बोले बस्ती: जर्जर व सीलन भरे कमरों में पढ़ाई कर रही हैं छात्राएं
Basti News - आर्य कन्या इंटर कॉलेज की स्थिति बेहद खराब है। जर्जर भवन और संसाधनों की कमी के कारण छात्राएं पढ़ाई में ध्यान नहीं लगा पा रही हैं। पहले 1200 छात्राएं पढ़ाई करती थीं, अब मात्र 250 छात्राएं हैं।...

Basti News : शैक्षिक ढांचे में एडेड कॉलेजों की भूमिका अहम रही है। इनकी वजह से प्रदेश के लाखों छात्रों को उच्च शिक्षा का अवसर मिलता है। विडंबना यह है कि आज यही एडेड कॉलेज बदहाली का शिकार हो रहे हैं। निजी कॉलेज प्रबंधन द्वारा संचालित ये विद्यालय सरकारी अनुदान पर निर्भर हैं। कभी अधिकारियों की नर्सरी कहे जाने वाले कॉलेज वर्तमान मे संसाधनों की कमी, शिक्षकों की नियुक्ति में देरी, भवनों की जर्जर हालत और प्रशासनिक उपेक्षा जैसे कारणों से अपने उद्देश्यों को पूरा नहीं कर पा रहे हैं। यह स्थिति न केवल शैक्षिक गुणवत्ता को प्रभावित कर रही है, बल्कि छात्रों के भविष्य पर भी प्रश्नचिह्न खड़े कर रही है।
‘हिन्दुस्तान से बातचीत में शिक्षकों और छात्राओं ने अपनी समस्याएं साझा कीं। एक समय था जब आर्य कन्या इंटर कॉलेज में 1000 से लेकर 1200 छात्राएं शिक्षा ग्रहण करती थीं। धीरे-धीरे यह कॉलेज बदहाल होता गया। कॉलेज भवन की जर्जर स्थिति और संसाधनों की कमी की वजह से इस समय मात्र 250 छात्राएं ही शिक्षा ग्रहण कर रही हैं। आर्य कन्या इंटर कॉलेज के जर्जर हो चुके भवन में पढ़ाई करना छात्राओं के लिए जान जोखिम डालने से कम नहीं है। यहां छात्राएं पढ़ाई की तरफ कम ध्यान दे पाती हैं जर्जर भवन और कक्षाओं की दीवारों में दरार पड़ चुकी है। कक्षाओं की दीवारों की तरफ ज्यादा ध्यान रहता है। छात्राएं सीलन से भरे कमरों में किसी तरह से पढ़ाई कर रही हैं। गांधीनगर से रौता चौराहे की तरफ जाने वाली सड़क पर मौजूद आर्य कन्या इंटर कॉलेज की प्रधानाचार्या माया कुमारी और बड़े बाबू सियाराम सिंह ने बताया कि बेलवासेंगर (रुधौली) में चिरैया के रहने वाले जमींदार श्याम बहादुर ने सन 1931 में इस भवन का निर्माण करवाया था। उस समय इसमें आवासीय पाठशाला चलती थी। कक्षा एक से लेकर पांच तक के बच्चे पढ़ाई करते थे। 1968 से पूरी तरह से एक विद्यालय की तरह से संचालित होने लगा। तभी से कक्षा एक सेआठ तक की यहां पर पढ़ाई होने लगी। 1970 में यूपी बोर्ड से 10वीं की मान्यता मिल गई और यहां पर हाईस्कूल तक की छात्राओं की पढ़ाई होने लगी। उस दौर में बालिका शिक्षा की ओर एक बड़ा कदम था। सन 1972 में यूपी बोर्ड द्वारा कला वर्ग से इंटरमीडिएट तक के छात्राओं के पढ़ाई की मान्यता मिली। तब से लेकर अब तक यहां पर कक्षा छह से लेकर इंटर तक की छात्राओं की पढ़ाई हो रही है। उस समय हिन्दी, संस्कृत, इतिहास, नागरिक शास्त्र, समाज शास्त्र व अंग्रेजी की ही मान्यता मिल पाई थी। बाद में खेल और संगीत की भी मान्यता मिली। लेकिन 1931 के बाद से इस भवन की मरम्मत नहीं हो सकी, लिहाजा वर्तमान में पूरा भवन जर्जर हो गया है। प्रधानाचार्या माया कुमारी का कहना है कि अलंकार योजना के तहत 25 प्रतिशत धन कॉलेज को देना पड़ता है उसके बाद इस योजना के तहत उसमें 75 प्रतिशत रकम जीर्णोद्धार के रूप में इस्तेमाल की जा सकती है। लेकिन इस समय विद्यालय में कुल 250 छात्राएं ही शिक्षा ग्रहण कर रही हैं इसलिए हमारी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि हम 25 प्रतिशत रकम जमा कर अलंकार योजना का लाभ ले सकें। सरकार की विद्यालय की स्थितियों को संज्ञान में लेकर अनुदान दे तो विद्यालय में फिर पहले जैसी रौनक लौट सकती है। खेल और संगीत की शिक्षक होने के बावजूद भी यहां की छात्राएं इस क्षेत्र में बेहतर मुकाम नहीं हासिल कर पा रही हैं। कॉलेज में छात्राओं के खेलने के लिए मैदान सहित कोई सुविधा नहीं हैं।] फिसलन भरी चार फिट के गलियारे में चलना मजबूरी : आर्य कन्या इंटर कॉलेज में ऊपरी तल पर इंटरमीडिएट की कक्षाएं चलती हैं। 12वीं की छात्राएं रोजाना इसमें क्लास करती हैं। जर्जर सीढ़ियों से होकर चार फिट के टेरस से होकर छात्राएं अपने-अपने क्लास में पहुंचती हैं। गली की एक तरफ बनी रेलिंग काफी जर्जर है। टेरस से आते-जाते वक्ज अगर दो छात्राएं आपस में टकरा जाएं तो नीचे गिरकर घायल हो सकती हैं। इंटर कॉलेज से निकलीं छात्राएं बन चुकी हैं इंजीनियर और प्रवक्ता बड़े बाबू सियाराम सिंह ने बताया कि पहले यहां पर काफी छात्राएं शिक्षा ग्रहण करती थीं। शहर की हर अच्छे घरों की बेटियां पढ़ने आती थीं। यहां पर शिक्षा ग्रहण करने वाली बहुत सी छात्राएं बतौर जूनियर इंजीनियर कार्यरत हैं। कुछ छात्राएं रेलवे में अच्छे पदों पर सेवाएं दे रही हैं। यहीं पर शिक्षा ग्रहण करने वालीं छात्रा गीता उपाध्याय बस्ती के ही राजकीय कन्या इंटर कॉलेज में प्रवक्ता के पद पर कार्यरत हैं। पहले यहां की छात्राएं भी गेम में उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हुए स्टेट लेबल तक खेलने जाती थीं। उनका कहना है कि संशाधनों की कमी के कारण अब छात्राएं खेल में उतनी रुचि नहीं ले रही हैं। 1970 में इस विद्यालय का बहुत नाम था। लोग अपनी बेटियों का प्रवेश यहीं पर करवाते थे। 1931 में बना था कॉलेज का भवन बस्ती। रुधौली के पास बेलवासेंगर, चिरैया गांव निवासी श्याम बहादुर ने आर्य कन्या इंटर कॉलेज के भवन का निर्माण 1931 में कराया था। पहले यह भवन रिहायशी था। यहां पर काफी दिनों तक आर्य समाज के लोग पूजन-अर्चन करते थे। श्याम बहादुर की कोई संतान नहीं होने के कारण उन्होंने भवन को आर्य समाज को कन्या पाठशाला के लिए दान कर दिया। बाद में 1968 में यहां हाईस्कूल की मान्यता होने के बाद हाईस्कूल तक की कन्याओं को शिक्षित किया जाने लगा। 1972 में इंटर तक की मान्यता मिलने बाद यहां पर कक्षा छह से लेकर 12वीं तक की पढ़ाई होने लगी। उस वक्त भी आर्य समाज के लोग बड़े स्तर पर धर्मिक कार्यक्रम करवाते थे। बाद में इस विद्यालय का संचालन प्रबंध समिति के जिम्मे हो गया। काफी दिनों तक इसके प्रबंधक शहर के चिकित्सक एवं समाजसेवी डॉ. रमेश चन्द्र श्रीवास्तव रहे। लेकिन इधर कई वर्षों से यह विद्यालय एसोसिएट डीआईओएस के संचालन में है। लोगों ने यह भी बताया कि श्याम बहादुर ने अपनी पूरी संपत्ति आर्य कन्या इंटर कॉलेज को दान कर दी थी। तेज आंधी और भूंकप में रहता है हादसे का खतरा बस्ती। रौता चौराहे पर स्थित श्याम बहादुर आर्य कन्या इंटर कॉलेज का भवन और कक्ष काफी जर्जर हो गया है। जर्जर क्लास रूम में छात्राएं पढ़ने को मजबूर हैं। छात्रा सारिका का कहना है कि विद्यालय के कमरों के छतों को मोटे-मोटे लोहे के एंगल से रोका गया है नहीं तो कब की छत गिरकर ध्वस्त हो जाती। इस जर्जर कमरों में जब हम छात्राएं पढ़ाई करती हैं तो डर बना रहता है। कहीं तेज आंधी या भूकंप न आए नहीं तो कोई भी हादसा हो सकता है। ऐसी आपदाओं से हम सभी छात्राएं सुरक्षित रहें, इसके लिए न ही विद्यालय प्रबंधन और सरकार को सोचना चाहिए। हम लोगों की सरकार से मांग है कि किसी भी तरह से स्कूल के कमरों की मरम्मत करवा दें, जिससे हम लोग पढ़ाई के वक्त खुद को सुरक्षित महसूस कर सकें। बरसात में विद्यालय परिसर में हो जाता है जलभराव बस्ती। आर्य कन्या इंटर कॉलेज के परिसर में थोड़ी सी भी बरिश होने पर विद्यालय परिसर में जलभराव हो जाता है। जलभराव होने से छात्राओं को स्कूल आने या स्कूल से जाने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। यही नहीं परिसर में जलभराव होने के कारण छात्राओं को अपनी साइकिलें खड़ी करने में भी दिक्कत होती हैं। विद्यालय का छोटा सा परिसर है। इसी परिसर में छात्राओं के खेलने का स्थान भी है। कॉलेज में अलग से पार्किंग व्यवस्था नहीं होने से यहीं साइकिलें भी खड़ी करनी पड़ती हैं। छात्रा रिया, सरिता और सारिका का कहना है कि हम लोगों की अव्यवस्थाओं के बीच स्कूल आने-जाने की अब आदत सी बन गई है। प्रधानाचार्या से कई बार कहा गया लेकिन खेलने के लिए न तो स्थान की व्यवस्था हो सकी और न ही साइकिल स्टैंड बनवाया गया है। जर्जर भवन के पास साइकिल खड़ी करने में डर लगा रहता है। यहां तक कि हम लोगों के खेल के समुचित संसाधन भी मौजूद नहीं है। शिकायतें -विद्यालय का भवन जर्जर स्थिति में है। -कॉलेज में छात्राओं के लिए शुद्ध पेयजल की व्यवस्था नहीं है। -विद्यालय में शौचालय का दरवाजा टूट गया है। शौचालय बदहाल है। -विद्यालय में कम्प्यूटर लैब की कोई व्यवस्था नहीं है। -संगीत, विज्ञान सहित अन्य विषय की मान्यता नहीं है। सुझाव -विद्यालय भवन की मरम्मत कराई जानी अति जरूरी है। -छात्राओं के लिए परिसर में शुद्ध पेयजल की व्यवस्था होनी चाहिए। - छात्राओं के लिए कम से कम प्रयोग योग्य शौचालय की व्यवस्था होनी चाहिए। -कॉलेज में कम्प्यूटर लैब की व्यवस्था बहुत ही आवश्यक है। -साइंस के साथ अन्य विषयों की मान्यता को प्रयास होने चाहिए। हमारी भी सुनें विद्यालय परिसर में छात्राओं के खेलने की समुचित व्यवस्था नहीं है। खेलने की व्यवस्था हो तो छात्राएं खेल में अपना नाम रोशन कर सकती हैं। शिखा वर्मा स्कूल परिसर में इतनी जगह नहीं है कि छात्राओं को व्यवस्थित तरीके से व्यायाम कराया जाए। इस पर सरकार को ध्यान देना चाहिए। अनुपमा मिश्रा चित्रकला की पढ़ाई की व्यवस्था सिर्फ हाईस्कूल तक है। जबकि इसे इंटर तक होना चाहिए। छात्राओं को चित्र बनाकर समझाने के लिए ब्लैक बोर्ड भी नहीं है। ममता दास विद्यालय परिसर में छात्राओं के लिए शुद्ध पेयजल की कोई व्यवस्था नहीं है। हैंडपम्प का दूषित पानी ही छात्राओं को पीना पड़ता है। इससे छात्राएं बीमार पड़ जाती हैं। अर्चना विद्यालय की विवादित जमीन अगर खाली हो जाए तो वहां पर छात्राओं के खेलने और स्टैंड की व्यवस्था कराया जा सकता है। प्रशासन को इस पर ध्यान देना चाहिए। संतोष कुमारी विद्यालय के ज्यादातर कमरे जर्जर स्थिति में हैं। कुछ तो गिरने के कगार पर हैं। छात्राओं को पढ़ाई कराते समय डर बना रहता है। इसकी मरम्मत पर पहल होनी चाहिए। कंचन चौधरी विद्यालय में स्टाफ रूम नहीं है, स्टाफ रूम होना अति आवश्यक है। इंटरवल के समय हम लोगों को लंच करने में असुविधा होती है। किसी योजना के तरह कुछ कमरे बनवाना चाहिए। चन्द्ररेखा संगीत विषय इंटर में नहीं होने के कारण संगीत विषय में रुचि होने के बाद भी कक्षा नौ में संगीत विषय नहीं लेते हैं कि इंटरमीडिएट में विषय नहीं है तो लेकर क्या करेंगे। रजनी गुप्ता विज्ञान का विषय नहीं है, प्रैक्टिकल क्लास नहीं चल पाने के कारण हाईस्कूल के बाद छात्राएं दूसरी जगह एडमीशन करवा लेती हैं। प्रबंधन को इस पर विचारर करना चाहिए। रीता कमरों में पंखों के खराब होने के कारण गर्मी के दिनों में क्लास में बहुत गर्मी लगती है। इस वजह से पढ़ाई प्रभावित होती है। सामाजिक संगठनों को आगे आना चाहिए। मेहनाज बरसात में जर्जर छत और दीवारों से पानी टपकता है। इस वजह से हम लोगों की पढ़ाई बाधित होती है। कमरों की खिड़कियों से बारिश में छींटे आने से परेशानी होती है। अंशु क्लास में ज्यादातर बेंच टूट गई हैं। टूटी सीट पर ही बैठकर हम लोगों को किसी तरह से पढ़ाई करनी पड़ती है। कम से कम ठीकठाक बेंच तो क्लास रूम में होना चाहिए। सरिता कक्षा 12 के कमरे की दीवारें फट गई हैं। इसके चलते पढ़ाई के दौरान भय बना रहता है। डर लगा रहता है कि कहीं हम लोगों के छत या दीवार ऊपर न गिर जाए। सारिका खेल के लिए स्कूल में संसाधन उपलब्ध नहीं हैं। जिससे हम छात्राएं चाहकर भी खेल के क्षेत्र में कोई बेहतर उपलब्धि हासिल नहीं कर पातीं हैं। खेल सामग्री की व्यवस्था होनी चाहिए। हिना स्कूल का बाथरूम क्षतिग्रस्त है, उसका दरवजा भी टूट गया है। इस कारण यहां की सभी छात्राओं को काफी दिक्कतें होती हैं। विद्यालय प्रशासन ध्यान नहीं दे रहा है। नेहा चौरसिया कक्षा 11 और 12 में विज्ञान और गणित विषय नहीं है। इससे हम साइंस पढ़ने वाली छात्राओं को हाईस्कूल के बाद दूसरे विद्यालय में प्रवेश लेना पड़ता है। रिया बोले जिम्मेदार विद्यालय का भवन बहुत ही जर्जर हो गया है। इंटर में साइंस, होम साइंस, कला का विषय नहीं है। इसी से छात्राओं की संख्या कम होती जा रही है। शुद्ध पेयजल की कोई उचित व्यवस्था नहीं है। कुल मिलाकर हम लोग बहुत ही कम संसाधनों, अभावों और डर के साथ छात्राओं को शिक्षित करने का काम कर रही हैं। अगर सरकार द्वारा ऐसे विद्यालयों को समुचित व्यवस्था उपलब्ध कराई जाए तो छात्राओं की संख्या में बढ़ोतरी होगी। छात्राओं को हर तरह से सुविधाजनक शिक्षा के साथ खेलकूद का भी बेहतर माहौल मिलेगा। अलंकार योजना के तहत अच्छा कार्य हो रहा है, लेकिन हमारे विद्यालय में इतने बच्चे नहीं हैं कि हम 25 प्रतिशत रकम सरकार को दे सकें। सरकार को चाहिए की वह ऐसे विद्यालयों को संज्ञान में लेकर स्वत: अनुमोदित कर उन्हें अनुदान देकर बेहतर सुविधाओं और संसाधनों से लैस करे। माया कुमारी, प्रधानाचार्य, आर्य कन्या इंटर कॉलेज।
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