This films song released in 1968 prevented suicides, music composer gave 100 rs every time he listened the song 1968 में आई इस फिल्म के एक गाने ने रोक दी थीं आत्महत्याएं, गीतकार को हर बार मिलता था 100 का नोट
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1968 में आई इस फिल्म के एक गाने ने रोक दी थीं आत्महत्याएं, गीतकार को हर बार मिलता था 100 का नोट

साल 1968 में एक फिल्म आई थी जिसके सभी गाने सुपरहिट थे और आज भी सुने जाते हैं। लेकिन एक गाने ने उस समय के लोगों को जीने की हिम्मत दी थी। कहा जाता है कि इस गाने की वजह से कई आत्महत्याएं रुक गई थीं। इस ने जिंदगी से निराश हो चुके लोगों को जीने की उम्मीद दी थी। 

Usha ShrivasWed, 18 June 2025 10:49 AM
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साल 1968

साल 1968 में एक एक्ट्रेस नूतन की एक फिल्म आई थी 'सरस्वतीचंद्र' किताब पर आधारित इस फिल्म की कहानी ने ऑडियंस को प्रभावित किया था। इस फिल्म की कहानी के साथ म्यूजिक भी सुपरहिट हुआ था जिसके गाने आज भी शांत म्यूजिक सुनने वालों के फेवरिट है।

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सरस्वतीचंद्र

इस फिल्म के गाने इसलिए भी खास है क्योंकि इन गानों ने न सिर्फ ऑडियंस को एंटरटेन किया, बल्कि सामाजिक स्तर पर भी लोगों की प्रभावित किया। ऐसी एक कहावत है कि उस समय इस फिल्म के एक गीत ने कई आत्महत्याओं को रोक दिया था। लोग निराश जिंदगी से उम्मीद लगाने लगे थे।

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फिल्म का म्यूजिक

फिल्म सरस्वतीचंद्र का म्यूजिक कल्याण जी ने तैयार किया था। इसके अधिकतर गाने लता मंगेशकर से गवाए गए। इसी फिल्म का गाना था ‘चंदन सा बदन’ जबरदस्त हिट हुआ था। आज भी लोगों का फेवरिट है। कंगना रनौत भी अपने फ्री टाइम में यही गाना सुनती हैं। लेकिन एक दूसरा गाना भी था।

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सभी गाने सुपरहिट

गाना 'चंदन सा बदन' मुकेश और लता की आवाज में रिकॉर्ड किया गया था। दोनों ही हिट रहे। इसके अलावा 'मैं तो भूल चुकी बाबुल का देस', 'फूल तुम्हें भेजा है ख़त में', 'सौ साल पहले की बात है', 'वादा हमसे किया दिल किसी को दिया' जैसे शानदार गाने इस फिल्म में थे।

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इस गाने ने रोकीं आत्महत्याएं

इस फिल्म में एक और गाना था ‘छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए, ये मुनासिब नहीं आदमी के लिए’ ये वो गाना था जिसने उस समय की कई आत्महत्याओं को रोका। उस समय के युवाओं में जीवन जीने का जोश पैदा किया।

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एक शब्द को लेकर बहस

इस फिल्म के सभी गाने के गीत इंदीवर ने लिखे थे। कल्याण जी ने जब ये गाना सुना ‘छोड़ दे सारी दुनिया…’ वो चाहते थे कि इस गाने से उर्दू के शब्द ‘मुनासिब’ को हटा दिया जाए। उन्होंने कई सुझाव भी दिए जैसे ‘उचित’, ‘उपयुक्त’ या ‘ठीक’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।

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समाज पर प्रभाव

अंत में म्यूजिक कंपोजर कल्याण जी को ‘मुनासिब’ के साथ ही गाने को फिल्माना पड़ा। उन्हें यकीन नहीं था कि ये गाना इस तरह से ऑडियंस को प्रभावित करेगा। इस गाने में मोटिवेशन है। उम्मीद है जो उस समय के उदास लोगों को हिम्मत दे रही थी।

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100 का नोट

बताया जाता है कि इस गाने के म्यूजिक कंपोजर कल्याण जी जब भी ये गाना सुनते और उनके साथ इस गाने के गीतकार इंदीवर हुआ करते तो वो उन्हें 100 रूपए दे दिया करते थे। ये गाने ने जो कमाल किया था वैसा दोबारा कर पाना मुश्किल था।