कैंसर के इलाज में ढूंढा बढ़ती उम्र रोकने का फॉर्मूला, अमेरिका में शोध; गोरखपुर की वैज्ञानिक भी शामिल
बुढ़ापे में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती। सामान्य बीमारियां भी गंभीर हो सकती हैं। सामान्य परिस्थितियों में मौत की एक वजह रोग प्रतिरोधक क्षमता की कमी भी है। इसकी वजह है टी-सेल और एनके-सेल। ये दोनों सेल बुढ़ापे में खत्म हो जाते हैं।

उम्र बढ़ने के साथ शरीर की मांसपेशियां कमजोर ही नहीं होतीं, बल्कि रोग प्रतिरोधक क्षमता भी घट जाती है। बढ़ती उम्र में दुष्प्रभाव को सीमित करने के लिए अमेरिका के वैज्ञानिकों ने इम्यूनोथेरेपी के जरिए रास्ता तलाशा है। प्रौढ़ चुहिया पर प्रयोग पूरी तरह सफल रहा। इस शोध में गोरखपुर की वैज्ञानिक डॉ. पल्लवी चतुर्वेदी भी शामिल रहीं। अब अगले चरण में बड़े जानवरों पर रिसर्च होगी। यह शोध पत्र अंतर्राष्ट्रीय जर्नल एजिंग सेल में प्रकाशित हुआ है।
आमतौर पर इम्यूनोथेरेपी का उपयोग कैंसर के इलाज में होता है। यही इम्यूनोथेरेपी टी-सेल और एनके-सेल की संख्या को बढ़ाने में कारगर मिली है। 30 प्रौढ़ चुहिया पर प्रयोग किए गए जिसके परिणाम सकारात्मक मिले। डॉ. पल्लवी ने बताया कि बुढ़ापे में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती। सामान्य बीमारियां भी गंभीर हो सकती हैं। सामान्य परिस्थितियों में मौत की एक वजह रोग प्रतिरोधक क्षमता की कमी भी है। इसकी वजह है टी-सेल और एनके-सेल। यह दोनों सेल बुढ़ापे में खत्म हो जाते हैं। इम्यूनोथेरेपी से इन सेल को पुनर्जीवित करने में काफी हद तक सफलता मिली है।
प्रौढ़ महिलाओं जैसी समस्या
उम्र बढ़ने पर प्रौढ़ चुहियों में भी महिलाओं की तरह ही समस्या होती है। इसीलिए शोध के पहले चरण में उन पर रिसर्च की गई। भविष्य में रिसर्च अब और भी बड़े जानवरों पर होगा। उम्मीद है कि आने वाले दिनों में बुढ़ापे से होने वाली बीमारियों को काबू करने में सफल हो सकेंगे।
पांच साल से चल रही रिसर्च
अमेरिका की एचसीडब्लू वायरोलॉजिक्स कंपनी में सीनियर साइंटिस्ट डॉ. पल्लवी ने बताया कि पिछले 5 साल से इस पर रिसर्च चल रही है। तीन चरणों में 10-10 प्रौढ़ चुहिया पर 6-6 महीने रिसर्च की गई। उनकी उम्र 60 हफ्ते से लेकर 72 हफ्ते के बीच थी। उन्हें इम्यूनोथेरेपी दी गई। इससे चुहिया जवान चुहियों के बराबर क्षमतावान और ताकतवर बन गईं।