जो संवार रहे देश का भविष्य, उन्हें ही किया दरकिनार
वित्त विहीन विद्यालयों में छह लाख से अधिक बच्चे अध्ययनरत, अधिकारी और विभाग द्वारा इन्हीं विद्यालयों को किया जा रहा है अधिक परेशा, आरटीई का पैसा एक साल भी नहीं मिलता, प्रत्येक वर्ष 25 फीसदी राशि का नुकसान, वर्ष 2009 से आरटीई प्रतिपूर्ति शुल्क को सरकार ने नहीं बढ़ाया, मिलते हैं 450 रुपये
वित्त विहीन स्कूलों के बिना शिक्षा की कल्पना करना मुश्किल है। क्योंकि जहां परिषदीय विद्यालयों में 1.80 लाख बच्चे सरकारी खर्चे पर शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। वहीं न्यूनतम दर पर शिक्षा मुहैया कराने वाले वित्त विहीन स्कूल सरकारी प्रताड़ना के शिकार हो रहे हैं। कभी अपार आईडी तो कभी कभी यूडाइस के नाम पर बार बार मान्यता खत्म करने की धमकी झेल रहे हैं। इन विद्यालयों में शिक्षा के अधिकार सबसे अधिक बच्चों को दाखिला लिया जाता है। पर पूरे साल पढ़ाने के बाद भी पैसा पूरा नहीं मिलता है। 16 साल पहले जो आरटीई का दर घोषित हुआ उसे भी रिवाइज नहीं किया गया।
जनपद में जितने परिषदीय स्कूल हैं, उतने ही करीब वित्त विहीन विद्यालय हैं। जो प्राथमिक शिक्षा देने का कार्य कर रहे हैं। पर परिषदीय विद्यालयों में सरकारी धन, मिडडे मील और लाखों के ग्रांट मिलने के बाद भी हर साल 30 हजार छात्रों की संख्या घंट रही है। वहीं वहीं वित्त विहीन स्कूलों में बिना किसी सरकारी ग्रांट के छह लाख से अधिक बच्चों को शिक्षा दी जा रही है। इन स्कूलों बच्चों की संख्या लगातार बढ़ रही है। फिर भी इन्हें हेय की नजरों से देखा जाता है।
बुधवार को इंद्रप्रस्थ स्टेट स्थित हिन्दुस्तान कार्यालय में वित्त विहीन शिक्षक संघ के साथ बोले अलीगढ़ संवाद किया गया है। जिसमें वित्त विहीन शिक्षक संघ ने अपनी समस्याओं को खुलकर चर्चा की। शिक्षक संघ ने बताया कि उनके इंफ्रा स्ट्रक्चर सीबीएसई स्कूलों की तरह ही विकसित हैं। सीबीएसई स्कूलों से किसी तरह कम नहीं है। यूपी बोर्ड परीक्षा परिणाम में भी वित्त विहीन विद्यालयों के छात्रों ने अव्वल अंक हासिल कर जनपद का नाम रौशन किया। बिना किसी सरकारी सहायता या ग्रांट के यह स्कूल बेहतर शिक्षा की ओर अग्रसर हैं। पर इन स्कूलों के प्रधानाचार्य और प्रबंधक को बीएसए कार्यालय द्वारा तरह तरह के नोटिस जारी किए जाते हैं। इस नोटिस के नाम पर उन्हें खूब परेशान किया जाता है। कुछ माह पहले उन्हें अपार आईडी और यूडाइस पोर्टल पर डाटा अपलोड करने को लेकर खूब परेशान किया गया। एक ओर जहां सरकारी विद्यालयों के छात्रों का आधार सुधारने के लिए विशेष सुविधा दी गई। वहीं वित्त विद्यालयों के बच्चे और शिक्षकों को घंटों लाइन में खंडा किया गया। यह दोहरा रवैया हमारे स्कूलों के साथ ही क्यों
पूरे साल पढ़ाने के बाद नहीं होती शुल्क प्रतिपूर्ति का भुगतान
शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत 10 फीसदी सीटों में वित्त विहीन और निजी स्कूलों में आरटीई के तहत सीटे आवंटित होती हैं। इन सीटों पर नामांकन, स्टेशनरी आदि का खर्चा सरकार द्वारा वहन किया जाता है। पर इसमें सबसे बड़ी विडंबना यह है कि पूरे साल पढ़ाने के बाद यह भुगतान वित्त वर्ष के आखिरी माह में किया जाता है। अगर मार्च में भुगतान नहीं हुआ तो वह पैसा भी स्कूलों का मर जाता है। और तो और कभी पूरा भुगतान नहीं किया जाता है। करीब 25 फीसदी पैसा हर स्कूल मर जाता है। बकाया भुगतान के लिए कोई प्रक्रिया निर्धारित नहीं है। वहीं दूसरी ओर आरटीई की सीट पर कोई छात्र नामांकन नहीं लेता तो वह खाली हो जाती है। उस सीट को किसी और बच्चे को अलॉट कर देना चाहिए। पर विभाग के पोर्टल में ऐसा ऑप्शन ही नहीं है।
स्कूल में समय में मिले बिजली
वित्त विहीन स्कूल शहर से लेकर देहात तक फैले हुए हैं। शहरी क्षेत्र को छोड़ के देहात के क्षेत्र में स्कूलों को समय से बिजली नहीं मिल रही है। शिक्षक संघों ने बताया कि गांवों का रोस्टर अलग ही है। पर विद्यालय समय अनुसार बिजली का रोस्टर कर दिया जाए तो बेहतर होगा। हर विद्यालय की क्षमता रोज रोज जनरेटर चलाने की नहीं है। स्कूल टाइम में बिजली मिले तो बच्चों को बहुत राहत मिलेगी। शिक्षण कार्य भी बेहतर होगा। भले ही एक घंटे कम बिजली मिले पर बिजली विद्यालय के समय अनुसार होनी चाहिए।
सरकारी ऋण से भी महरूम है वित्त विहीन विद्यालय
वित्त विहीन विद्यालयों को सरकारी अनुदान के नाम पर कुछ नहीं मिलता है। अगर यह विद्यालय किसी बैंक से लोन लेने भी जाएं तो इन्हें नहीं दिया जाता है। वैसे इन विद्यालयों को मान्यता सेवा और नो प्रॉफिट लॉस के लिए दिया जाता है। सैकड़ों बच्चों का भविष्य संवारने वाले स्कूल लोन लेकर सुविधाओं को बढ़ाना चाहें तो उन्हें मना कर दिया जाता है। एक ठेल ढकेल, रेहड़ी पटरी वालों को सरकार लोन बांट रही है। पर इन विद्यालयों को नहीं।
वित्त विहीन के छात्रों से भेदभाव क्यों
वित्त विहीन संघ के शिक्षकों ने बताया कि एक ओर जहां परिषदीय विद्यालयों में तरह तरह की सुविधा मुहैया कराई जा रही है। वहीं वित्त विहीन विद्यालयों से भेदभाव किया जा रहा है। परिषदीय विद्यालयों के अपार आईडी के लिए आधार मशीनें बीआरसी पर लगाई गई हैं। पर ऐसे में कोई वित्त विहीन स्कूल का छात्र या शिक्षक इस सेंटर पर आधार अपडेट के लिए जाता है तो उसे मना कर दिया जाता है। वित्त विहीन स्कूलों को भी यह सुविधा मिलनी चाहिए। बता दें कि वित्त विहीन स्कूलों में पांच लाख से अधिक छात्र शिक्षा ले रहे हैं। आरटीई के तहत शुल्क में सुधार नहीं किया गया। वर्ष 2009 में 450 रुपये प्रतिपूर्ति शुल्क तय किए गए थे। इसका रिवीजन होना चाहिए।
शिक्षक संघ की प्रमुख मांग
- बीएसए और एबीएसए के बैठने का समय निर्धारित हो
- मान्यता प्राप्त विद्यालयों को जल्द जारी हो यूडाइस नंबर
- आरटीई के खाली सीटों पर किया जाए रीअलॉटमेंट
- खाली सीटों का विवरण भी पोर्टल पर दर्ज किया जाए
- आरटीई का पैसा विभाग मार्च से पहले करे भुगतान
- स्कूलों को नोटिस का अन्यथा न दिया जाए दबाव
परिषदीय विद्यालयों में करीब 2.21 लाख छात्र पढ़ाई कर रहे हैं। जबकि पांच लाख से अधिक बच्चे वित्त विहीन विद्यालयों में कर रहे हैं। ऐसे में बेसिक शिक्षा विभाग को वित्त विहीन विद्यालयों के संसाधन पर ध्यान देना होगा। विभाग की ओर से स्कूल मरम्मत, मेटीनेंस आदि का प्रावधान कराना होगा, जिससे स्कूल अपने अस्तित्व को बचा सकें।
योगेश भारद्वाज, जिला अध्यक्ष
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बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा स्कूलों को यूडायस नंबर प्रदान नहीं किया जा रहा है। जबकि जिन विद्यालयों की मान्यता मिली हुई है उन्हें स्वत: ही यूडायस नंबर दे दिया जाना चाहिए। यूडायस नंबर न होने की वजह से डीबीटी आदि कार्यों में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
अंतिम कुमार, मंडल अध्यक्ष, वित्तविहीन शिक्षक संघ
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शिक्षा के अधिकारी अधिनियम के तहत बच्चों की प्रतिपूर्ति शुल्क 450 रुपये दिए जाते हैं। इस राशि को बढ़ाने के लिए स्थानीय स्तर पर कई बार ज्ञापन भी दिया गया है। वर्ष 2009 से शुल्क प्रतिपूर्ति में सुधार नहीं किया गया है। निजी विद्यालयों कम राशि मिलने की वजह से बोझ वहन करना पड़ रहा है।
राहुल वार्ष्णेय, महामंत्री
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शिक्षा के अधिकारी अधिनियम के शुल्क प्रतिपूर्ति की राशि समय पर नही दी जाती है। वित्त विहीन विद्यालयों के पास छात्रों के फीस के अलावा आय के कोई और साधन नहीं हैं। ऐसे में एक साल बाद फीस की राशि मिलेगी तो स्कूल का विकास, शिक्षकों का वेतन, छात्रों की सुविधाओं में बाधा आएगी।
डॉ. नरेश कुमार
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वित्त विहीन विद्यालयों के साथ भेदभाव किया जारहा है। अपार आईडी, आधार बनाने को परिषदीय विद्यालयों को आधार केंद्र की व्यवस्था बीआरसी पर की गई है। जबकि वित्त विहीन विद्यालयों के लिए ऐसी कोई व्यवस्था नहीं की गई। जब विद्यालय छात्र एक हैं तो यह भेदभाव विभाग द्वारा क्यों किया जा रहा है।
जितेंद्र प्रताप, महानगर अध्यक्ष
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आरटीई सीट अलॉटमेंट के बाद अगर कोई छात्र प्रवेश नहीं लेता है तो उस सीट को खाली कर दोबारा एलॉटमेंट होना चाहिए। जब तक पहले चरण की सीट पूरी न हो तब तक दूसरे चरण की लिस्ट जारी नहीं की जाए। जिससे किसी अन्य गरीब बच्चे को निशुल्क शिक्षा का लाभ मिल सकता है।
प्रेम कुमार, महामंत्री
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यू डाइस की आधी अधूरी व्यवस्था लागू होने के साथ ही अपार आईडी जैसी व्यवस्था को लाना न्याय उचित नहीं है। इस व्यवस्था को कुछ समय बाद लागू किया जाना चाहिए था। जिससे स्कूलों को थोड़ा वक्त मिलता। अपार आईडी बनाने में भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। विषय पर सोचना होगा।
विनोद आर्या, संगठन मंत्री मंडल
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अपार आईडी बनाने हेतु बच्चों की जन्म तिथि का वेरिफिकेशन आधार कार्ड के आधार पर हो रहा है। चाहे बच्चे के अभिभावक द्वारा कक्षा पांच से पूर्व विद्यालय में दी गई जन्मतिथि से भिन्नता हो। ऐसे न्यायालय से आने वाले जन्म तिथि के वेरिफिकेशन के समय विद्यालय प्रबंधकों को कानूनी कार्यवाही का सामना करना पड़ रहा है।
महेंद्र प्रताप सिंह, मंडल कोषाध्यक्ष
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वित्त विहीन विद्यालयों में छह लाख से अधिक बच्चे शिक्षा ले रहे हैं। पर अपार आईडी के लिए आधार वेरीफिकेशन और संशेधन आवश्यक है। आधार केंद्र पर स्कूल जाते हैं तो उन्हें दो माह बाद की तारीख दी जा रही है। ऐसे अस्थाई कैंप विभाग वित्त विहीन स्कूलों के लिए प्रस्तावित करे, जिससे जल्द अपार आईडी बने, शिक्षण कार्य बाधित न हो।
राजीव जादौन, मीडिया प्रभारी
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आरटीई के तहत स्कूलों में बच्चों की निशुल्क शिक्षा के लिए शुल्क प्रतिपूर्ति विभाग द्वारा दिया जाता है। 15 साल से इस शुल्क में सुधार नहीं किया गया है। 450 रुपये एक बच्चे के फीस के रूप में मिल रही है। जो काफी नहीं है। साथ ही शुल्क प्रतिपूर्ति का पैसा भी विभाग को जल्द से जल्द जारी करना चाहिए, जिससे स्कूल अपना वहन कर सकें।
नरोत्म सिंह,
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वित्त विहीन स्कूल अधिक शहर के बाहर क्षेत्र में हैं। इन स्कूलों में सैकड़ों की संख्या में बच्चे पढ़ते हैं। पर यहां बुनियादी समस्या बिजली की है। बिजली का रोस्टर स्कूल समय के अनुसार हो तो बच्चों को बेहद राहत मिलेगी। स्कूल समय में बिजली मिलने बच्चे कंप्यूटर और स्मार्ट क्लास आदि का प्रयोग कर कुछ सीख सकेंगे। जो उनका भविष्य बनाने में सहयोग प्रदान करेगा।
हर्षिल अग्रवाल, महानगर मीडिया प्रभारी
मान्यता की कॉपी में साफ लिखा है कि बच्चे के नामांकन किया किसी दस्तावेज कमी के कारण नहीं रुकना चाहिए। पर वहीं जब कोई कोर्ट द्वारा बच्चे की जानकारी मांगी जाती है तब पूछा जाता है कि कोई दस्तावेज क्यों नहीं लिया गया। दोहरे रवैये वित्त विहीन स्कूल परेशान है। इस प्रकार की प्रक्रिया में सुधार की आवश्यकता है। नहीं स्कूल बेवजह परेशान होते रहेंगे।
सुधांशु कौशिक, शिक्षक
बीएसए कार्यालय द्वारा बार बार छात्रों की संख्या, मान्यता की कॉपी आदि विवरण मांगे जाते हैं। जबकि कार्यालय में सभी विवरण मौजूद हैं। यूडाइस से छात्रों का विवरण भी प्राप्त किया जा सकता है। पर विभाग द्वारा बेवजह ऐसी जानकारी मांग कर परेशान किया जाता है। और तो और बार बार बीएसए कार्यालय भी बुलाया जाता है।
मुकेश सिंह,
सीएम योगी आदित्य नाथ का आदेश है कि हर अधिकारी सुबह 10 बजे कार्यालय में बैठकर समस्याओं को सुन निस्तारण करेगा। पर बेसिक शिक्षा अधिकारी कभी सुबह नहीं बैठते हैं। उनकी बैठक शाम से पांच से शुरू हो रात नौ बजे तक चलती है। वहीं विभाग का कोई अधिकारी किसी स्कूल का फोन तक नहीं उठाता है। सीएम का आदेश भी नहीं मान रहे।
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