भारत को दोहरा झटका देगा चीन, ब्रह्मपुत्र नदी के रास्ते आने वाले खतरों पर एक्सपर्ट्स ने चेताया
- सांसद और बीजेपी नेता तापिर गाव ने इसे 'जल बम' बताते हुए चेतावनी दी कि ये डैम भविष्य में भारत समेत अन्य निचले क्षेत्रों के देशों के लिए खतरा बन सकता है।

चीन द्वारा तिब्बत में यारलुंग त्सांगपो नदी (जो भारत में ब्रह्मपुत्र कहलाती है) पर बनाए जा रहे प्रस्तावित ग्रेट बेंड डैम को लेकर अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों ने गंभीर चिंता जताई है। गुवाहाटी में आयोजित इंटरनेशनल सेमिनार ऑन वॉटर सिक्योरिटी, इकोलॉजिकल इंटीग्रिटी एंड डिजास्टर रेजिलिएंस में भाग लेते हुए विशेषज्ञों ने इस बांध को भारत और दक्षिण एशिया के लिए एक जल संकट का कारण बताया।
तिब्बत मामलों के जानकार और लेखक क्लॉड आर्पी ने कहा कि चीन इस डैम को सिर्फ पावर जेनरेशन के लिए नहीं बना रहा, बल्कि वह यारलुंग त्सांगपो के पानी को येलो रीवर की ओर मोड़ने की योजना भी बना रहा है। यह डैम तिब्बत के मेडोंग काउंटी में बनाया जा रहा है और इसका लक्ष्य 60,000 मेगावाट बिजली उत्पादन है।
बीजेपी सांसद ने बताया इसे बम
अरुणाचल प्रदेश से लोकसभा सांसद और बीजेपी नेता तापिर गाव ने इसे 'जल बम' बताते हुए चेतावनी दी कि ये डैम भविष्य में भारत समेत अन्य निचले क्षेत्रों के देशों के लिए खतरा बन सकता है। उन्होंने याद दिलाया कि जून 2000 में यारलुंग त्सांगपो में अचानक पानी छोड़ने से अरुणाचल की सियांग नदी में भीषण बाढ़ आई थी, जिसमें 10 से ज्यादा पुल बह गए थे। उन्होंने यह भी कहा कि अरुणाचल प्रदेश के सियांग नदी पर भारत को भी एक डैम बनाना चाहिए ताकि चीन के डैम से आने वाले संभावित जल प्रवाह को नियंत्रित किया जा सके।
किस ओर हैं चीन की निगाहें
एशिया मामलों के जानकार बर्टिल लिंटनर ने कहा कि चीन ने तिब्बत में अपने कब्जे की शुरुआत ही बड़ी नदियों पर नियंत्रण के लिए की थी। उन्होंने बताया कि चीन ने अकेले मेकोंग नदी पर ही 11 मेगा डैम बना डाले हैं, जो पांच देशों की जीवनरेखा है। ब्रह्मपुत्र बोर्ड के चेयरमैन डॉ. रणबीर सिंह ने बताया कि ब्रह्मपुत्र भारत का इकलौता जल-समृद्ध बेसिन है और अगर चीन का ये डैम बनता है तो भारत का ये क्षेत्र भी जल-संकट से जूझ सकता है। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की आवाज बुलंद करने और वैज्ञानिक स्टडीज के जरिए चीन की योजना को चुनौती देने की बात कही।
बढ़ सकता है सूखे का खतरा
आईआईटी गुवाहाटी की प्रो अनामिका बरुआ ने तकनीकी सत्र में बताया कि तिब्बती पठार के नीचे के इलाकों में भविष्य में सूखे का खतरा बढ़ सकता है, जबकि ऊपरी हिस्सों में अधिक बारिश होने की संभावना है। उन्होंने संसद और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाने की अपील की। गौरतलब है कि नेपाल और भूटान के विशेषज्ञों समेत पर्यावरण, जल नीति, अंतरराष्ट्रीय कानून, इंजीनियरिंग और आर्थिक मामलों के जानकारों ने भी सेमिनार में हिस्सा लिया।