कांग्रेस ने विधानसभा स्पीकर पर लगाए RSS-BJP के इशारे पर काम करने के आरोप!
राजस्थान विधानसभा में झालावाड़ से बीजेपी विधायक कंवरलाल मीणा की अयोग्यता के मामले ने राजनीतिक हलचल तेज कर दी है। हाईकोर्ट के आदेश के 19 दिन बीतने के बावजूद विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी द्वारा कोई कार्रवाई न किए जाने पर कांग्रेस ने उनकी कार्यशैली पर तीखे सवाल खड़े किए हैं।

राजस्थान विधानसभा में झालावाड़ से बीजेपी विधायक कंवरलाल मीणा की अयोग्यता के मामले ने राजनीतिक हलचल तेज कर दी है। हाईकोर्ट के आदेश के 19 दिन बीतने के बावजूद विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी द्वारा कोई कार्रवाई न किए जाने पर कांग्रेस ने उनकी कार्यशैली पर तीखे सवाल खड़े किए हैं।
नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने एक सुर में स्पीकर को भाजपा और आरएसएस के दबाव में काम करने का आरोप लगाया है। जूली ने तंज कसते हुए कहा कि स्पीकर ने कंवरलाल मीणा को अयोग्य घोषित करने की बजाय “कुंडली मारकर बैठने” का काम किया है। वहीं डोटासरा ने बड़ा खुलासा करते हुए कहा कि मीणा की सजा को माफ करवाने का षड्यंत्र केंद्रीय कानून मंत्री के आवास पर रचा गया।
डोटासरा ने यह भी आरोप लगाया कि यह साजिश विधायक की सदस्यता बचाने और संविधान की धज्जियां उड़ाने के लिए की जा रही है। उन्होंने कहा कि भाजपा की डबल इंजन सरकार न सिर्फ अदालतों के आदेशों की अवहेलना कर रही है, बल्कि दोषी विधायक को अब तक पुलिस सुरक्षा (पीएसओ) भी उपलब्ध है।
कांग्रेस नेताओं ने राहुल गांधी का उदाहरण देते हुए स्पीकर की निष्क्रियता पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि जब राहुल गांधी को अदालत से सजा मिली थी, तब महज 17 दिनों में उनकी लोकसभा सदस्यता खत्म कर दी गई और सरकारी बंगला भी खाली करवा लिया गया था। वहीं, कंवरलाल मीणा के मामले में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट दोनों की ओर से स्पष्ट आदेश आने के बावजूद विधानसभा अध्यक्ष कोई निर्णय नहीं ले रहे हैं।
बता दें कि 14 दिसंबर 2020 को झालावाड़ के अकलेरा स्थित एडीजे कोर्ट ने कंवरलाल मीणा को करीब 20 साल पुराने एक मामले में दोषी मानते हुए तीन साल की सजा सुनाई थी। यह मामला सरकारी कार्य में बाधा डालने, अधिकारियों को धमकाने और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने से जुड़ा था।
मीणा ने इस सजा के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की थी, लेकिन 1 मई 2025 को हाईकोर्ट ने उनकी याचिका खारिज करते हुए निचली अदालत का फैसला बरकरार रखा। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी अपील खारिज कर दी और दो सप्ताह में सरेंडर करने के निर्देश दिए।
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के अनुसार, किसी जनप्रतिनिधि को दो साल या उससे अधिक की सजा होने पर उसकी सदस्यता स्वत: समाप्त हो जाती है, लेकिन अंतिम निर्णय विधानसभा अध्यक्ष को लेना होता है।
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