न्यायिक आतंकवाद से बचें; CJI गवई बोले- कोर्ट को नहीं लांघनी चाहिए अपनी सीमाएं
CJI गवई ने डॉ. भीमराव अंबेडकर के विचारों को उदाहरण के तौर पर पेश करते हुए कहा कि लोकतंत्र तभी टिकाऊ होता है जब सत्ता केवल संस्थाओं के बीच ही नहीं, बल्कि समुदायों के बीच भी वितरित हो।

भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बीआर गवई ने मंगलवार को कहा कि देश में न्यायिक सक्रियता की भूमिका बनी रहेगी, लेकिन इसे इतना नहीं बढ़ाना चाहिए कि यह न्यायिक आतंकवाद का रूप ले ले। उन्होंने स्पष्ट किया कि जब विधायिका और कार्यपालिका नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने में असफल रहती हैं, तब न्यायपालिका को हस्तक्षेप करना पड़ता है। लेकिन इस हस्तक्षेप की सीमा और मर्यादा होनी चाहिए।
उन्होंने कहा, “न्यायिक सक्रियता बनी रहेगी। लेकिन कभी-कभी जब सीमाएं लांघी जाती हैं और न्यायपालिका उन क्षेत्रों में प्रवेश करती है जहां उसे नहीं करना चाहिए, तब यह चिंता का विषय बन जाता है।”
CJI गवई ने कहा कि न्यायिक समीक्षा का उपयोग केवल विशेष परिस्थितियों में होना चाहिए। उन्होंने कहा, “यह शक्ति केवल तब प्रयोग की जानी चाहिए जब कोई कानून संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन करता हो या किसी मौलिक अधिकार के प्रतिकूल हो या जब वह पूरी तरह मनमाना व भेदभावपूर्ण हो।”
उन्होंने यह विचार ऑक्सफोर्ड यूनियन में ‘From Representation to Realization: Embodying the Constitution’s Promise’ विषय पर आयोजित कार्यक्रम में रखा। इस आयोजन का संयोजन एडवोकेट तन्वी दुबे और ऑक्सफोर्ड यूनियन ने किया था।
अपने संबोधन में न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि एक समय था जब लाखों भारतीयों को अछूत कहा जाता था, लेकिन आज उसी समुदाय से आए व्यक्ति को देश की सर्वोच्च न्यायिक जिम्मेदारी मिली है जो भारतीय संविधान की समानता की भावना का प्रत्यक्ष उदाहरण है। उन्होंने कहा, “भारतीय संविधान उन लोगों की धड़कनों को संजोए हुए है जिन्हें कभी सुना नहीं गया। यह न केवल अधिकारों की रक्षा करता है, बल्कि उन्हें सशक्त करने, सुधारने और न्याय दिलाने के लिए राज्य को बाध्य करता है।”
CJI गवई ने डॉ. भीमराव अंबेडकर के विचारों को उदाहरण के तौर पर पेश करते हुए कहा कि लोकतंत्र तभी टिकाऊ होता है जब सत्ता केवल संस्थाओं के बीच ही नहीं, बल्कि समुदायों के बीच भी वितरित हो।