सैनिकों के लिए दिव्यांगता पेंशन को हाईकोर्ट ने बरकरार रखा
दिल्ली उच्च न्यायालय ने सैनिकों के लिए दिव्यांगता पेंशन के मामले में फैसला सुनाते हुए सैन्य सेवा के दौरान होने वाली चुनौतियों को रेखांकित किया। न्यायालय ने कहा कि सैनिकों की निस्वार्थ सेवा के लिए...

नई दिल्ली, प्रमुख संवाददाता। दिल्ली उच्च न्यायालय ने सैनिकों के लिए दिव्यांगता पेंशन के संबंध में हाल ही में दिए गए फैसले में सैन्य सेवा की अंतर्निहित चुनौतियों और जोखिमों को रेखांकित किया है। दो सैनिकों को दिव्यांगता पेंशन प्रदान करते हुए न्यायमूर्ति सी हरिशंकर एवं न्यायमूर्ति अजय दिगपॉल की पीठ ने स्वीकार किया कि बीमारी व दिव्यांगता की संभावना उन लोगों के लिए एक अपरिहार्य वास्तविकता है, जो राष्ट्र की सेवा के लिए खुद को समर्पित करते हैं।
पीठ ने कहा कि सबसे बहादुर सैनिक जिन कठिन परिस्थितियों में सेवा करते हैं, उन्हें शारीरिक बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है। कभी-कभी ऐसी अक्षम करने वाली स्थिति पैदा हो जाती है, जो उन्हें सैन्य कर्तव्यों से दूर रहने के लिए मजबूर करती है। ऐसे मामलों में सैनिकों की निस्वार्थ सेवा के लिए कृतज्ञता के भाव के रूप में समर्थन और करुणा प्रदान करना राष्ट्र का नैतिक दायित्व है।
पीठ ने कहा कि वर्तमान मामले में और अधिक विस्तार की आवश्यकता नहीं है। प्रतिवादी से संबंधित आरएमबी रिपोर्ट के प्रमुख तत्वों पर पहले ही जोर दिया जा चुका है। रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से स्वीकार किया गया कि प्रतिवादी को टाइप II डायबिटीज मेलिटस सैन्य सेवा में शामिल होने के 30 साल बाद हुआ था। यह बीमारी सशस्त्र बलों में उसके कार्यकाल के दौरान हुई थी। इस तथ्य पर विवाद नहीं किया गया। न्यायालय भारत संघ द्वारा दायर दो अपीलों पर विचार कर रहा था, जिसमें सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (एएफटी) द्वारा दो सैनिकों को विकलांगता पेंशन देने के निर्णय को चुनौती दी गई थी। सैनिकों में से एक, गवास अनिल मैडसो, 1985 में सेना में भर्ती हुए और 2015 तक सेवा की, जब उन्हें टाइप II डायबिटीज मेलिटस का पता चलने के बाद छुट्टी दे दी गई। रिलीज मेडिकल बोर्ड (आरएमबी) के निष्कर्षों के अनुसार, उन्हें 20 प्रतिशत आजीवन दिव्यांगता का आकलन किया गया था, लेकिन दिव्यांगता पेंशन के लिए अयोग्य माना गया था। पीठ ने आगे कहा कि ऐसे मामलों में व्यापक परिस्थितियां आम तौर पर समानताएं साझा करती हैं। आम तौर पर सैन्य सेवा के कारण दिव्यांगता या बीमारी का शिकार होने वाला अधिकारी या जवान दिव्यांगता पेंशन की मांग करता है।
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