स्कूली बच्चों में चीनी सेवन की निगरानी होगी
चिंता:-दो निजी स्कूलों में बोर्ड बनाकर हानिकारक प्रभावों के बारे में बताया -चीनी सेवन के बिना हाइड्रेशन को बढ़ावा देता है, सब्जी का प्रयोग करें

गुरुग्राम, कार्यालय संवाददाता। मिलेनियम सिटी के स्कूली बच्चों में चीनी सेवन की निगरानी शुरू हो गई है। गुरुग्राम में 527 निजी स्कूल और दस राजकीय स्कूल सीबीएसई के अधीन संचालित होते है। इन सभी स्कूलों में 15 जुलाई तक शुगर बोर्ड गठित करने के निर्देश है। इसको लेकर दो निजी स्कूलों में शुगर बोर्ड बनाकर हानिकारक प्रभावों के बारे में छात्रों को जागरूक करने शुरू कर दिए गए है। लेकिन राजकीय स्कूलों में अभी शुगर बोर्ड नहीं बने हैं। बोर्ड छात्रों के टिफिनों की निगरानी करेगा: राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने सर्वे में पाया कि चार से दस साल की उम्र के बच्चे तय सीमा से तीन गुना अधिक चीनी खा रहे हैं।
इससे टाइप 2 डायबिटीज का खतरा बढ़ गया है। इस पर स्कूल लेवल पर कंट्रोल करने बोर्ड छात्रों के टिफिनों की निगरानी करेगा। इसको लेकर सीबीएसई की स्कूलों को शुगर बोर्ड बनाने के निर्देश दिए है। इसको लेकर ऑर्किड्स द इंटरनेशनल स्कूल ने शुगर जागरूकता पहल के कार्यान्वयन की घोषणा की है। यह कदम पोषण-प्रथम शिक्षा और छात्र कल्याण के लिए किया गया। स्कूल प्रमुख विजय श्रीधर ने कहा कि कक्षा का विस्तार कैफ़ेटेरिया तक है। पोषण कोई अतिरिक्त चीज़ नहीं है। यह सीखने का एक अनिवार्य हिस्सा है। बच्चों को यह समझने में मदद करना कि उनकी थाली में क्या है और यह क्यों मायने रखता है। खेत से लेकर थाली तक के अनुभवों, संतुलित पोषण वाले भोजन और अब संरचित चीनी जागरूकता उपकरणों को एकीकृत करके चीनी कम कर रहे हैं। साथ ही रोज़मर्रा के खाद्य पदार्थों और पेय पदार्थों में चीनी की मात्रा दिखाने वाले चार्ट और छात्रों के नेतृत्व वाली युक्तियां और जानकारी दी जा रही है। छात्रों को जागरूक किया जा रहा है: सेक्टर-14 के डीएवी पब्लिक स्कूल में बच्चों में चीनी के सेवन की निगरानी करने शुगर बोर्ड की स्थापना किया गया है। अत्यधिक चीनी सेवन के हानिकारक प्रभावों के बारे में छात्रों को शिक्षित करने के लिए जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए गए। इस पहल का उद्देश्य छात्रों को उच्च चीनी सेवन और स्वास्थ्य समस्याओं जैसे मोटापा, दंत समस्याओं और चयापचय विकारों के बीच संबंध के बारे में जानकारी देना था। साथ ही लंबे समय तक स्वस्थ खाने की आदतों को बढ़ावा देना था। छोटे छात्रों ने दृश्य और व्यावहारिक गतिविधियों में भाग लिया। जहां उन्होंने कैंडी, चॉकलेट, सॉफ्ट ड्रिंक और प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों जैसे चीनी के स्रोतों के बारे में सीखा। उन्हें स्वस्थ विकल्पों से परिचित कराया गया और खेलों, दृश्य सहायता और कहानी सुनाने के माध्यम से बेहतर भोजन विकल्प अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया गया। शुगर बोर्ड पहल ने छात्रों में जिज्ञासा और जिम्मेदारी जगाई, जिससे वे अपने दैनिक सेवन के बारे में अधिक जागरूक हो गए। चीनी बोर्ड में स्कूल मैनेजमेंट और स्टूडेंट स्कूलों में लगने वाले चीनी बोर्ड की निगरानी प्राचार्य-शिक्षकों के साथ विद्यार्थी भी करेंगे। स्कूल मैंनेजमेंट इसके लिए मैन्यू तैयार कर सकता है। इसमें मीठी चीजों की मात्रा तय रहेगी। स्कूलों का चीनी बोर्ड बच्चों के टिफिन में आने वाले खाद्य पदार्थों में चीनी की उपलब्धता और नियंत्रण पर कार्य करेगा। 15 जुलाई तक स्कूलों में चीनी बोर्ड बनाना जरूरी: सीबीएसई के निर्देश के मुताबिक स्कूलों में बच्चों के चीनी की मात्रा पर अब नजर रखी जाएगी। इसकी मात्रा जांचने के लिए डायटीशियन से मदद ली जाएगी। स्कूलों में 15 जुलाई तक स्कूलों में चीनी बोर्ड लगाना अनिवार्य किया गया है। सर्वे में इस बात पर जोर दिया गया: -मीठा, चॉकलेट या अन्य माध्यमों से बच्चे रोजाना 10 से 15 प्रतिशत तक चीनी का सेवन कर रहे हैं। -छोटी उम्र से ही चीनी का अधिक उपयोग करने से उनमें टाइप-2 मधुमेह का खतरा तेजी से बढ़ रहा है। -4 से 10 साल के बच्चों के भोजन में औसतन 5 फीसदी चीनी की मात्रा होनी चाहिए।
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