पं.रूपनारायण की रचना धर्मिता ने हिन्दी साहित्य को संवारा
Jaunpur News - फोटो..02 हिन्दी साहित्य को संवारा, उनमें रूपनारायण त्रिपाठी का नाम आदर के साथ लिया जाता है। उनकी 35वीं पुण्यतिथि पर रविवार को रूप सेवा संस्थान की ओर स

जौनपुर, संवाददाता। कालजयी कविता के रचयिता पं.रूपनारायण त्रिपाठी ने हिन्दी साहित्य को हिमालय सी ऊंचाई दी है। छायावादोत्तर धारा के जिन कवियों ने अपनी रचना धर्मिता से हिन्दी साहित्य को संवारा, उनमें रूपनारायण त्रिपाठी का नाम आदर के साथ लिया जाता है। उनकी 35वीं पुण्यतिथि पर रविवार को रूप सेवा संस्थान की ओर से जगत नारायण इंका. जगतगंज परिसर में ‘गीत रूप नमन समारोह का आयोजन किया गया है। आयोजित कवि सम्मेलन में देश के नामी गिरामी कवि व शायर अपनी रचनाओं से लोगों को अविभूत करेंगे। इसमें डॉ.बुद्धिसेन मिश्र, गिरीश नारायण पाण्डेय, कुंवर जावेद, श्लेष गौतम, अमन अक्षर, पंकज प्रसून, अतुल वाजपेयी अन्य हैं। पं.रूपनारायण का मानना था कि कोई भी कवि अपने परिवेश से कटकर अच्छी कविता का सृजन नहीं कर सकता। यही कारण था कि उनकी कविता में सहज सरल भाषा, गांव की मिट्टी की सोंधी महक, आम के बौरों की मादक सुगंध और कोल्हूबाड़ा की मिठास मिलती है। ‘रमता जोगी बहता पानी काव्य संग्रह में उन्होंने लिखा है कि ‘रूप सुन्दर चलन भी सुन्दर हो, देह का आचरण भी सुन्दर हो। सार्थक है उसी की सुन्दरता, जिसका अंत:करण भी सुन्दर हो। पं.रूपनारायण त्रिपाठी को अपने गांव तथा मांटी से बड़ा प्रेम था। उनका कृतित्व मूलत: स्वांत सुखाय होते हुए बहुजन हिताय की भावना से परिपूर्ण था। उनकी कविताओं में गंगा जमुनी तहजीब, उर्दू गजल की तर्ज पर हिन्दी गजल तथा हिन्दी उर्दू का अपनी रचनाओं में समावेश कर काव्यों का अथाह संग्रह किया। उनका जन्म पांच फरवरी 1922 को जिले के कुद्दूपुर (जगतगंज) गांव में सुसंस्कृत ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनका निधन नौ मार्च 1990 को हुआ। वे आज भले ही इस धरा धाम पर नहीं हैं लेकिन उनकी रचनाएं हमेशा लोगों के अन्तर्मन में मौजूद रहेंगी।
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