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बच्चों की तस्करी पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, यूपी सरकार को फटकार; इलाहाबाद हाई कोर्ट को भी लपेटा

  • सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि अगर किसी अस्पताल में बच्चा चोरी होता है तो सबसे पहले उस अस्पताल का लाइसेंस रद्द किया जाएगा।

Himanshu Tiwari लाइव हिन्दुस्तानTue, 15 April 2025 03:53 PM
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बच्चों की तस्करी पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, यूपी सरकार को फटकार; इलाहाबाद हाई कोर्ट को भी लपेटा

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश सरकार और इलाहाबाद हाई कोर्ट को बच्चा तस्करी के मामलों को लेकर जमकर फटकार लगाई और कहा कि इन मामलों में किसी भी तरह की लापरवाही अब बर्दाश्त नहीं की जाएगी। कोर्ट ने सभी राज्यों के हाई कोर्ट के लिए सख्त दिशा-निर्देश जारी किए कि बच्चा तस्करी से जुड़े मामलों की सुनवाई छह महीने के अंदर पूरी होनी चाहिए।

जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने साफ किया कि अगर किसी अस्पताल से नवजात चोरी या तस्करी होती है तो सबसे पहले उस अस्पताल का लाइसेंस सस्पेंड किया जाए। अदालत ने कहा, “अगर कोई औरत अस्पताल में बच्चा जनती है और बच्चा चोरी हो जाता है, तो सबसे पहला कदम होगा अस्पताल का लाइसेंस रद्द करना।”

इलाहाबाद हाई कोर्ट पर कड़ा रुख

यह सख्त टिप्पणी उस केस के दौरान आई जिसमें उत्तर प्रदेश में एक दंपत्ति को चोरी का नवजात बच्चा 4 लाख रुपये में दिलवाया गया। इस मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने आरोपी को अग्रिम जमानत दे दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने न सिर्फ इस जमानत को रद्द किया बल्कि हाई कोर्ट के रवैये को लापरवाह बताया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "आरोपी को बेटे की चाह थी और उसने 4 लाख रुपये में एक बच्चा खरीद लिया। यह साफ था कि बच्चा चोरी हुआ था, फिर भी हाई कोर्ट ने जमानत दे दी।"

यूपी सरकार को भी फटकार

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट और उत्तर प्रदेश सरकार दोनों को फटकार लगाई। कोर्ट ने आगे कहा कि इस तरह के आरोपियों से समाज को गंभीर खतरा है और हाई कोर्ट को कम से कम यह हुक्म देना चाहिए था कि आरोपी हर हफ्ते थाने में हाजिरी दे। पुलिस अब सारे आरोपियों का पता नहीं लगा पा रही है।

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गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने फरवरी में सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि साल 2020 से अब तक देश में करीब 36,000 बच्चे लापता हैं। इसके बाद अदालत ने हाई कोर्ट्स को भी निर्देश दिया कि वे अपने-अपने राज्यों में लंबित मामलों की स्थिति की रिपोर्ट मंगाएं और सुनिश्चित करें कि ट्रायल रोजाना चले और छह महीने में पूरा हो। कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर इन दिशा-निर्देशों को नजरअंदाज किया गया तो संबंधित अधिकारियों के खिलाफ अदालत की अवमानना की कार्रवाई की जाएगी।