लकड़ी नहीं गोबर के उपलों से करें होलिका दहन, धर्म के साथ विज्ञान से भी जुड़े हैं फायदे
- धार्मिक मान्यताओं के अनुसार होली दहन के दिन गोबर के उपलों से जलने वाली अग्नि बुरी शक्तियों को खत्म करके जीवन में सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाती है। जबकि प्राचीन चिकित्सा पद्धति में गोबर को शुद्धिकरण के लिए प्रयोग किया जाता रहा है।

हर साल फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को होलिका दहन का पर्व मनाया जाता है। इस साल यह उत्सव आज यानी 13 मार्च को मनाया जाएगा। आज देश भर में होलिका जलाई जाएगी। भले ही होलिका दहन का सनातन धर्म में खास महत्व माना गया है। लेकिन यह परंपरा सिर्फ अपनी धार्मिक मान्यताओं तक ही सीमित नहीं है। इसके पीछे गहरे वैज्ञानिक और पारंपरिक कारण भी छिपे हुए हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार होली दहन के दिन गोबर के उपलों से जलने वाली अग्नि बुरी शक्तियों को खत्म करके जीवन में सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाती है। जबकि प्राचीन चिकित्सा पद्धति में गोबर को शुद्धिकरण के लिए प्रयोग किया जाता रहा है। इसके अलावा यह परंपरा पर्यावरण संरक्षण को भी बढ़ावा देती है। आइए जानते हैं आखिर क्यों होलिका दहन पर लकड़ी के जगह गोबर के उपलों का यूज करना चाहिए।
होलिका दहन पर गोबर के उपलों को जलाने से मिलते हैं ये फायदे
पर्यावरण संरक्षण
होलिका दहन पर लकड़ी जलाने से वायु में प्रदूषण का स्तर बढ़ता है जबकि गाय के गोबर के उपलों को हालिका दहन के लिए यूज करने से उसमें से कम धुआं निकलता है, जिससे प्रदूषण कम होता है।
एंटीबैक्टीरियल गुण
गाय के गोबर में एंटीबैक्टीरियल और एंटीफंगल गुण होते हैं, जो हानिकारक कीटाणुओं को नष्ट करने में मदद करते हैं।
सस्ते होते हैं
गोबर से बने उपले लकड़ी की तुलना में ज्यादातर सस्ते और आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं।
मिट्टी के लिए अच्छा
गोबर जलने के बाद जो राख बचती है, वह पौधों के लिए प्राकृतिक खाद का काम करती है, जिससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है। गोबर में पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्व, जैसे नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम होते हैं, जो मिट्टी की संरचना में सुधार करते हैं।
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