बोले गोण्डा: अनुदान की राशि बढ़े तो जिले में भी लहलहाएं आम के बाग
Gonda News - गोंडा जिले में सैकड़ों किसान आम की बागवानी से जुड़े हैं लेकिन उन्हें आम उत्पादन में बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। जानकारी के अभाव और कीटनाशकों की कमी से फसलों को नुकसान होता है। किसानों...

जिले के मनकापुर, छपिया, बभनजोत, मुजेहना और करनैलगंज में सैकड़ों किसान आम उत्पादन से जुड़े हैं। हालांकि, यहां पर लखनऊ के मलिहाबाद और बाराबंकी के मसौली क्षेत्र की तरह आम का उत्पादन नहीं होता है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक पिछली योजना में 40 किसानों को बागवानी के लिए अनुदान दिया गया था। आम उत्पादन से जुड़े किसानों का कहना है कि उन्हें फसल बचाने के लिए कीटनाशकों के बारे में या वैज्ञानिक सलाह आसानी से नहीं मिल पाती है। साथ ही आम की खेती करने के लिए शुरू में निवेश करने के साथ काफी धैर्य रखने की जरूरत होती है क्योंकि आम के पौधे लगाने के बाद पांच से छह साल बाद ही उत्पादन शुरू हो पाता है।
गोण्डा। जिले में आम-बागवानी करके फलों के राजा का उत्पादन करने में आधा दर्जन ब्लॉकों के किसान शामिल हैं। इन किसानों का कहना है कि सरकार बागवानी को बढ़ावा देने को लेकर उन्नत किस्म के पौधे उपलब्ध कराए। साथ ही पौधों के संरक्षण में खर्च होने वाली रकम पर सब्सिडी भी दें। इससे जिले के किसान बागवानी की तरफ आकर्षित होंगे। उद्यान विभाग के आंकड़ों के मुताबिक जिले में 4500 हेक्टेयर भूमि पर आम की बागवानी होती है। इसमें सबसे बड़ा क्षेत्रफल मनकापुर तहसील क्षेत्र का है। हालांकि जिले में क्षेत्रवार ज्यादातर किसान गन्ना, तंबाकू, मक्का, गेहूं, धान, दलहन की खेती करना ज्यादा पसंद करते हैं। छोटी जोत और जानकारी के अभाव में किसान बागवानी की खेती करने से बचते हैं। जिले में मौजूदा समय पर आम की खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार एकीकृत बागवानी मिशन कार्यक्रम चला रही है। इस योजना से जिले के किसानों को लाभ देने के लिए उद्यान विभाग कवायद कर रहा है। इसके तहत सरकार किसानों को सब्सिडी पर पौधे सहित अन्य सुविधाएं भी उपलब्ध करा रही है। इससे पहले भी आम की बागवानी करने वाले किसानों को सरकार की ओर से आर्थिक सहायता मुहैया कराई जा रही थी। उद्यान विभाग के मुताबिक पहले राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत आम उत्पादन से जुड़े किसानों को पहले साल प्रति हेक्टेयर 7650 रुपये की सब्सिडी किसानों को दी जाती थी। इसके बाद दूसरे साल 2550 रुपये और तीसरे साल 2550 रुपये की सब्सिडी सीधे खाते में स्थानांतरित की जाती थी। बागवानी की सही जानकारी मिले तो बढ़े खेती का दायरा जिले में आम की बागवानी को लेकर किसानों को सही जानकारी नहीं है। जानकारी के अभाव में बागवानी की खेती से किसान पीछे हट जाते हैं। उनका कहना है कि सरकार की तरफ से बागवानी के बारे में सही जानकारी के साथ आर्थिक सहायता भी दी जाए तो खेती में लाभ होगा। किसानों का कहना है कि बागवानी को लेकर उन्नत किस्म के पौधे, कीटनाशक दवाएं मुहैया कराई जाएं। बंदरों से परेशान हैं बागवानी करने वाले किसान आम की बागवानी करने वाले किसान बंदरों के आतंक से काफी परेशान है। किसानों का कहना है कि आम की बौर लगने के साथ ही बंदर धावा बोल देते हैं। आम के पौधों को तोड़कर खासा नुकसान पहुंचाते हैं। लेकिन इससे निजात दिलाने को लेकर अफसर ध्यान नहीं दे रहे हैं। आम के बगीचे में पूरे दिन बंदर जितना आम खाते हैं उससे ज्यादा तोड़कर फेंक देते हैं। वहीं, पौधे तैयार करने पर छुट्टा मवेशी भी इन्हें चर जाते हैं। आम की बागवानी में देर से होती है आमदनी आम की पौध लगाने के साथ उनके संरक्षण और तैयार होने में कम से कम पांच से छह साल का वक्त लगता है। इस बीच पौधों की काफी देखरेख करनी पड़ती है। इस वजह से ज्यादातर किसान आम की बागवानी से दूरी बनाए रखते हैं। हिन्दुस्तान की ओर से आयोजित चौपाल में किसानों ने कहा कि पौधे लगाने के कम से कम पांच साल बाद फल मिलना शुरू होता है। जबकि, अन्य खेती छह महीने में ही आपको कुछ ना कुछ मुनाफा जरूर देगी। साथ ही जिले में अधिकांश लघु सीमांत किसान हैं जिनके लिए परिवार का पेट पालने को अनाज का उत्पादन करना पहली प्राथमिकता होती है। आम की बागवानी के लिए ज्यादा जमीन की आवश्यकता होती है। आम की विभिन्न प्रजातियां लगाते हैं किसान जिले में उद्यान विभाग की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक दो दर्जन से ज्यादा आम की प्रजातियां हैं। इसमें से दशहरी, लंगड़ा, चौसा, सफेदा प्रमुख हैं। उद्यान विभाग की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक नई प्रजातियों को भी विकसित किया जा रहा है। इसमें अरुणिमा, अरुणा, अलफांसो सहित कई अन्य आम की प्रजातियां विकसित हो रही हैं। इन प्रजातियों के विकसित होने से आम रंग-बिरंगे और पौष्टिक तत्वों से परिपूर्ण होंगे। मलिहाबाद जैसे आम की मिठास देने को उद्यान विभाग करे पहल आम उत्पादक किसानों ने कहा कि उद्यान विभाग के लचर रवैये के चलते जिले की धरती पर बड़े पैमाने पर आम की बगिया फल-फूल नहीं रही है। लोगों ने कहा कि उद्यान विभाग को इस पर अमल करना चाहिए। जिससे लोग मुसौली और मलिहाबादी आमों जैसा स्वाद चाव से पा सके। किसानों ने कहा कि महंगे कीटनाशकों के छिड़काव के बावजूद फसलें रोगग्रस्त हो रही हैं। इससे मसौली और मलिहाबाद की तरह आम की मिठास लोगों को नहीं मिल पा रही है। किसानों का कहना है कि स्थानीय स्तर पर मंडी न होने से फसल बेचने में दिक्कत आती है। किसान बताते हैं कि हर साल आम के मौसम के छह महीने पहले से ही वे अपने परिवार सहित बागानों में डेरा डाल देते हैं। वहीं रहना-सोना-खाना होता है। आम के वृक्षों की देखभाल और मंजर आने के समय दवा का छिड़काव किया जाता है। इसके बाद भी इस साल मंडी में भाव कम होने से घाटे का खतरा मंडरा रहा है। खर्चा बढ़ा लेकिन कम हो गई आमदनी मनकापुर तहसील क्षेत्र के अशरफपुर में किराए पर बाग लेने वाले सिराज बताते हैं कि पिछले कुछ सालों से महंगाई की मार आम के उत्पादन पर भी पड़ रही है। उन्होंने बताया कि महंगाई तो बढ़ गई है लेकिन आम की कीमतें ज्यों की त्यों बनी हुई है। इसकी वजह से हम लोगों की आमदनी घट गई है। उन्होंने बताया कि जिले में सैकड़ों बीघा भूमि पर आम के पेड़ लगे हैं। उन्होंने सालाना 10 से 12 लाख रुपये पर बाग किराए पर लिया है। इसके अलावा मजदूरी भी अधिक लगती है। आम की फसलों पर छुट्टा मवेशियों और बंदरों का आतंक बना रहता है। आम तैयार होने तक पूरी तरह से मुस्तैदी के साथ रखवाली करना पड़ता है। प्रस्तुति: सच्चिदानंद शुक्ल/रंजीत तिवारी/दिनेश पांडेय फोटो: आलोक ओझा बोले लोग --------------------- आम के बाग लगाने को लेकर हम जैसे किसानों को मिलने वाली मदद बढ़ाने की जरूरत है। आर्थिक सहायता कम मिलने की वजह से किसान आम की फसल लगाने से कतराते हैं। -इरफान उर्फ भोले आम की खेती करने वाले किसानों को प्रति हेक्टेयर मिलने वाली सब्सिडी काफी कम थी। इसे बढ़ाए जाने की बहुत सख्त जरूरत है ताकि किसानों को बागवानी में सहूलियत मिले। -धर्मेंद्र जिले में अधिकांश किसान अन्य फसलों की खेती करते हैं लेकिन आम की खेती करने से वह बचते हैं। मौसम अनुकूल नहीं होने की वजह से किसानों को अक्सर नुकसान हो जाता है। -बबलू जानकारी के अभाव में किसान आम की बागवानी करने से कतराते हैं। दूसरी बात जिले में जनसंख्या बढ़ने के साथ किसानों के पास भूमि लगातार कम होती जा रही हैं, ऐसे में वह अनाज उत्पादन करते हैं। -शिवा आम की फसल में हर साल बौर आने के साथ ही विभिन्न प्रकार के कीड़े लग जाते हैं। इससे आम की फसल को काफी नुकसान होता है। इससे बचाने को लेकर उद्यान विभाग सहयोग करें तो खेती करने में आसानी हो। -अमित आम का बाग तैयार करने में कम से कम पांच साल का वक्त लगता है। इस बीच विभिन्न वजहों से पौधों को काफी नुकसान पहुंचता है। इसलिए किसानों को वैज्ञानिक सलाह के साथ रियायती दर पर कीटनाशक मिलने चाहिए। -कल्पनाथ बोलीं जिम्मेदार ----------------------------- जिले में करीब 4500 हेक्टयर पर आम की बागवानी की जा रही है। पिछली योजना के तहत 40 आम उत्पादकों को 12 हजार 750 रुपये का अनुदान तीन किस्तों में दिया जा चुका है। अब एकीकृत बागवानी मिशन के तहत आम उत्पादकों को सुविधाएं मुहैया कराई जाएंगी। -रश्मि शर्मा, जिला उद्यान अधिकारी
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