करते समय रखना होगा। यानी भटूरे के मैदा को प्राकृतिक तौर पर फर्मेंट होने दें, न कि उसे यीस्ट या ईनो डालकर जल्दबाजी में बनाने की कोशिश करें। बाहर के पास्ता की जगह आप घर पर ही सूजी या आटे से ताजा पास्ता बना सकती हैं, यह बेहद आसान होता है।
जैसा प्रांत, वैसा भोजन
पोषण विशेषज्ञ मोनिका वासुदेव कहती हैं कि भारत के विभिन्न राज्यों के खानपान में उतनी ही विविधता है, जितनी विविधता यहां की बोलियों में है। खानपान की विविधता के लिए भौगोलिक स्थिति, मौसम, संस्कृति से लेकर उस इलाके की परंपरा तक जिम्मेदार है। उत्तर भारत के मुगलई व्यंजन में जहां केसर, इलायची जैसे मसालों का इस्तेमाल होता है और उन्हें दही और क्रीम में पकाकर तरह-तरह के फ्लेवर तैयार किए जाते हैं। वहीं, दूसरी ओर दक्षिण भारतीय खानपान का झुकाव शाकाहार की ओर ज्यादा है। चावल और उड़द दाल के घोल का इस्तेमाल वहां के व्यंजनों जैसे इडली, डोसा और उत्तपम में ज्यादा किया जाता है। उत्तर भारत के खानपान अपने स्वाद और फ्लेवर की वजह से जाने जाते हैं, जबकि दक्षिण भारतीय खानपान आंत से लेकर दिल की सेहत को दुरुस्त रखने के लिए प्रसिद्ध है। दक्षिण भारतीय खानपान में साबुत अनाज और फर्मेंटेशन की प्रक्रिया को अपनाया जाता है, जो इसे सेहत के लिए ज्यादा फायदेमंद बनाता है। पर, अलग-अलग क्षेत्र के खानपान को अपनाते वक्त यह जरूर ध्यान रखें कि हर इलाके की भौगोलिक स्थितियां और मौसम वहां के खानपान के तौर-तरीकों को निर्धारित करता है। ऐसे में अगर आप गर्म इलाके में रहकर केसर, लाल मिर्च और दालचीनी आदि से भरपूर पारंपरिक कश्मीरी व्यंजन रोज खाएंगी तो आपके पाचन तंत्र पर दबाव बढ़ेगा। वहीं राजस्थान और महाराष्ट्र का खूब मसालेदार व्यंजन अगर बिहार में रहने वाला व्यक्ति नियमित रूप से खाने लगे तो उसकी भी सेहत बिगड़ जाएगी।
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