ऑटिज्म प्राइड डे: बच्चे गले लगने से कतराये या शोर से घबराये तो हो जायें अर्लट
Bagpat News - बच्चों में ऑटिज्म की समस्या तेजी से बढ़ रही है, जिससे माता-पिता में जागरूकता बढ़ी है। ऑटिज्म के लक्षणों में मां से दूर रहना, शोर से घृणा करना, और संवाद में कठिनाई शामिल हैं। कोरोनाकाल में यह समस्या और...

बच्चों में सोचने, समझने की क्षमता कम विकसित हो रही है तो उसके लक्षण समय से दिखाई देने शुरू हो जाते हैं। ऑटिज्म पीड़ित बच्चों के केस में सामने आया है कि अगर बच्चा अपनी माँ के कलेजे लगने से कतराए तो उसे ऑटिज्म हो सकता है। आटिज्म के पीड़ित बच्चे प्यार करने में छटपटाते हैं और उन्हें शोर नहीं पसंद होता है तो वह इस बीमारी से पीड़ित हो सकता हैं। बाल रोग विशेषज्ञ डॉ अभिनव तोमर बताते हैं कि अब माता-पिता जागरूक होने लगे है तो आटिज्म ग्रसित बच्चों का ग्राफ तेजी से बढ़ा है। बच्चों को मां के कलेजे से लगना पसंद नहीं आता है तो यह कोई मामूली समस्या नहीं हैं और न ही इसे हल्के में लेना चाहिए।
इन बच्चों को शोरगुल के माहौल में रहना पसंद नहीं है। जब-जब उन्हें शोर सुनाई दिया तो उनके व्यवहार में बदलाव सामने आया। इस समय बच्चा अपनी मां से भी बात करने से बचता रहा। ऑटिज्म एक तरह की दिमागी बीमारी है। इसमें मरीज न तो अपनी बात ठीक से कह पाता है न ही दूसरों की बात समझ पाता है। उनसे संवाद स्थापित करने में अड़चन आती है। इसमे सबसे बड़ा इजाफा कोरोनाकाल में आया। इस बीमारी से पीड़ित मरीजों की संख्या में न केवल बढ़ोतरी हुई बल्कि जो पहले से पीड़ित थे, उनकी समस्या और अधिक बढ़ गई। बच्चों का ज्यादातर वक्त ऑनलाइन पढ़ाई या फिर मोबाइल के सामने गुजरने लगा जिससे बच्चों में ऑटिज्म की दिक्कत बढ़ी है। पहले मनोचिकित्सक विभाग की ओपीडी में एक से दो बच्चे आते थे। अब यह संख्या बढ़कर पांच से छह पहुंच गई है। इन बच्चों में की उम्र दो से पांच साल के बीच है। वहीं बालिगों में यह संख्या 30-40 मरीजों की है। ऑटिज्म के लक्षण - जन्म के दो साल तक बच्चों को नहीं बोलना - भाषा के विकास में विलंब होना - समूह में खेलना पसंद नहीं करना - मानसिक अवसाद - गले मिलने से अस्वीकार करना - नाम बुलाने पर उत्तर नहीं देना - एक चीज को बार-बार दोहराना। यह करें माता-पिता: - गर्भावस्था में महिला को अल्कोहल और तंबाकू से बचना चाहिए। - ऐसे बच्चों के लिए ईएनटी के अलावा साइकायट्रिस्ट, साइकोलॉजिस्ट, न्यूरोलॉजिस्ट, स्पीच लैंग्वेज पैथोलॉजिस्ट, फिजियोथेरेपिस्ट मददगार होते हैं।
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