Supreme Court slams Telangana CM and speaker for making mockery of anti defection law आप संविधान का मजाक उड़ाएंगे, हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे? क्यों और किस पर भड़का सुप्रीम कोर्ट, India Hindi News - Hindustan
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आप संविधान का मजाक उड़ाएंगे, हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे? क्यों और किस पर भड़का सुप्रीम कोर्ट

जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने तेलंगाना के मुख्यमंत्री ए रेवंत रेड्डी के विधानसभा में दिए गए उस कथित बयान पर भी आपत्ति जताई कि कोई उपचुनाव नहीं होगा।

Pramod Praveen लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीThu, 3 April 2025 06:55 AM
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आप संविधान का मजाक उड़ाएंगे, हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे? क्यों और किस पर भड़का सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी और विधानसभा अध्यक्ष को कड़ी फटकार लगाई है और कहा है कि अगर संविधान का मजाक उड़ाया जाएगा तो शीर्ष अदालत चुप नहीं हैठेगी। दरअसल, तेलंगाना विधानसभा अध्यक्ष ने दलील दी थी कि अदालत स्पीकर को उन विधायकों की अयोग्यता पर फैसला करने का निर्देश नहीं दे सकती, जो कथित रूप से दलबदल कर दूसरी पार्टी में चले गए हैं। इस पर शीर्ष न्यायालय ने कहा कि संविधान के रक्षक के रूप में वह आदेश पारित करने में शक्तिहीन नहीं है, खासकर तब जब दलबदल विरोधी कानून से संबंधित "दसवीं अनुसूची का मजाक" उड़ाया जा रहा हो।

जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने तेलंगाना के मुख्यमंत्री ए रेवंत रेड्डी के विधानसभा में दिए गए उस कथित बयान पर भी आपत्ति जताई कि कोई उपचुनाव नहीं होगा। जस्टिस गवई ने कहा, ‘‘यदि यह बात सदन में कही गई है, तो आपके मुख्यमंत्री दसवीं अनुसूची का मजाक उड़ा रहे हैं।’’ संविधान की दसवीं अनुसूची दलबदल के आधार पर अयोग्यता के प्रावधानों से संबंधित है।

दल-बदल से जुड़ी याचिका पर हो रही थी सुनवाई

पीठ तेलंगाना विधानसभा अध्यक्ष द्वारा अयोग्य करार देने के अनुरोध वाली याचिकाओं पर निर्णय लेने में कथित देरी से संबंधित दलीलों को सुन रही थी। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने स्पीकर से पूछा कि उन्होंने कांग्रेस में शामिल हुए भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के विधायकों की अयोग्यता संबंधी याचिकाओं पर नोटिस जारी करने में लगभग 10 महीने का समय क्यों लगाया? इस पर विधानसभा अध्यक्ष ने दलील दी थी कि अदालत स्पीकर को दल-बदल के मामले में विधायकों की अयोग्यता पर फैसला करने का निर्देश नहीं दे सकती।

हाई कोर्ट के आदेश को दी गई थी चुनौती

एक याचिका में तीन विधायकों को अयोग्य करार देने संबंधी तेलंगाना हाई कोर्ट के नवंबर 2024 के आदेश को चुनौती दी गई है, जबकि एक अन्य याचिका दल-बदल करने वाले शेष सात विधायकों को लेकर दायर की गई है। पिछले साल नवंबर में हाई कोर्ट की एक पीठ ने कहा था कि विधानसभा अध्यक्ष को तीनों विधायकों के खिलाफ अयोग्यता याचिकाओं पर ‘‘उचित समय’’ के भीतर फैसला करना चाहिए। पीठ का फैसला एकल न्यायाधीश के नौ सितंबर, 2024 के आदेश के खिलाफ अपील पर आया।

एकल न्यायाधीश ने तेलंगाना विधानसभा के सचिव को निर्देश दिया था कि वे अयोग्यता के अनुरोध वाली याचिका को चार सप्ताह के भीतर सुनवाई का कार्यक्रम तय करने के लिए अध्यक्ष के समक्ष रखें। बुधवार को उच्चतम न्यायालय ने सवाल किया, ‘‘यदि अध्यक्ष कोई कार्रवाई नहीं करते हैं, तो इस देश की अदालतें, जिनके पास संविधान के संरक्षक के रूप में न केवल शक्ति है, बल्कि दायित्व भी है, क्या शक्तिहीन हो जाएंगी?’’

मुकुल रोहतगी की दलील पर SC हैरान

सुप्रीम कोर्ट ने स्पीकर की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी की उस दलील पर भी आश्चर्यच जताया, जिसमें उन्होंने कहा था कि अदालत अयोग्यता याचिकाओं पर निर्णय लेने के लिए निर्देश नहीं दे सकती और कोई समयसीमा तय नहीं कर सकती। रोहतगी ने दलील दी थी कि स्पीकर के समक्ष लंबित अयोग्यता याचिकाएं न्यायिक समीक्षा से परे हैं। उन्होंने कहा, "स्पीकर द्वारा निर्णय लिए जाने से पहले न्यायिक समीक्षा की अनुमति नहीं है।" उन्होंने कहा कि न्यायालय इस मामले में स्पीकर से अनुरोध कर सकता है।

मुकुल रोहतगी ने कहा कि पहली अयोग्यता याचिका 18 मार्च, 2024 को दायर की गई थी, इसके बाद पिछले साल क्रमशः दो अप्रैल और आठ अप्रैल को दो अन्य ऐसी याचिकाएं दायर की गईं। उन्होंने कहा कि पहली याचिका पिछले साल 10 अप्रैल को उच्च न्यायालय में दायर की गई थी। जब पीठ ने अयोग्यता याचिकाओं पर नोटिस जारी करने में लगने वाले समय के बारे में पूछा तो वरिष्ठ अधिवक्ता ने उच्च न्यायालय के समक्ष मामले के लंबित होने का हवाला दिया।

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जस्टिस गवई ने कहा कि उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश ने केवल चार सप्ताह के भीतर कार्यक्रम तय करने का अनुरोध किया था। मामले में दलीलें तीन अप्रैल को भी जारी रहेंगी। बीआरएस नेता पी. कौशिक रेड्डी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सी ए सुंदरम ने 25 मार्च को दलील में कहा कि मूल प्रश्न यह है कि क्या किसी न्यायालय के पास संवैधानिक प्राधिकारी को उसके संवैधानिक आदेश के अनुसार कार्य करने के लिए बाध्य करने की शक्ति, अधिकार है। (भाषा इनपुट्स के साथ)