महाराष्ट्र में तीसरी भाषा के रूप में हिंदी अनिवार्य करने पर मचा बवाल, उद्धव गुट और MNS ने जताया विरोध
- संजय राउत ने बीजेपी नेताओं पर भी निशाना साधा और पूछा कि जब राज्य में मराठी को बढ़ावा देने की बात आती है तो बीजेपी नेता चुप क्यों रहते हैं।

महाराष्ट्र सरकार के प्राथमिक विद्यालयों में मराठी और अंग्रेजी माध्यम के छात्रों के लिए हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा बनाए जाने के निर्णय ने राजनीतिक हलचल मचा दी है। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के विरोध के बाद अब शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) ने भी देवेंद्र फडणवीस सरकार के इस कदम का खुलकर विरोध किया है।
राज्यसभा सांसद संजय राउत ने सरकार के फैसले को खारिज करते हुए कहा, “हिंदी पहले से ही महाराष्ट्र में बोली जाती है। हमें हिंदी सीखने की क्या जरूरत है? यह वही भूमि है जहां हिंदी सिनेमा का सूरज उगा है। यहां हिंदी फिल्म उद्योग फला-फूला है। हम हिंदी फिल्में देखते हैं, हिंदी गाने सुनते हैं। आप हमें कौन-सी नई हिंदी सिखाएंगे?”
संजय राउत ने आगे कहा, “अगर हिंदी को अनिवार्य करना ही है तो तमिलनाडु, केरल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश या पूर्वोत्तर राज्यों में कीजिए, जहां इसका प्रयोग कम होता है। महाराष्ट्र में मराठी को प्राथमिकता मिलनी चाहिए, यही हमारी मातृभाषा है। यह राज्य की भाषा है, फिर भी कई स्कूलों में मराठी पढ़ाई नहीं जाती। यह केवल कागजों पर अनिवार्य है।”
अंतरराष्ट्रीय स्कूलों में मराठी अनिवार्य क्यों नहीं?
संजय राउत ने बीजेपी नेताओं पर भी निशाना साधा और पूछा कि जब राज्य में मराठी को बढ़ावा देने की बात आती है तो बीजेपी नेता चुप क्यों रहते हैं। उन्होंने सवाल उठाया, “सरकार अंतरराष्ट्रीय स्कूलों में मराठी को अनिवार्य क्यों नहीं बनाती?”
मनसे पहले ही कर चुकी है विरोध
इससे पहले राज ठाकरे की मनसे ने भी इस फैसले पर आपत्ति जताई थी और इसे राज्य की भाषाई अस्मिता पर हमला बताया था। मनसे ने स्पष्ट किया कि मराठी भाषी राज्य में किसी अन्य भाषा को अनिवार्य करना मराठी भाषा और संस्कृति के साथ अन्याय है।
महाराष्ट्र सरकार के इस फैसले ने भाषाई और सांस्कृतिक पहचान को लेकर फिर से बहस छेड़ दी है। जहां एक ओर राज्य सरकार इस निर्णय को राष्ट्रीय एकता की दिशा में एक कदम बता रही है, वहीं दूसरी ओर स्थानीय दल इसे क्षेत्रीय अस्मिता पर हमला मान रहे हैं।