Human rights are going through difficult phase in the country former Supreme Court judge expressed concern देश में मुश्किल दौर से गुजर रहा है मानवाधिकार, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज ने जताई चिंता, India Hindi News - Hindustan
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देश में मुश्किल दौर से गुजर रहा है मानवाधिकार, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज ने जताई चिंता

  • न्यायमूर्ति श्रीकृष्ण ने देश में मानवाधिकारों और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के उल्लंघन पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि न्याय में देरी न्याय से इनकार है।

Madan Tiwari भाषा, नई दिल्लीSun, 30 March 2025 10:54 PM
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देश में मुश्किल दौर से गुजर रहा है मानवाधिकार, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज ने जताई चिंता

सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस बी एन श्रीकृष्ण ने रविवार को यहां कहा कि देश में मानवाधिकार का मामला मुश्किल दौर से गुजर रहा है, क्योंकि उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालयों और निचली अदालतों में पांच करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं। न्यायमूर्ति श्रीकृष्ण ने लोकतांत्रिक अधिकार और धर्मनिरपेक्षता संरक्षण समिति (सीपीडीआरएस) द्वारा आयोजित लोकतांत्रिक अधिकारों और धर्मनिरपेक्षता पर एक राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए यह टिप्पणी की।

न्यायमूर्ति श्रीकृष्ण ने देश में मानवाधिकारों और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के उल्लंघन पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा, ''न्याय में देरी न्याय से इनकार है।'' उन्होंने कहा कि असहमति और विरोध की आवाज उठाने का अधिकार लोकतंत्र की आत्मा है। न्यायमूर्ति श्रीकृष्ण ने कहा कि लोकतंत्र में सभी नागरिकों के साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए, कानून का शासन कायम रहना चाहिए और धर्मनिरपेक्षता का अर्थ अन्य धार्मिक विश्वासों को भी सहन करने की क्षमता होना चाहिए। उन्होंने कहा, ''लेकिन भारत में अब ये सभी प्रमुख मूल्य खतरे में हैं।''

पूर्व न्यायाधीश ने कहा कि पिछले 10 वर्षों से देश में न्यायिक स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को गंभीर खतरा है। उन्होंने कहा, ''नागरिक समाज को लोगों के अधिकारों पर हो रहे इन हमलों से लड़ने के लिए आगे आना होगा।'' शीर्ष अदालत के सेवानिवृत्त न्यायाधीश ए के पटनायक ने हिरासत में मौत, फर्जी मुठभेड़ और जेलों में यातना के मुद्दों को रेखांकित करते हुए कहा कि देश में लोकतांत्रिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार संस्थाएं ही इनका सबसे अधिक उल्लंघन कर रही हैं। उन्होंने कहा, ''लोकतांत्रिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार संस्थाएं ही इनका सबसे अधिक उल्लंघन कर रही हैं। हिरासत में मौतें, फर्जी मुठभेड़ और जेल में यातनाएं बढ़ने की घटनाएं बढ़ी हैं।''

न्यायमूर्ति पटनायक ने कहा, ''एक समतामूलक समाज के बजाय, संपत्ति कुछ लोगों के हाथों में केंद्रित हो रही है और जिस तरह से समाज विभाजित हो रहा है, मुझे लगा कि अब मुझे अपनी बात कहनी ही होगी।’’ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि भारत में मौलिक अधिकारों का बड़े पैमाने पर हनन हो रहा है। उन्होंने कहा, ''संवैधानिक संस्थाओं को नष्ट कर दिया गया है और कठोर कानून लागू किये गये हैं।'' भूषण ने कहा कि निर्वाचन आयोग और नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक सत्तारूढ़ शासन के पिछलग्गू बनने के जीवंत उदाहरण हैं।