भारतीय मूल की इतिहासकार मणिकर्णिका दत्ता से क्यों खफा ब्रिटेन, छोड़ना पड़ सकता है देश
- ब्रिटेन में भी एक भारतीय इतिहासकार मणिकर्णिका दत्ता पर निर्वासन की तलवार लटक रही है। ज्यादा समय तक ब्रिटेन से बाहर रहने के चलते उनका आईएलआर का आवेदन ही खारिज कर दिया गया है।

अमेरिका से भारतीयों के निर्वासन और हमास का समर्थन करने के आरोप में भारतीय छात्रा का वीजा रद्द होना। आनन-फानन में करियर दांव लगाकर अमेरिका से भागना। इन सारे घटनाक्रमों के बीच ब्रिटेन में भी एक भारतीय इतिहासकार मणिकर्णिका दत्ता का पूरा अकैडमिक करियर दांव पर लग गया है। जिस देश को घर जैसा मानकर वह पिछले एक दशक से ज्यादा से रह रही थीं, अब वहीं की सरकार ने उन्हें देश छोड़ने की धमकी दे दी है। मणिकर्णिका ऑक्सफर्ड की छात्रा रही हैं और वह भारत में औपनिवेशिक काल को लेकर शोध कर रही हैं। फिलहाल 37 साल की मणिकर्णिका डबलिन कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। उन्हें ब्रिटेन से निर्वासन का सामना करना पड़ रहा है।
रिपोर्ट्स की मानें तो ब्रिटेन में 10 साल से ज्यादा वक्त बिताने के आधार पर उन्होहंने अनिश्चितकालीन रहने की इजाजत (ILR) के लिए आवेदन किया था। भारत को लेकर शोध के चलते उनका काफी समय भारत में बीता। ऐसे में नियमों के मुताबिक उनके आवेदन को ही रद्द कर दिया गया है। ब्रिटेन में नियम है कि 10 साल की अवधि के दौरान किसी को 548 दिन से ज्यादा दूसरे देश में नहीं रहना चाहिए। वहीं मणिकर्णिका 691 दिन भारत में रह चुकी हैं।
ब्रिटिश औपनिवेशिक काल की जानकारी लेने के लिए वह अकसर भारत की यात्रा करती थीं। सामग्री जुटाने के लिए उन्हें कई बार भारत में लंबे समय तक रहना भी पड़ता था। मणिकर्णिका दत्ता 2012 में ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी में मास्टर्स की डिग्री करने के लिए ब्रिटेन गई थीं। उनका शोध ही ऐसा है जिसमें यात्रा करना जरूरी हो जाता है। अब उनके काम को ही निर्वासन का आधार बना लिया गया है।
दत्ता नियम के तहत निर्धारित दिनों से 143 दिन ज्यादा ब्रिटेन से बाहर रही हैं। उन्होंने अपनी बात रखी थी कि शोध के लिए जरूरी होने पर ही वह ज्यादा समय तक बाहर रहीं, ब्रिटेन के होम ऑफिस ने उनके आवेदन को खारिज कर दिया।
पति को मिल गया ILR
मणिकर्णिका के पति डॉ. सौविक नाहा ग्लासगो यूनिवर्सिटी में लेक्चरर हैं। उन्हें इसी प्रक्रिया के तहत आईएलआर मिल चुका है। हालांकि दत्ता का आवेदन रद्द कर दिया गया है। ब्रिटेन के होम ऑफिस का यह भी कहना है कि ब्रिटेन में उनका कोई पारिवारिक जीवन नहीं है। हालांकि उनकी शादी हो चुकी है और वह 10 साल से ज्यादा वक्त से अपने पति के साथ ही लंदन में रह रही हैं। दत्ता ने बताया, मुझे मेल मिला तो मैं अवाक रह गई। पता चला कि मुझे ब्रिटेन छोड़ना पड़ेगा। मैंने अपना लंबा जीवन यूके में बिता दिया। मैंने कभी नहीं सोचा कि ऐसा भी हो सकता है।
दत्ता के वकील नागा कांदियाह ने ब्रिटेन सरकार के इस फैसले को चुनौती दे दी है। उनका तर्क है कि दत्ता अपने निजी काम की वजह से देश से बाहर नहीं रहती थीं बल्कि शोध के कार्य से ही बाहर रहना पड़ता था। दत्ता अकेली नहीं हैं जिन्हें इस तरह की समस्या का सामना करना पड़ रहा है बल्कि ब्रिटेन के नियम के मुताबिक कई शोधकर्ताओं का काम अटक जाता है। जानकारों ने कहना है कि इस तरह के नियम से प्रतिभाओं के सामने एक दीवार खड़ी हो जाती है। फिलहाल होम ऑफिस ने तीन महीने में इस मामले की समीक्षा करने का आश्वासन दिया है।