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बोले अम्बेडकरनगर: पढ़ाई और प्रशिक्षण के बाद भी रोजगार की राह दुश्कर

Ambedkar-nagar News - अम्बेडकरनगर में नर्सिंग की पढ़ाई करने वाले छात्र-छात्राओं को रोजगार के लिए संघर्ष करना पड़ता है। सरकारी और निजी अस्पतालों में उन्हें अवसर नहीं मिलते, जिससे वे परेशान हैं। प्रशिक्षुओं को काम की अधिकता...

Newswrap हिन्दुस्तान, अंबेडकर नगरSun, 8 June 2025 05:53 PM
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बोले अम्बेडकरनगर: पढ़ाई और प्रशिक्षण के बाद भी रोजगार की राह दुश्कर

अम्बेडकरनगर। नर्सिंग की पढ़ाई करने के बाद छात्र छात्राओं को रोजगार के लिए संघर्ष करना पड़ता है। निजी अस्पताल हो या फिर सरकारी, कहीं भी इतनी आसानी से उन्हें सेवा का मौका नहीं मिलता। ऐसे में छात्र-छात्राओं को एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल तक दौड़ लगाने को मजबूर होना पड़ता है। स्वास्थ्य सेवा में अपना कॅरियर बनाने के लिए एएनएम व जीएनएम का कोर्स करने वाले छात्राओं को रोजगार के लिए भटकना पड़ता है। सरकारी हो या फिर निजी अस्पताल हर जगह उन्हें परेशानी होती है। तमाम कोशिशों के बाद उन्हें रोजगार मिलता भी है तो सुविधाएं नहीं मिलती। ऐसे में किसी तरह वे खुद को आगे ले जाने की कोशिश करते हैं।

निजी अस्पतालों में तो प्रशिक्षुओं से ज्यादा काम लिया जाता है और कोई गलती मिलने पर निकाल देने या फिर वेतन काट लेने की धमकी भी दी जाती है। ऐसे में प्रशिक्षुओं को काफी परेशानी होती है। दूसरी तरफ सरकारी स्तर पर इन छात्र छात्राओं को भर्ती का मौका कम ही मिलता है। जो रोजगार न मिलने का एक बड़ा कारण है। सामाजिक कार्यकर्ता दिनेश कहते हैं कि एएनएम व जीएनएम का कोर्स करने के बाद छात्र छात्राओं को आसानी से रोजगार मिले, इसके लिए सरकारी व निजी स्तर पर बेहतर कार्ययोजना तैयार करने की जरूरत है। आखिर बच्चों को जब रोजगार ही नहीं मिलेगा तो फिर इतना पैसा लगाकर उन्हें नर्सिंग का कोर्स अभिभावक क्यों कराएं। इस समस्या का निदान तभी हो पाएगा, जब जिम्मेदार गंभीर होंगे। भर्ती के बाद उनकी सुविधाओं का ख्याल तो रखा ही जाना चाहिए, समय-समय पर मानदेय में भी वृद्धि होनी चाहिए। अन्य सुविधाएं भी प्राथमिकता पर दी जानी चाहिए। ऐसा होने से संबंधित कर्मियों को परेशानी नहीं होगी। सामाजिक कार्यकर्ता मेहदी रजा कहते हैं कि आउटसोसिंंर्ग के जरिए भर्ती होने वाले स्वास्थ्य कर्मियों को बेहतर मानदेय के साथ सुविधाएं दी जानी चाहिए। आखिर वे मरीजों की सेवा करते हैं। सरकारी कामकाज में सहयोग करते हैं तो उनकी भी सुविधाओं का ख्याल रखना जरूरी है। आउटसोर्सिंग के जरिए काम करने पर होता है शोषण :सरकारी अस्पतालों में ज्यादातर स्वास्थ्यकर्मी संविदा या फिर आउटसोर्सिंग के जरिए आते हैं। पहले तो उन्हें मानदेय कम मिलता है दूसरी तरफ कर्मी अक्सर भर्ती करने वाली कंपनियों पर शोषण का आरोप लगाते हैं। कई बार इससे परेशाहोकर संबंधित कर्मी धरना प्रदर्शन को मजबूर होते हैं। जिला अस्पताल हो या फिर अन्य सरकारी अस्पताल, ज्यादातर में आउटसोसिंर्ंग या फिर संविदा पर ही स्वास्थ्य कर्मियों की भर्ती होती है। उनसे काम तो खूब लिया जाता है लेकिन उनकी सुविधाओं का ख्याल नहीं रखा जाता है। कई बार मानदेय में लेट लतीफी के चलते कर्मियों को परेशान होना पड़ता है तो कई बार अन्य सुविधाओं के लिए। तमाम प्रयास के बाद भी जब उनकी मांग पूरी नहीं होती तो वे धरना-प्रदर्शन को मजबूर होते हैं। आवाज बुलंद करते हैं, इसके बाद भी उनकी समस्याओं का निस्तारण ज्यादातर मौकों पर नहीं हो पाता है। नर्सिंग का कोर्स करने के बाद प्रशिक्षण के लिए छात्र छात्राओं को काफी मुसीबत होती है। निजी अस्पताल हो या फिर सरकारी कहीं भी उनकी सुनवाई नहीं होती। हालांकि, ज्यादातर छात्र छात्राएं निजी अस्पतालों में ही प्रशिक्षु के तौर पर काम करते हैं, जहां उन्हें कुछ मानदेय मिल जाता है तो कहीं नहीं भी मिलता है। प्रशिक्षण लेने में पेश आती हैं मुश्किलें :बड़ी रकम खर्च कर नर्सिंग का कोर्स करने वाले छात्र छात्राओं को प्रशिक्षण के लिए भटकना पड़ता है। सरकारी अस्पतालों में प्रशिक्षु के तौर पर काम करने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ता है। ज्यादातर छात्र छात्राएं निजी अस्पतालों में ही प्रशिक्षण लेते हैं। इसमें उन्हें कई प्रकार की मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। पहले तो उनसे काम खूब लिया जाता है लेकिन उन्हें उसके बदले जो पारिश्रमिक मिलता है, वह काफी कम होता है। प्रशिक्षु के तौर यह सब उन्हें सहन करना पड़ता है। समस्या ज्यादा तब होती है जब कहीं कहीं प्रशिक्षण के दौरान न तो उन्हें पारिश्रमिक मिलता है और न ही अन्य सुविधाएं। कुछ अस्पताल तो ऐसे भी हैं, जो प्रशिक्षण देने के नाम पर शुल्क की डिमांड करते हैं। यह स्थिति ऐसे प्रशिक्षुओं के लिए काफी मुसीबत भरी होती है। इसके चलते ज्यादातर छात्र-छात्राएं ऐसे संस्थान का चुनाव करते हैं, जहां प्रशिक्षण के लिए शुल्क न देना पड़े। सामाजिक कार्यकर्ता मनमोहन, देवेंद्र व शीतला प्रसाद कहते हैं कि सरकार को चाहिए कि नर्सिंग छात्र छात्राओं के लिए अलग से नि:शुल्क प्रशिक्षण की व्यवस्था करे। ऐसा होने से छात्र छात्राओं का प्रशिक्षु के तौर पर शोषण भी नहीं होगा और वे खुले दिमाग से प्रशिक्षण के दौरान चीजों को बारीकी से सीख सकेंगे। तभी उनका हुनर उस क्षेत्र में दिखेगा। बोले लोग नर्सिग छात्र छात्राओं को शिक्षा ग्रहण करने के बाद प्रशिक्षण के लिए मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। प्रशिक्षण के लिए विशेष व्यवस्था किया जाए। -प्रीति राजभर पढ़ाई पूरी करने के बाद मुश्किल रोजगार के लिए होती है। यदि समय समय पर सरकारी स्तर पर स्थाई पदों पर भर्ती किया जाए। -आकांक्षा वर्मा निजी अस्पतालों में प्रशिक्षु के तौर पर कठिनाई होती है। कहीं पारिश्रमिक मिल जाता है, कुछ स्थानों पर काम करना पड़ता है। -रंजना नर्सिंग छात्र छात्राओं के लिए प्रशिक्षण के लिए अलग से केंद्र स्थापित किया जाए। जिससे उन्हें भटकना न पड़े। -समीम बानो आउटसोर्सिंग के जरिए भर्ती की जाए,कर्मी के हितों का ख्याल रखा जाए। बेहतर मानदेय मिले तो मानदेय में वृद्धि भी किया जाए। -फिजा एएनएम व जीएनएम की पढ़ाई के बाद रोजगार आसानी से मिल सके, जिम्मेदारों को गंभीर होना होगा। रोजगार के बेहतर अवसर होंगे तो भागदौड़ नहीं करनी पड़ेगी। -आकांक्षा निजी अस्पतालों में प्रशिक्षुओं से काम लिया जाता है, उसके अनुरूप पारिश्रमिक नहीं मिलता है। -मनीषा सिंह आउटसोर्सिंग पर होने वाली भर्तियों में बेहतर मानदेय व सुविधाएं ज्यादा होना चाहिए। क्योंकि मरीजों की सेवा करने के साथ ही अन्य स्वास्थ्य कार्यों को करना पड़ता है। -जूली पटेल सरकारी अस्पतालों में काम वाले संविदा कर्मियों का समय समय पर मानेदय में बढ़ोत्तरी हो आर्थिक मुश्किलों से नहीं जूझना पड़ेगा। -नेहा एक प्रशिक्षु के तौर पर छात्र छात्राओं सही दिशा में आगे बढ़ने की जरूरत होती है। प्रशिक्षण के दौरान बेहतर ढंग से बताया जाए। -विभा नर्सिंग छात्र-छात्राओं को रोजगार आसानी से मिल सके, इसके लिए जिम्मेदारों को ठोस कदम उठाने चाहिए। -श्वेता सरकारी अस्पतालों में प्रशिक्षुओं को जो प्रशिक्षण दिया जाता है, उसे और बेहतर करने की जरूरत है। ऐसा होगा तो प्रशिक्षुओं को भविष्य में कोई दिक्कत नहीं होगी। -नेहा बोले जिम्मेदार: इस बारे में सीएमओ डॉ संजय शैवाल का कहना है कि नर्सिंग छात्र छात्राओं को बेहतर ढंग से प्रशिक्षित किया जाता है। उन्हें कोई परेशानी न हो इसका पूरा ख्याल रखा जाता है। जो भी सुझाव व शिकायत आती है, उस पर अमल किया जाता है। सरकारी अस्पतालों में तमाम प्रशिक्षु काम कर रहे हैं। उनकी सुविधाओं को ध्यान में रखकर निर्णय लिए जाते हैं।

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