बोले बरेली: जरी उत्पादों की चमक पर ट्रंप के टैरिफ का ग्रहण
Bareily News - बरेली में बने जरी के कपड़ों का निर्यात अमेरिका में होता है, लेकिन हाल ही में अमेरिका ने इन पर 26% टैरिफ लागू किया है। इससे बरेली के निर्यातक और कारीगर चिंतित हैं। पहले केवल 5-7% टैक्स लगता था, लेकिन...

बरेली में बने जरी के कपड़ों का दुनिया के कोने-कोने में एक्सपोर्ट होता है। अमेरिका की भी इसमें हिस्सेदारी है। इसी लिए भारत से आयातित रेडिमेड कपड़ों पर 26 फीसदी अमेरिकी टैरिफ का ऐलान होते ही बरेली के जरी निर्यातक और कारोबारी भी चिंता में आ गए हैं। अभी तक जरी के उत्पादों पर पांच से सात प्रतिशत तक ही टैक्स लगता था। बरेली के करीब तीन दर्जन एक्सपोर्टर अमेरिका से सालाना 24 करोड़ रुपये का सीधा कारोबार करते हैं। बहुत से कारोबारी ऐसे हैं जो दिल्ली, मुंबई और कोलकाता के निर्यातकों के माध्यम से अपने जरी उत्पादों को अमेरिका भेजते हैं। टैरिफ लागू होने से यह लोग निर्यात पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन कर रहे हैं। बरेली में करीब डेढ़ लाख कारीगर भी जरी के काम से जुड़े हैं। उनके ऊपर भी टैरिफ रेट बढ़ने का अप्रत्यक्ष प्रभाव नजर आएगा। ऐसे में उनके चेहरों पर भी चिंता साफ नजर आ रही है।
दिल्ली-लखनऊ के बीचों-बीच बसे बरेली में जरी का काम लगभग 200 वर्षों से हो रहा है। बीते कुछ वर्षों की बात की जाए तो नोटबंदी, जीएसटी और कोरोना ने इस कारोबार को बड़े झटके दिए हैं। हाथ की कारीगरी की जगह मशीनों का इस्तेमाल शुरू होने से भी इस कारोबार के सामने चुनौतियां बढ़ी हैं। बहरहाल इस समय अमेरिकी टैरिफ के रूप में एक और बड़ी चुनौती जरी उद्योग के सामने खड़ी हुई है। अतिरिक्त 26 फीसदी शुल्क के कारण भारत में बने ज़री के उत्पाद अमेरिकी बाजार में महंगे हो जाएंगे। कीमतों में वृद्धि होने से भारत को अमेरिका से आर्डर मिलना कम हो सकते हैं। भारत की जगह अमेरिकी कारोबारी वियतनाम, तुर्की जैसे देशों के सस्ते विकल्प की तरफ रुख कर सकते हैं। यह स्थानीय निर्यातकों, कारोबारियों और कारीगरों के लिए एक बड़ा झटका होगा।
सरकारी आंकड़ों की बात की जाए तो मोटे तौर पर बरेली के केवल तीन दर्जन निर्यातक ही सीधे अमेरिका को अपने उत्पाद भेजते हैं। मगर, अप्रत्यक्ष रूप से अमेरिकी बाजार से जुड़े निर्यातकों की संख्या इससे कहीं अधिक है। जरी के कारोबार से जुड़े लोगों का कहना है कि बरेली के छोटे-बड़े सैकड़ों ऐसे कारोबारी हैं जो दिल्ली, मुंबई, कोलकाता आदि के एक्सपोर्ट हाउस के लिए उत्पाद तैयार करते हैं। यह लोग अपने उत्पाद इन एक्सपोर्ट हाउस को देते हैं और बाद में एक्सपोर्ट हाउस उनको अमेरिका भेजते हैं। इन बड़े एक्सपोर्ट हाउस के मुनाफे पर टैरिफ बढ़ने से नकारात्मक असर आएगा। ऐसे में अप्रत्यक्ष रूप से बरेली के छोटे-कारोबारियों को भी नुकसान झेलना पड़ सकता है।
सुरमा और बांस-बेंत के कारोबार के लिए बरेली का नाम प्रसिद्ध है। हालांकि सच्चाई यह है कि बरेली में सबसे अधिक श्रमिक जरी के कारोबार से जुड़े हुए हैं। सरकारी आंकड़ों में इनकी संख्या लगभग डेढ़ लाख है। हालांकि असंगठित क्षेत्र से जुड़े कर्मचारी संगठनों की बात मानी जाए तो यह संख्या लगभग चार लाख के आसपास बैठती है। स्थानीय स्तर पर व्यापार करने वाले जरी कारोबारियों के मुकाबले श्रमिकों को एक्सपोर्ट से जुड़े कारोबारियों के साथ काम करने में अधिक मुनाफा होता है। एक्सपोर्ट हाउस में इनको अधिक काम के साथ-साथ अच्छा मेहनताना भी मिलता है। ऐसी स्थिति में यह साफ है कि अगर एक्सपोर्ट कम हुआ या फिर एक्सपोर्टर का मुनाफा घटा तो फिर कारीगरों को भी आर्थिक नुकसान झेलने होंगे। यही चिंता उन्हें परेशान कर रही है। एक एक्सपोर्ट हाउस में काम कर रहे कारीगरों ने कहा कि नोटबंदी से पूर्व वह खुद के छोटे-छोटे कारखाने चलाते थे, जहां 8-10 कारीगर काम करते थे। नोटबंदी ने हमारे काम पर चोट की तो हम लोगों को बड़े कारोबारियों की शरण में आना पड़ा। कोविड के दौरान बड़े कारोबारी प्रभावित हुए थे। इससे हमारे लिए आर्थिक संकट खड़ा हो गया था। अब टैरिफ के रूप में एक बार फिर बड़ी दिक्कत आने का अंदेशा हो रहा है। सरकार को इस मामले में जल्द कोई ठोस रास्ता निकालना होगा।
सरकार से राहत की उम्मीद
राजगढ़िया एक्सपोर्ट के एमडी सुदीप राजगढ़िया का कहना है कि अमेरिकी राष्ट्रपति के भारत से आयातित रेडिमेड कपड़ों पर टैरिफ लगाने से निर्यात प्रभावित हो सकता है। अब तक अमेरिका को निर्यात किए जाने वाले जरी-जरदोजी से निर्मित कपड़ों पर 5 से 7 प्रतिशत तक ही टैरिफ लगता था। ये भी कपड़ों पर और उनके विभिन्न सेगमेंट पर निर्भर करता था। इसके साथ ही 800 डॉलर तक के कपड़ों के निर्यात को ड्यूटी फ्री रखा गया था। पहले सरकार अमेरिका में जरी परिधान निर्यात करने पर 12 प्रतिशत तक ड्यूटी ड्रॉ बैक देती थी। इससे निर्यातकों को सहूलियत होती थी। वर्तमान समय में ड्यूटी ड्रॉ-बैक का प्रावधान करीब 3 प्रतिशत तक है। ऐसे मे जरी परिधानों पर 26 प्रतिशत के टैरिफ से निर्यातकों को काफी परेशानी होगी। इसका सीधा असर यहां के कारीगरों और छोटे व्यापारियों पर भी पड़ेगा। इसका कारण यह है कि जब अमेरिका में टैरिफ बढ़ने के कारण मूल्य बढ़ेगा तो वहां मांग कम हो सकती है, जिसका सीधा असर उत्पादन पर पड़ेगा। अब तक जो बड़े कारोबारी ठेकेदारों के माध्यम से छोटे-छोटे व्यापारियों से माल तैयार कराते थे, वे ऑर्डर देना यदि कम करते हैं तो कारीगरों की आमदनी पर भी असर पड़ेगा।
ड्यूटी ड्रॉ बैक से मिल सकेगी राहत
सुल्तानिया क्राफ्ट्स के एमडी मोहम्मद सलमान इलाही ने बताया कि साल 2014 तक विभिन्न रेडिमेड परिधानों को अमेरिका निर्यात करने पर केंद्र सरकार की ओर से 10 से 12 फीसदी तक ड्यूटी ड्रा बैक या यूं कहें कि सब्सिडी मिलती थी। इसके कारण हम लोग बायर्स को कम प्राइस कोट करके अपना माल बेचते थे और इस अंतर को सब्सिडी से मैनेज कर लेते थे। वर्तमान समय में ड्यूटी ड्रॉ बैक तीन प्रतिशत के आसपास है। ऐसे में 26 प्रतिशत टैरिफ लगने से इसका काफी असर पड़ेगा। कुछ साल पहले तक अपने देश से यूरोपियन और अमेरिकन देशों में स्विस कैनाल से माल जाता था। बाद में यह रूट भी डिस्टर्ब हुआ। इसके कारण ट्रांसपोर्टेशन कॉस्ट करीब 20 से 25 फीसदी तक बढ़ गया। अब अमेरिका टैरिफ आ गया है। इसका काफी असर कारोबार पर पड़ेगा। हमें उम्मीद है कि व्यापारियों और कारीगरों के हित में सरकार कोई बेहतर रास्ता निकालेगी, जिससे कारोबार प्रभावित न हो।
यूरोप, मिडिल ईस्ट में तलाशें नए बाजार
भारतीय उत्पादों पर 26 फ़ीसदी का टैरिफ लगाने का असर सीधे तौर पर बरेली के ज़री उद्योग पर पड़ेगा। इससे भारत में बने जरी उत्पाद अमेरिकी बाजार में महंगे हो जाएंगे। मूल्य वृद्धि से अमेरिकी बाजार से ऑडर्र कम हो सकते हैं। स्थानीय निर्यातकों को वियतनाम, तुर्की जैसे देशों से कड़ी प्रतिस्पर्धा मिलेगी। जरी के निर्यातकों के लिए मेरा सुझाव है कि वो अमेरिका की निर्भरता को घटाते हुए यूरोप, मिडिल ईस्ट, दक्षिण एशिया जैसे बाज़ारों में विस्तार करें। डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से भी कारोबार को बढ़ावा दिया जा सकता है। जरी की सांस्कृतिक विरासत और कारीगरों के कठोर श्रम को केंद्र में रखते हुए ब्रांडिंग करें। पारंपरिक डिज़ाइन में आधुनिकता जोड़ते हुए नए प्रोडक्ट्स जैसे होम डेकोर, फ्यूजन परिधान भी तैयार करें। स्किल इंडिया, एमएसएमई प्रशिक्षण कार्यक्रमों का लाभ उठाकर अपनी गुणवत्ता में भी सुधार करें। मुझे लगता है कि इस स्थिति से निपटने के लिए सरकार भी कोई ठोस कदम उठाएगी। डब्लूटीओ में भी यह मुद्दा उठाया जा सकता है। भारत व्यापार संतुलन और निष्पक्षता के आधार पर विश्व व्यापार संगठन में केस प्रस्तुत कर सकता है। भारत अमेरिका के साथ नए व्यापार समझौतों में शुल्क में राहत के लिए द्विपक्षीय वार्ता भी कर सकता है। सरकार को निर्यात सब्सिडी के बारे में भी गंभीरता से सोचना होगा। यूरोप, यूएई, आस्ट्रेलिया जैसे नए बाजारों को भारतीय निर्यातकों के अनुसार सुगम बनाने के लिए प्रयास करने होंगे। इस चुनौतीपूर्ण समय में सरकार और उद्योग जगत के संयुक्त प्रयासों से ही ज़री कारोबार को नई दिशा दी जा सकती है। यदि सरकार वैश्विक मंच पर व्यापार सुरक्षा सुनिश्चित करे और कारोबारी नवाचार व डिजिटल माध्यमों से आगे बढ़ें तो यह संकट एक बड़े अवसर में बदला जा सकता है।
कारोबारियों की बात
कई बार ठेकेदारों और छोटे व्यापारियों के माध्यम से निर्यात होने वाली सामग्री बनवाई जाती है। अब यदि अधिक टैरिफ लगने से कारोबार प्रभावित हुआ तो इन्हें काम कम मिलेगा। इससे आमदनी पर असर पड़ेगा।-शालू सक्सेना, बरेली
जरी-जरदोजी के बिजनेस में मंदी चल रही है। विदेश में माल की डिमांड वैसे ही कम है। अमेरिका का टैरिफ लगने से तो जरी जरदोजी कारोबारियों की कमर ही टूट जायेगी।-सरदार अंसारी, फतेहगंज पश्चिमी
अमेरिका के टैरिफ से जरी जरदोजी कारोबार पर व्यापक असर पड़ेगा। भारत के उत्पाद महंगे होने से हम लोगों को दिक्कत होगी। सरकार को होने वाले नुकसान को कम करने के उपाय करने चाहिए।-इरशाद अहमद, मीरगंज
जरी-जरदोजी के भारत में तैयार माल पर टैक्स बढ़ने से कंपटीशन बढ़ेगा। मांग घटने का असर हम जैसे लोगों पर पड़ेगा। सरकार वैकल्पिक कदम उठाकर पड़ने वाले असर को रोके।- जाकिर हुसैन, फतेहगंज पश्चिमी
बढ़े हुए टैक्स का व्यापारी, ठेकेदार और कारीगर सभी पर असर होगा। टैक्स से माल मंहगा होने से खरीदारी कम होगी। सरकार को कोई न कदम उठाना ही होगा। जिससे यह कारोबार संभल सके। -शराफत हुसैन, मीरगंज
कारीगरों की सुनिए:
कोरोना के बाद बड़ी मुश्किल से जरी का काम फिर से ठीक-ठाक हालात में आया है। ऐसे में टैरिफ से निपटने की ठोस नीति नहीं बनी तो हम जैसे कारीगरों को को बड़ी दिक्कत होगी। -अरशद
हमको पूरी उम्मीद है कि केंद्र सरकार टैरिफ से निपटने के लिए कोई ठोस योजना बनाएगी। यदि अमेरिका से आर्डर मिलने कम हुए तो हमारे काम पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।-मोहसिन
कारखाने में इस समय अमेरिकी टैरिफ की ही सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है। यह भी डर है कि कहीं अमेरिका की तर्ज पर दूसरे देश भी भारत के ऊपर टैरिफ न लगा दें। -झम्मन लाल
जरी के काम की हालत वैसे भी बहुत अच्छी नहीं है। कुछ एक्सपोर्ट हाउस के चलते ही हम लोगों की रोजी-रोटी चल रही है। अगर इनके कारोबार पर असर पड़ा तो हमको भी दिक्कत होगी।-शानू
अमेरिका जाने के लिए हम लोग काफी उत्पाद तैयार करते हैं। अभी तक को वहां से काफी अच्छे आर्डर मिल रहे थे। टैरिफ के बारे में ज्यादा क्या कहें। कुछ दिन बाद ही असर दिखेगा। - समीर
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