अगर बच्चा जन्मा तो लड़की को जीवन भर तकलीफ उठानी होगी, राजस्थान HC ने दी गर्भपात को मंजूरी
- कोर्ट ने मेडिकल बोर्ड की उस रिपोर्ट के आधार पर यह फैसला दिया, जिसमें नाबालिग के 27 हफ्ते से अधिक समय के गर्भ को हटाने को हाई रिस्क वाला बताते हुए हटाने की राय दी गई थी।

राजस्थान हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला देते हुआ 13 साल की दुष्कर्म पीड़िता को चिकित्सकीय तरीके से 27 हफ्ते (करीब साढ़े छह महीने) का गर्भ गिराने को मंजूरी दे दी। हालांकि इसमें पीड़िता की जान को भी खतरा है, लेकिन पीड़िता के माता-पिता ने इसे लेकर अपनी सहमति दे रखी है। फैसला सुनाते हुए अदालत ने कहा कि अगर इस बच्चे का जन्म होता है तो पीड़िता को जिंदगीभर अपमान और तकलीफों का सामना करना पड़ेगा। साथ ही कहा है कि ऐसा नहीं करने से उसके मानसिक स्वास्थ्य पर गम्भीर खतरा पैदा हो सकता है।
कोर्ट ने मेडिकल बोर्ड की उस रिपोर्ट के आधार पर यह फैसला दिया, जिसमें नाबालिग के 27 हफ्ते से अधिक समय के गर्भ को हटाने को हाई रिस्क वाला बताते हुए हटाने की राय दी गई थी। जिसके बाद जस्टिस सुदेश बंसल ने इसी रिपोर्ट को देखने के बाद 10 मार्च को इस बारे में आदेश पारित किया।
अदालत ने कहा, 'चूंकि याचिकाकर्ता नाबालिग और बलात्कार पीड़िता है, इसलिए बेटी की जिंदगी को भारी खतरा होने के बावजूद उसके माता-पिता ने उसके अनचाहे गर्भ को खत्म करने के लिए ऑपरेशन कराने वास्ते अपनी सहमति दे दी।'
हाई कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि यदि अनचाही गर्भावस्था को खत्म नहीं किया गया और उसे बच्चे को जन्म देने के लिए मजबूर किया गया तो इससे पीड़िता के मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुंचने की आशंका है और इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। साथ ही फैसले में अदालत ने कहा कि इस बच्चे के जन्म के कारण उसे जीवन भर अपमान और तकलीफ का सामना करना पड़ेगा। जिसमें बच्चे के भरण-पोषण और अन्य मुद्दे शामिल होंगे।
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, 'रेप पीड़िता के गर्भ को खत्म करने की अनुमति 1971 के अधिनियम, संशोधित अधिनियम 2021 के निर्धारित प्रावधानों से परे जाकर, व्यक्तिगत मामले के विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए दी जा सकती है।' इसके साथ ही अदालत ने जयपुर के सांगानेरी गेट स्थित महिला चिकित्सालय की अधीक्षिक को निर्देश दिया कि वे माता-पिता द्वारा दी गई हाई रिस्क सहमति के अधीन उसकी गर्भावस्था को समाप्त करने के लिए उचित व्यवस्था करें।
साथ ही अदालत ने कहा कि हटाने की प्रक्रिया के दौरान यदि भ्रूण जीवित पाया जाता है तो अस्पताल की तरफ से उसे जीवित रखने के लिए इन्क्यूबेशन सुविधा सहित अन्य सभी जरूरी मेडिकल सहायता प्रदान की जानी चाहिए और इसका पूरा खर्च राज्य सरकार द्वारा वहन किया जाएगा। साथ ही अदालत ने कहा कि यदि भ्रूण जीवित नहीं बचता है तो DNA टेस्ट के लिए जरूरी सैम्पल उससे निकालकर उसे सुरक्षित रखने के लिए उचित कदम उठाए जाने चाहिए। रेप पीड़िता की वकील सोनिया शांडिल्य ने कहा कि इस मामले में 3 मार्च को बलात्कार का मामला दर्ज किया गया था।