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भारत या चीनी कैमरे: नई नीति से कौन जीतेगा, कौन हारेगा?

भारत ने सभी सीसीटीवी और सुरक्षा कैमरों की टेस्टिंग के लिए नए सख्त नियम लागू किए हैं। यह कदम चीन से जासूसी के खतरे के कारण उठाया गया है। कंपनियों को अपने हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर का परीक्षण सरकारी लैब...

डॉयचे वेले दिल्लीWed, 28 May 2025 01:36 PM
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भारत या चीनी कैमरे: नई नीति से कौन जीतेगा, कौन हारेगा?

भारत ने सभी सीसीटीवी और अन्य सुरक्षा कैमरों की टेस्टिंग के लिए नए और ज्यादा सख्त नियम लागू किए हैं.इसकी वजह चीन से जासूसी के खतरे को बताया गया है.लेकिन उद्योग जगत इससे काफी परेशान है.समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने खबर दी है कि भारत ने सीसीटीवी कैमरों के लिए नए नियम लागू किए हैं.इनके तहत निर्माताओं को हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर और सोर्स कोड सरकारी लैब में परीक्षण के लिए जमा कराने होंगे.यह जानकारी सरकारी दस्तावेजों और कंपनियों के ईमेल के जरिए सामने आई है.निगरानी उपकरण बनाने वाली वैश्विक कंपनियों और भारत सरकार के बीच हाल के हफ्तों में सुरक्षा नियमों को लेकर विवाद हुआ है क्योंकि नई सुरक्षा नीति सप्लाई चेन में रुकावट की वजह बन सकती है.इस कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार और विदेशी कंपनियों के बीच नियमों को लेकर पहले से चल रहे मतभेदों को और गहरा कर सकती है.भारत का रुख काफी हद तक चीन की निगरानी क्षमताओं के कारण है.एक वरिष्ठ भारतीय अधिकारी के अनुसार, 2021 में भारत सरकार ने बताया था कि सरकारी संस्थानों में 10 लाख कैमरे चीनी कंपनियों के हैं और इनसे जुड़ा डेटा विदेशी सर्वरों पर भेजा जाता है, जिससे सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है.नई नीति के तहत अप्रैल से लागू नियमों में कहा गया है कि चीन की हाइकविजन, श्याओमी और दाहुआ, दक्षिण कोरिया की हानवा और अमेरिका की मोटोरोला सॉल्यूशंस जैसी कंपनियों को अपने कैमरे भारतीय सरकारी लैब में टेस्ट कराकर ही भारत में बेचने होंगे.ये नियम सभी इंटरनेट से जुड़े सीसीटीवी मॉडल पर 9 अप्रैल से लागू हो गए हैं.भारत के पूर्व साइबर सुरक्षा प्रमुख गुलशन राय ने रॉयटर्स से कहा, "हमेशा जासूसी का खतरा बना रहता है.कोई भी इंटरनेट से जुड़े कैमरों को दूर से नियंत्रित कर सकता है.इसलिए ये सिस्टम मजबूत और सुरक्षित होने चाहिए"3 अप्रैल को भारतीय अधिकारियों ने 17 घरेलू और विदेशी कैमरा निर्माताओं से मुलाकात की थी.ज्यादातर कंपनियों ने बताया कि वे इन नियमों को पूरा करने के लिए तैयार नहीं हैं और उन्होंने इसे लागू करने के लिए अतिरिक्त समय की मांग की, जो खारिज कर दी गई. सरकार ने अपने आधिकारिक रिकॉर्ड में कहा, "यह नीति सुरक्षा मुद्दे से जुड़ी है और इसे लागू करना जरूरी है"सुरक्षा है मकसददिसंबर में भारत ने कहा था कि ये नियम किसी विशेष देश के लिए नहीं हैं बल्कि देश में निगरानी प्रणाली की गुणवत्ता और साइबर सुरक्षा बढ़ाने के लिए लाए गए हैं.पिछले साल एक रिपोर्ट आई थी कि चीनी कंपनी ने भारत सरकार की जासूसी की.रॉयटर्स ने दर्जनों दस्तावेजों, मीटिंग रिकॉर्ड्स और ईमेल की समीक्षा की है जिनमें यह दिखता है कि कंपनियों और भारतीय आईटी मंत्रालय के बीच किस तरह संवाद हुआ.कंपनियों ने कहा कि लैब की सीमित क्षमता, लंबी फैक्ट्री जांच प्रक्रिया और सोर्स कोड की समीक्षा से मंजूरी में देरी हो रही है और इससे कई इन्फ्रास्ट्रक्चर और कारोबारी परियोजनाएं बाधित हो सकती हैं.हानवा के दक्षिण एशिया निदेशक अजय दुबे ने 9 अप्रैल को आईटी मंत्रालय को ईमेल में लिखा, "उद्योग को इससे करोड़ों डॉलर का नुकसान होगा और बाजार में बड़ी हलचल मच जाएगी"आईटी मंत्रालय और ज्यादातर कंपनियों ने इस रिपोर्ट पर कोई टिप्पणी नहीं की, हालांकि मंत्रालय ने 3 अप्रैल को कहा था कि वह और लैब को मान्यता देने पर विचार कर सकता है.पिछले कुछ वर्षों में भारत के शहरों, दफ्तरों और हाउसिंग सोसाइटियों में लाखों सीसीटीवी लगाए गए हैं.सरकारी आंकड़ों के अनुसार, सिर्फ दिल्ली में ही 2.5 लाख से ज्यादा कैमरे लगे हैं.काउंटरपॉइंटर रिसर्च नामक संस्था के विश्लेषक वरुण गुप्ता के अनुसार, भारत का सीसीटीवी बाजार 2030 तक 7 अरब डॉलर का हो सकता है, जो पिछले साल 3.5 अरब डॉलर था.गुप्ता के मुताबिक, बाजार में चीन की हाइकविजन और दाहुआ की 30 फीसदी हिस्सेदारी है, जबकि भारतीय कंपनी सीपी प्लस का 48 फीसदी बाजार पर कब्जा है.लेकिन 80 फीसदी से अधिक कंपोनेंट चीन से आते हैं.कंपनियों का कहना है कि टेस्टिंग और नए नियमों के कारण उनके उत्पादों को मंजूरी नहीं मिल रही है.हानवा, मोटोरोला और ब्रिटेन की नॉर्डन कम्यूनिकेशन ने अप्रैल में सरकार को बताया कि 6,000 मॉडलों में से कुछ ही को मंजूरी मिली है.चीन को लेकर चिंताभारत चीनी कैमरों पर चिंतित होने वाला पहला देश नहीं है. 2023 में ब्रिटेन ने चीनी कैमरे हटाने का फैसला लिया था.2022 में अमेरिका ने हाइकविजन और दाहुआ पर राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे की वजह से बैन लगा दिया था.ऑस्ट्रेलिया ने भी ऐसे चीनी उपकरणों पर रोक लगाई है.जर्मनी ने पिछले साल चीन की उन कंपनियों पर प्रतिबंध लगा दिया था जो 5जी डिवाइस सप्लाई करती हैं.एक वरिष्ठ अधिकारी ने रॉयटर्स से कहा, "हमें देखना होगा कि इन उपकरणों में क्या इस्तेमाल हो रहा है, कौन-से चिप्स लगाए जा रहे हैं.चीन हमारी चिंता का हिस्सा है"चीन का सुरक्षा कानून कंपनियों को इंटेलिजेंस कार्यों में सहयोग करने को बाध्य करता है.मई में रॉयटर्स ने बताया था कि कुछ चीनी सोलर इनवर्टर में संदिग्ध संचार उपकरण पाए गए हैं.2020 में भारत-चीन सीमा विवाद के बाद भारत ने टिकटॉक समेत कई चीनी ऐप्स पर बैन लगाया और विदेशी निवेश नियम कड़े किए.पिछले साल लेबनान में पेजर में दूर से धमाके करने की घटना ने भी भारत में तकनीक के दुरुपयोग की आशंका बढ़ा दी है.हालांकि नियमों में "सीमा साझा करने वाले देशों" का जिक्र नहीं है, लेकिन श्याओमी ने अप्रैल में बताया कि जब उसने सीसीटीवी डिवाइस के टेस्ट के लिए आवेदन किया तो उसे कहा गया कि दो चीन स्थित कॉन्ट्रैक्ट मैन्युफैक्चरर्स की जानकारी देनी होगी.चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा कि वह "राष्ट्रीय सुरक्षा की परिभाषा को बढ़ा-चढ़ाकर चीनी कंपनियों को दबाने" का विरोध करता है और भारत से आग्रह करता है कि वह चीनी कंपनियों को गैर-भेदभाव वाला माहौल दे.लैब टेस्टिंग और फैक्ट्री विजिटसरकारी खरीद में लगे सीसीटीवी पर पहले से ही टेस्टिंग जरूरी थी, लेकिन अब सभी उपकरणों पर यह नियम लागू हो गया है.काउंटरपॉइंट के अनुसार, सार्वजनिक क्षेत्र में सीसीटीवी की मांग 27 फीसदी है, जबकि बाकी 73 फीसदी मांग उद्योग, होटल और घरों से आती है.नए नियमों के तहत कैमरों में टेंपर-प्रूफ बॉडी, मालवेयर डिटेक्शन और एनक्रिप्शन जरूरी हैं.कंपनियों को अपने डिवाइस के सोर्स कोड की जांच करनी होगी और उसकी रिपोर्ट सरकारी लैब को देनी होगी. अगर डिवाइस में प्राइवेट प्रोटोकॉल हैं, तो लैब को सोर्स कोड मांगने का अधिकार है.भारतीय अधिकारी विदेशी फैक्ट्रियों का दौरा कर सकते हैं.चीन की इनफिनोवा की भारतीय इकाई ने 10 अप्रैल को लिखा कि "सोर्स कोड शेयर करने, फर्मवेयर अपग्रेड के बाद फिर से टेस्टिंग और फैक्ट्री ऑडिट्स कराने से आंतरिक शेड्यूल पर असर पड़ रहा है"इसी दिन ताइवान की वाइवोटेक के भारत-निदेशक संजीव गुलाटी ने कहा कि "सभी चल रहे प्रोजेक्ट्स रुक सकते हैं" उन्होंने बताया कि कंपनी ने टेस्टिंग के लिए आवेदन दे दिया है और उन्हें जल्द मंजूरी की उम्मीद है.सीसीटीवी उपकरणों की जांच का जिम्मा आईटी मंत्रालय की स्टैंडर्डाइजेशन टेस्टिंग एंड क्वालिटी सर्टिफिकेशन डाइरेक्टोरेट (एसटीक्यूसी) के पास है.इसके पास 15 लैब हैं जो एक साथ 28 आवेदन देख सकती हैं.हर आवेदन में 10 मॉडल तक हो सकते हैं.28 मई तक कुल 342 आवेदन लंबित थे.इनमें से 237 आवेदन नए हैं, जिनमें से 142 को 9 अप्रैल के बाद दाखिल किया गया.इनमें से सिर्फ 35 आवेदनों पर टेस्टिंग पूरी हुई है, जिनमें से सिर्फ एक विदेशी कंपनी का था.भारतीय कंपनी सीपी प्लस ने कहा कि उसे अपने प्रमुख कैमरों की मंजूरी मिल गई है लेकिन कई अन्य मॉडल अब भी प्रतीक्षा में हैं.बॉश ने कहा कि उसने डिवाइस जमा कर दिए हैं, लेकिन सरकार से अनुरोध किया कि मंजूरी पूरी होने तक व्यापार जारी रखने दिया जाए.हालांकि दिल्ली के नेहरू प्लेस मार्केट में हाइकविजन, दाहुआ और सीपी प्लस के कैमरे अब भी बिकते देखे गए.लेकिन एक दुकानदार सागर शर्मा ने बताया कि अप्रैल की तुलना में मई में उनकी बिक्री 50 फीसदी गिर गई है.उन्होंने कहा, "अभी बड़े ऑर्डर पूरे करना मुमकिन नहीं है.फिलहाल जो स्टॉक है, हम उसी से काम चला रहे हैं".

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