मेरे पिता मेरा अभिमान, स्वाभिमान और आसमान
Lucknow News - पिता बच्चों के लिए अभिमान और स्वाभिमान का प्रतीक होते हैं। बच्चों ने अपने पिताओं को रोल मॉडल मानते हुए उनकी कठिनाइयों और त्यागों को सराहा। शुभांशु शुक्ला, जो अब अंतरिक्ष में उड़ान भरने के लिए तैयार...

पिता बच्चों के लिए अभिमान, स्वाभिमान और आसमान जैसा होता है। बचपन में पिता ही अंगुलिया पकड़कर चलना, मुश्किलों से लड़ना और अपने अनुभवों से आगे के रास्ते दिखाता है। विश्व फादर्स डे पर हिन्दुस्तान टीम ने बच्चों के रोल मॉडल कुछ से बात की। बच्चों ने भी कहा कि मेरे पापा ही मेरे सबसे बड़े रोल मॉडल रहे हैं। ऐसे पिता को खोजा जिन्होंने अपने संघर्ष, त्याग से बच्चों को बुलंदियों पर पहुंचाया। बच्चों को पिता की भूमिका का अहसास कराते रहे। पिता ने उंगली पकड़ कर चलना सिखाया, अब सितारों के बीच भरेगा उड़ान त्रिवेणी नगर स्थित घर के लॉन में एक बच्चा चलने की कोशिश कर रहा था।
उठ कर खड़ा हो कर डगमगाता फिर एक या दो कदम चलते हुए धम्म से गिर जाता। कभी मुस्कुराता तो कभी रोने लगता। पास खड़े पिता ने उसे गोदी में उठाकर पुचकारा। फिर उंगली पकड़कर चलना सिखाया। यही बच्चा आज अंतरिक्ष की उड़ान भरने के लिए तैयार है। वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला के पिता की उसके लालन पालन में अहम भूमिका रही है। पिता शंभु दयाल बताते हुए भावुक हो गए। उन्होंने कहा कि ऐसा संयमी और समझदार बच्चा आपको जल्दी नहीं दिखेगा। कई बार बाजार में घूमते समय शुभांशु को कोई महंगा खिलौना पसंद आ जाता तो धीरे से इशारा करता था। शंभु दयाल शुक्ला ने बताया कि ऐसे में अक्सर उन्होंने समझाया कि, ...बेटा जब तनख्वाह आ जाएगी तब ले आएंगे। बाप बेटे के रिश्ते में जो आपसी समझ बाद में विकसित होती है वह मेरे और शुभांशु के बीच शुरू से रही। अक्सर शुभांशु यह जानते हुए भी कि तनख्वाह आ चुकी है, उस खिलौने की याद नहीं दिलाता था। वह खुद ही उसके लिए खरीद लाते थे। शुभांशु का स्वप्न पूरा होने वाला है। आसमान में वायुमंडल की सीमा तक फाइटर जेट की अठखेलियां करने वाले ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला चांद तारों के बीच स्पेसक्राफ्ट के पायलट होंगे। शुभांशु 24 मई को क्वारंटीन हुए थे। ग्रुप कैप्टन शुभांशु फ्लोरिडा के कैनेडी स्पेस सेंटर से एक्सिऑम-4 मिशन के तहत अन्तरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के लिए उड़ान भरेंगे। उन्होंने भारतीय वायु सेना में फाइटर पायलट के रूप में सेवा शुरू की थी और 2000 से अधिक घंटे का उड़ान अनुभव रखते हैं। शुभांशु को 2019 में मिशन के लिए चुना गया। इसरो की कॉल पर उन्होंने रूस के मॉस्को स्थित स्टार सिटी के गेगरिन कॉस्मोनॉट ट्रेनिंग सेंटर में कठोर प्रशिक्षण लिया है। पिछले साल फरवरी माह में देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उनको मिशन गगयान के लिए प्रशिक्षण हासिल करने वाले विशिष्ट अंतरिक्ष यात्री के रूप में पेश किया। दृष्टिबाधित मेधावी छात्राओं के लिये पिता बने प्रेरणास्रोत मेधावी गौरांशी अग्रवाल और बानी चावला ने पढ़ाई में दिव्यांगता को रोड़ा नहीं बनने दिया। दृष्टिबाधित मेधावी गौरांशी अग्रवाल ने सीबीएसई 10 वीं में 96.4 प्रतिशत और बानी चावला ने आईसीएसई 10 वीं में 95.4 प्रतिशत अंक हासिल किये हैं। मेधावियों ने पिता को प्रेरणा स्रोत बताया है। बेटियों को पढ़ाने लिये पिता हर संभव प्रयास कर रहे हैं। काम धंधे और नौकरी से घर आने के बाद बेटी को पढ़ाने में मदद करते हैं। बेटी को आईएएस बनाने की ठानी एलपीएस सहारा स्टेट में 11 वीं पढ़ रही बानी चावला के पिता कांट्रेक्टर विशाल चावला बताते हैं कि जन्म के बाद बानी एक माह तक वेंटिलेटर पर रहीं। करीब छह माह बाद पता चला कि बेटी देख नहीं सकती है। इलाज कराया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। लोगों ने दृष्टिबाधित स्कूल मे बेटी के दाखिले के लिये कहा, लेकिन पिता ने बेटी का नाम एलपीएस में लिखाया। पत्नी के साथ मिलकर बेटी को पढ़ाने की ठानी। बानी को स्कूल भेजने और लाने के अलावा घर पढ़ाने में मदद कर रहे हैं। बेटी ऑनलाइन, यू ट्यूब से पढ़ाई करती है। माता पिता पढ़ाई में मदद करते हैं। पिता का कहना है कि बानी को सुनकर सवालों के जवाब याद कर लेती है। बानी की संगीत में बहुत रुचि है। वेलनेस सेंटर खोलेगी कुर्सी रोड स्थित कैपिटल पब्लिक स्कूल में 11 वीं पढ़ने वाली गौरांशी अग्रवाल ने 10 वीं 96.4 प्रतिशत अंक हासिल किये हैं। गौरांशी बताती है कि पिता और मां हर वक्त हौशला बढ़ाते हैं। स्कूल के प्रिंसपल और शिक्षक पढ़ाने में मदद करते हैं। क्लास में शिक्षिकाएं विषयवार पढ़ाने और नोट्स बनाने में करती हैं। गौरांशी कहती हैं कि बीएएसी होम सांइस से कर वेलनेस और न्यूट्रीशन सेंटर संचालित करने का लक्ष्य है। पिता अंकित गुप्ता बाराबंकी के राजकीय पॉलीटेक्निक में शिक्षक और मां निधि मित्तल प्राइमरी में शिक्षिका हैं। अंकित गुप्ता बताते हैं कि बेटी गौरांशी अग्रवाल छोटे से ही पढ़ने में होनहार थी। बेटी को ऑटो इम्यून बीमारी है। तीन वर्ष की उम्र में गौरांशी को ग्लूकोमा होने से आंखों की रोशनी धीरे-धीरे कम हो गई। अभी भी इलाज चल रहा है। ड्यूटी के बाद घर आकर पत्नी के साथ बेटी को पढ़ाने में मदद करते हैं। बेटी का हौसला बढ़ाते रहते हैं। पिता ने गोद में लेकर दिलाए ऑडीशन, तब मिली सफलता गायिका शबीना सैफी जो जिन के पास आंखे नहीं और चलने के लिए व्हील चेयर का इस्तेमाल करती हैं। इसके बावजूद भी शबीना ने अपने गायन के शौक को नहीं छोड़ा और नामी गायिका बनने का सपना पूरा किया। लेकिन इस सपने को पूरा करने में जितनी शबीना की मेहनत है उतना ही योगदान उनके पिता शौकत अली का भी रहा। आज शबीना के पिता जीवित नही है लेकिन जब भी फादर्स डे आता है तो उनकी आंखे नम हो जाती है क्योंकि शबीना जानती है कि वो आज अगर किसी मुकाम पर खड़ी है तो उसके पीछे उनके पिता का ही हाथ था। शबीना ने कहती हैं कि एक वक्त था जब व्हील चेयर भी नही थी और इंडियन आइडल, सारेगामापा व अन्य रियल्टी शो के ऑडीशन में जाना होता था, ऐसे में पेरे पापा ही मुझे अपनी गोद में उठा कर ऑडीशन ले जाते थे। गर्मी, जाड़ा या बारिश कुछ भी हो ऑडीशन की लम्बी कतारों में मेरे पापा मुझे गोद में लिए घंटों खड़े रहते थे। शबीना ने कहा कि ये सुनने में आसान लगता है कि छोटी बच्चों को ही तो गोद में लिया है लेकिन तपती धूप में जो घंटों सिर्फ इसलिए खड़ा रहता है कि उनकी नाबीना लड़की को सिर्फ गाने के लिए एक मिनट मिल जाए ये सिर्फ वो पिता ही समझ सकता है जो गोद में लिए खड़ा रहा है। शबीना ने कहा कि आज भले ही तमाम महोत्सव में गाती हूं, राज्यापाल और राष्ट्रपति से अवार्ड मिले हो ये सब मेरे पिता के बिना मुमकिन नहीं था। यूं तो हर दिन ही अपने पिता को याद करती हूं लेकिन फादर्स डे पर उनके साथ न होने का गम आंसुओं के रूप में आंखों में आ जाता है। नन्हें तैराक सर्वांग के पांच स्वर्ण में दमकी पिता के मेहनत की चमक लखनऊ। केडी सिंह बाबू स्टेडियम में बीते आठ और नौ जून को जिला स्तरीय सब जूनियर तैराकी चैंपियनशिप में नन्हे तैराक सर्वांग राठौड़ ने पांच स्वर्ण पदक जीत कर सुर्खियां बटोरी। पांच स्वर्ण जीतने पर सर्वांग के पिता अपूर्व राठौर को यकीन ही नहीं हो रहा था कि उनके बेटे ने धमाकेदार प्रदर्शन कर सभी का दिल जीत लिया। उनके 11 वर्ष के बेटे ने पांच स्वर्ण जीत कर उनकी उनका नाम रोशन किया। सर्वांग की इस सफलता के पीछे उनके तीन साल की कड़ी मेहनत रही। सर्वांग के पिता अपूर्व राठौर की पत्नी मधु सरकारी नौकरी करती है। वे एक बैंक में जॉब करती है। ऐसे में घर की जिम्मेदारी सर्वांग के पिता अपूर्व राठौर ही उठाते हैं। अपूर्व राठौर के अनुसार स्कूल भेजने से लेकर उसे रोजाना अभ्यास के मैं ही उसे स्विमिंग ले जाता हूं। साई सेंटर स्थित स्विमिंग पूल घर से तकरीबन 11 किमी दूर है। आंधी हो या बारिश, रोजाना उसे अभ्यास के लिए ले जाता हूं। उसके अभ्यास के लिए मैंने शादी-बारात के साथ ही समर सीजन में पिकनिक पर जाना भी छोड़ दिया। पिछले तीन वर्षों से लगातार उसे तैराकी का अभ्यास दिलवा रहा हूं। इसके पहले दो प्रतियोगिताओं में उसका प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं रहा। लेकिन इस बार उसे एक के बाद एक पांच स्वर्ण पदक जीते। 11 वर्षींय सर्वांग ने सब जूनियर ग्रुप में 100 मीटर फ्री स्टाइल, 200 मीटर फ्री स्टाइल, 400 मीटर फ्री स्टाइल, 100 मीटर बैक स्ट्रोक और 200 मीटर बैक स्ट्रोक में पांच स्वर्ण जीते। उन्होंने बताया कि सर्वांग जल्द ही राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में लखनऊ के लिए पदक जीतने की जोरआजमाइश करता नजर आयेगा।
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