बोले बरेली: अमेरिकी टैरिफ को टक्कर देने की तैयारी में चावल कारोबारी
Bareily News - अमेरिका द्वारा भारत से आयातित बासमती चावल पर 26 प्रतिशत टैरिफ लगाने से बरेली के चावल उद्योग पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा। इससे निर्यात लागत बढ़ेगी और अमेरिकी बाजार में भारतीय चावल की मांग में कमी आ सकती है।...

अमेरिका द्वारा भारत से आयातित बासमती चावल पर 26 प्रतिशत टैरिफ लगाए जाने का सीधा असर बरेली के चावल उद्योग पर पड़ने की संभावना है। चावल उत्पादन केंद्रों से होने वाले निर्यात में वृद्धि की उम्मीदों को यह नीति नुकसान पहुंचा सकती है। चावल कारोबारियों का मानना है कि इससे निर्यात लागत बढ़ेगी, जिससे अमेरिकी बाजार में भारतीय चावल की डिमांड में कमी आ सकती है। यह स्थिति किसानों, राइस मिलर्स और निर्यातकों के लिए चिंता का विषय बन सकती है, क्योंकि पहले से ही चावल का बाजार मंदी का सामना कर रहा है। इस बदलाव से निपटने के लिए सरकार से राहत पैकेज और उचित नीति समर्थन की उम्मीद जताई जा रही है, ताकि उद्योग की स्थिरता बनी रहे और नुकसान की भरपाई हो सके।
बरेली से बाहर ज्यादातर बासमती चावल का निर्यात किया जाता है। इनकी तीन वैरायटी हैं। इनमें कॉमन चावल का रेट ढाई से साढ़े तीन हजार रुपये प्रति क्विंटल के बीच है। दूसरा है ग्रेड-ए, इसका रेट 3600 से 5000 तक है। और बासमती का रेट 5000 से लेकर आठ हजार रुपये तक प्रति क्विंटल है। बरेली में सालाना करीब एक करोड़ क्विंटल चावल को प्रोसेस किया जाता है। इस तरह से बरेली मंडल में करीब ढाई करोड़ चावल को राइस मिलर प्रोसेस करता है। इनमें कुल रिकवरी करीब 60 प्रतिशत होता है। इनमें साबूत और टुकड़ा दोनों होता है। यानि बरेली जिले में करीब 60 लाख क्विंटल चावल होता है। इनमें टुकड़ा वाला चावल करीब 40 प्रतिशत होता है। राइस मिलर्स की मानें तो करीब 35 लाख क्विंटल चावल मार्केट में आता है। इनमें से करीब 15 लाख क्विंटल चावल देश के विभिन्न हिस्सों में स्थानीय बाजार में बेचा जाता है और करीब 20 लाख क्विंटल चावल विभिन्न देशों में निर्यात किया जाता है। इनमें बरेली से ओमान, कतर, यूएई, नेपाल आदि देशों में तो सीधे निर्यात किया जाता है। राइस मिलर्स का कहना है कि दिल्ली, हरियाणा और पंजाब के खरीददार बरेली से चावल खरीदकर अमेरिका निर्यात करते हैं। अब यदि अमेरिका में 26 रुपये टैरिफ लगाया जाता है तो प्रति क्विंटल निर्यात के रेट में इतने की बढ़ोतरी हो जाएगी। इसका असर ये पड़ेगा कि अमेरिका में भारतीय चावल की कीमत बढ़ जाएगी। कीमत बढ़ने से हो सकता है कि इसकी डिमांड पर असर पर पड़े लेकिन अभी कुछ भी खास कहा नहीं जा सकता है। इसका कारण यह है कि हमारे यहां उत्पादित होने वाले बासमती राइस की वैरायटी काफी अच्छी है। खाने के मामले में लोग अक्सर गुणवत्ता से समझौता नहीं करते हैं। दूसरा कारण यह है कि कई दूसरे ऐसे देश जो अमेरिका को चावल सप्लाई करते हैं, उन पर भी ट्रंप सरकार ने टैरिफ लगाया है, जो भारत से काफी अधिक है। इस स्थिति में यह संभावना जताई जा रही है कि हमारे यहां से चावल निर्यात पर हो सकता है कि अधिक असर न पड़े।
इन कंपनियों के माध्यम से होता है चावल का निर्यात
राइस मिलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष मोहम्मद आरिफ ने बताया कि एलटी फूड्स, करनाल, दावत फूड्स, मंडदीप, केएस ओवरसीज, सफलटेक, केआरबीएल, सतनाम, तन्ना एग्रो इंपैक्ट दिल्ली आदि बड़ी कंपनियों के माध्यम से बरेली से चावल दूसरे देशों में निर्यात किया जाता है। एक अनुमान के मुताबिक बरेली के राइस मिलर्स जितने चावल का उत्पादन करते हैं। इनमें से निर्यात का करीब 20 फीसदी हिस्सा अमेरिका भेजा जाता है। चावल को जब निर्यात करते हैं तो लैब में परीक्षण के बाद उसका सर्टिफिकेट बनता है। इसमें दो तरह के पास होते हैं, एक होता है यूएसए पास और दूसरा होता है यूरोप पास। फिलहाल यूएसए पास चावल की कीमत 6600 रुपये से 7000 रुपये प्रति क्विंटल है। जबकि यूरोप पास की कीमत 7700 से 8000 रुपये प्रति क्विंटल है।
रेट गिरने से पहले से ही परेशान हैं चावल कारोबारी
चावल का बाजार पिछले करीब दो साल से ठीक नहीं चल रहा है। कीमतें काफी गिरी हुई हैं। इसके कारण चावल व्यापारियों के साथ ही किसानों को भी परेशानी हो रही है। अब यदि अमेरिका 26 प्रतिशत टैरिफ लगाता है तो काफी नुकसान होगा। इससे निपटने के लिए सरकार को चावल इंडस्ट्री को पैकेज देना चाहिए। साथ ही बैंक के माध्यम से भी कारोबारियों के लिए कोई योजना लाई जा सकती है। ड्यूटी ड्रॉबैक में बढ़ोतरी करके भी सहूलियत दी जा सकती है। मोहम्मद आरिफ का कहना है कि यदि बरेली में क्लस्टर बना होता तो इससे काफी आसानी हो सकती थी। क्लस्टर बनने से यहीं पर चावल की टेस्टिंग हो जाती। हमें अपना चावल लेकर उसकी टेस्टिंग कराने के लिए दिल्ली नहीं ले जाना पड़ता। इससे हमारा खर्च भी कम होता। बरेली मंडल में करीब 500 राइस मिल हैं। ऐसे में यदि बरेली में क्लस्टर बनता तो हमें काफी सुविधा होती।
ड्यूटी ड्रॉबैक की सुविधा दे सरकार (सिंगल तस्वरी)
राइस मिलर्स एसोसिएशन रिछा के अध्यक्ष मोहम्मद आरिफ का कहना है कि अमेरिका की ओर से लगाए गए 26 प्रतिशत टैरिफ के कारण हमारा कारोबार काफी प्रभावित होगा। इससे निपटने के लिए सरकार को ड्यूटी ड्रॉबैक देना चाहिए। साथ ही इस परेशानी से निपटने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए। चावल का मार्केट दो साल पहले से ही पहले ही खराब चल रहा है। इसके साथ ही बरेली चावल का बहुत बड़ा हब है। इसके बावजूद क्लस्टर आगरा में बनने की बात चल रही है। बरेली में ही यदि चावल का क्लस्टर बनता तो हमें परेशानी कम होती। हम और अधिक गुणवत्ता पूर्ण चावल का उत्पादन करके उसे दूसरे देशों में अधिक मात्रा में निर्यात कर सकते थे।
कम हो सकती है बासमती चावल की डिमांड (सिंगल तस्वरी)
रिछा की दूसरी राइस मिलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अतहर हुसैन नियाजी का कहना है कि करीब 3.15 लाख मीट्रिक टन बासमती चावल अमेरिका को 2023-24 में एक्सपोर्ट हुआ था। टैरिफ़ आने के बाद जो चावल के जो कंसाइनमेंट यूएस गए थे उनको लेकर विवाद शुरू हो गया है। इसके साथ ही यूएस पास जो चावल एक्सपोर्ट होता है, उसमें एमआरएल दूसरे देशों ने कम कर दिया है और अमेरिका के नजरिए से वहां डॉलर का रेट भी मजबूत है। इससे भारत के बासमती चावल की डिमांड कम हो सकती है और चावल मार्केट पड़ोसी देशों की तरफ़ शिफ्ट हो सकता है। इसका सीधा असर उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब पर पड़ेगा।
सरकार बनाए कोई ठोस योजना (सिंगल तस्वरी)
रिछा राइस मिलर्स एसोसिएशन के महासचिव राशिद कमाल का कहना है कि चावल का मार्केट पहले से ही काफी डाउन चल रहा है। अमेरिकी टैरिफ लगने से यह समस्या और बढ़ जाएगी। अब सरकार से ही उम्मीद है कि चावल के निर्यात पर कोई असर न पड़े, इसके लिए कोई ठोस योजना बनाए। साथ ही हम राइस मिलर्स उम्मीद करते हैं कि हमें उतना ड्यूटी ड्रॉबैक या सब्सिडी दी जाए, जिससे टैरिफ लगने के बाद जो नुकसान व्यापारियों को होगा, उसकी भरपाई हो सके। सरकार के ठोस कदम से ही राइस मिलर्स के साथ ही किसानों को भी इसका फायदा होगा।
हमारी भी सुनिए:
अमेरिका द्वारा भारत पर 26 प्रतिशत टैरिफ लगाने से भारत से चावल निर्यात पर जबरदस्त असर पड़ेगा। इसका सीधा असर चावल उद्योग पर पड़ेगा। इस स्थिति से निपटने के लिए सरकार को ठोस कदम उठाने होंगे। नईम अहमद, अध्यक्ष, बहेड़ी राइस मिल सएसोसिएशन
अमेरिका द्वारा टैरिफ लगाने से यदि चावल का निर्यात कम हुआ तो हमारी राइस मिल बंद होने की स्थिति में पहुंच जाएगी। बरेली से काफी मात्रा में चावल दिल्ली, हरियाणा और पंजाब के निर्यातकों के माध्यम से अमेरिका भेजा जाता है। - मोहम्मद इंतखाब, राइस मिल एसोसिएशन के महामंत्री
अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ के कारण किसान को भी उसकी फसल का पूर्ण मूल्य नहीं मिल सकेगा। टैरिफ लगने के कारण यदि अमेरिका में भारतीय चावल की कीमत अधिक हुई तो डिमांड घटने से निर्यात पर असर पड़ सकता है। रियाजुल कमर, राइस मिलर
ट्रंप के टैरिक के बारे में अधिक जानकारी नहीं है। पर अगर निर्यात या आयात को लेकर नियमों में कोई बंदिश आई है तो इससे कुछ परेशानियां तो बढ़ेंगी ही। इसका असर किसानों पर भी मिलेगा, जिससे उनकी भी दिक्कतें बढ़ेंगी। - सुनील अग्रवाल, राइस मिलर
हमें ट्रंप की विदेश नीति या टैरिफ के बारे में गहन जानकारी नहीं है। हालांकि टैरिफ लगने से निर्यात पर असर पड़ेगा। हमारे यहां से अमेरिका सीधे तो चावल नहीं भेजा जाता लेकिन यदि अन्य राज्यों के निर्यातकों ने खरीद कम किया तो असर पड़ेगा। - राजू राठौर, चावल करोबारी
पीलीभीत क्षेत्र में धान काफी अधिक होता है। इसे गल्फ देशों और पीलीभीत के साथ ही अमेरिका भी भेजा जाता है। हमारे यहां से अमेरिका सीधे निर्यात नहीं होता है लेकिन टैरिफ लगने से इसके खरीद पर तो असर पड़ेगा ही। - ग्यास खान
हमारे क्षेत्र में बासमती धान बहुत होता है। इसे राइस मिलर और सरकारी केंद्रों पर बेंचते है। राइस मिलर किन माध्यमों से इन्हें अमेरिका भेजता है इसकी जानकारी नहीं है लेकिन ट्रंप की नीति से निर्यात पर असर पड़ेगा। - पलविंदर सिंह
जिला पीलीभीत तराई क्षेत्र है। यहां बारीक और मोटे धान की अच्छी पैदावार है। अधिकतर बारीक धान विदेशों को निर्यात होता है। अमेरिका के 26 प्रतिशत टैरिफ लगने से इसके निर्यात पर असर पड़ेगा। किसानों की आमदनी भी प्रभावित हो सकती है। - जमा मलिक
अमेरिकन टैरिफ के बाद चावल के निर्यात के लिए अधिक टैक्स देना पड़ेगा। इस वजह से काफी नुकसान होगा। इस नुकसान की भरपाई के लिए सरकार हो सकता है कि कोई बेहतर कदम उठाए, जिससे किसानों को भी राहत मिले। - मनमोहन सिंह, राइस मिलर भुता
अमेरिकी टैरिफ का सीधा असर बासमती चावल पर पड़ेगा। हालांकि कितना असर पड़ेगा, यह स्थिति अगले एक-दो सप्ताह में स्पष्ट हो जाएगी। इतना तय है कि इससे यदि अमेरिका में बासमती चावल की डिमांड कम हुई तो हमारे यहां के राइस मिलर्स और किसान दोनों प्रभावित होंगे। - वकील अहमद, राइस मिलर रिछा
अमेरिका का टैरिफ लगने से व्यापार करना मुश्किल हो जाएगा। अधिकांश राईस मिलें बन्द होने की कगार पर भी पहुंच सकती हैं। केंद्र सरकार कुछ ऐसी रणनीति तैयार करे, जिससे इस टैरिफ की समस्या का समाधान हो सके।
- रमेशचंद्र गुप्ता, पूर्व अध्यक्ष राईस मिल एसोसिएशन, नवाबगंज
अमेरिका के टैरिफ से राईस मिलर पर बड़ी मार पड़ेगी और उनका आर्थिक नुकसान होगा। जिसकी भरपाई करना मुश्किल होगी। इससे देश को भी आर्थिक नुकसान होगा। हमें उम्मीद है कि इस समस्या से निपटने के लिए सरकार जरूर कोई कारगर कदम उठाएगी। - राजीव गुप्ता, अध्यक्ष राइस मिल एसोसिएशन, नवाबगंज
अमेरिकी टैरिफ लगने से कारोबार को बड़ा नुकसान होगा। इससे मंहगाई भी बढ़ेगी। व्यापार करना मुश्किल हो जाएगा। इसका असर बरेली मंडल के किसानों पर भी पड़ेगा। ऐसा हो सकता है कि उत्पादन कॉस्ट कम करने लिए किसानों को भी धान का भुगतान कुछ कम मिल सकता है। - शकील अहमद राईस मिलर नवाबगंज।
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।