बोले उरई: मानदेय मिलने में देर, स्कूल में छात्र घटे तो नौकरी ढेर
Orai News - उरई के जूनियर हाईस्कूल में 206 अनुदेशकों को 9000 रुपये मानदेय मिल रहा है, जो समय पर नहीं आता। वे शिक्षा के साथ खेलों में भी दक्षता विकसित कर रहे हैं, लेकिन उन्हें नियमित किया जाना चाहिए। अनुदेशकों का...

उरई। नौकरी की अनिश्चितता के बीच जूनियर हाईस्कूल में 206 अनुदेशक सेवाएं दे रहे हैं। अनुदेशक छात्रों को बेहतर शिक्षा ही नहीं दे रहे हैं बल्कि खेलों में भी दक्ष कर रहे हैं। इसके बाद भी उन्हें नौ हजार रुपये मानदेय मिल रहा है। सबसे बड़ी समस्या ये है कि मानदेय समय पर नहीं मिलता। जालौन के जूनियर हाईस्कूल के छात्रों का भविष्य बनाने की जद्दोजहद में लगे 206 अनुदेशकों को खुद सुरक्षित भविष्य की तलाश है। उनका कहना है कि काम तो पूरा लिया जाता है पर मानदेय सिर्फ नौ हजार रुपये मिलता है वह भी समय पर नहीं। अनुदेशकों के साथ परिषदीय शिक्षकों की तरह व्यवहार करना चाहिए। जिस तरह उनका वेतन समय से आता है, उसी तरह हमारा भी आना चाहिए। आखिर हम कब तक और किस-किस से अपनी पीड़ा बताएं। मेडिकल की सुविधा से वंचित रखा जाता है। आकस्मिक अवकाश भी गिने-चुने हैं। अनुदेशकों से इनकी समस्याओं पर आपके अपने अखबार ‘हिन्दुस्तान ने चर्चा की तो उनका दर्द छलक पड़ा। अनुदेशक शिव शंकर ने बताया कि मानदेय मिलने में देर,स्कूल में छात्र कम होते हैं तो नौकरीजाने का डर बना रहता है।
अनुदेशक विभूति पांडेय कहते हैं कि शिक्षकों के समान कार्य किए जाने के बाद भी न तो हमें समान वेतन दिया जा रहा है और न ही मेडिकल, दुर्घटना बीमा और इलाज की कोई सुविधा मिल रही है। शिवशंकर कुशवाहा ने कहा कि कक्षा छह से आठवीं के बच्चों का भविष्य बनाने को पढ़ाई में अहम योगदान करने वाले विषय विशेषज्ञ अनुदेशक समान कार्य समान वेतन के लिए धरना प्रदर्शन कर आवाज उठा रहे हैं। वर्ष 2013 में कक्षा छह से आठवीं के सरकारी परिषदीय स्कूलों में अनुदेशक की नियुक्ति हुई थी तब से वह महज 9000 रुपये के अल्प मानदेय में परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं। अनुदेशक प्रभाकर दुबे कहते हैं कि नौनिहालों का भविष्य बनाने में हम तो पूरा योगदान दे रहे हैं लेकिन हमें भी शिक्षकों के समान नियमित किया जाए और जब तक नियमित नहीं हो जाते तब तक सम्मानजनक मानदेय दिया जाए। जिससे परिवार चलाते हुए परिषदीय स्कूलों के बच्चों के साथ अपने बच्चों को भी अच्छी शिक्षा दे सकें। रेखा कुशवाहा कहती हैं कि परिषदीय विद्यालय के नौनिहालों का भविष्य तो हम बना रहे हैं लेकिन हमारे बच्चों का भविष्य अल्प मानदेय में कैसे बनेगा और कैसे परिवार का पोषण कर पाएंगे। 12 साल पहले ज्वाइन हुए थे और तब से हमारे साथ सौतेला व्यवहार किया जा रहा है। अनुदेशक मुकेश झा कहते हैं कि सरकारी परिषदीय उच्च प्राथमिक विद्यालयों में तैनात अनुदेशक का कहना है विषय विशेषज्ञ के रूप में हमारे नियुक्ति की गई थी। लेकिन हमें अपने विषय के अलावा अन्य विषय की भी बच्चों को शिक्षा देनी पड़ती है। हम सभी ग्रेजुएशन करने के बाद बच्चों को शारीरिक शिक्षा के साथ बालिकाओं को आत्मरक्षा का प्रशिक्षण भी दे रहे हैं। मीना कुमारी ने कहा कि महिला अनुदेशकों को मातृत्व अवकाश तो दिया जाता है लेकिन बाल्य देखभाल अवकाश (सीसीएल) की सुविधा नहीं है। आकस्मिक छुट्टी (सीएल) के अलावा कोई अन्य अवकाश भी नहीं मिलता, जिससे वे मुश्किलों का सामना कर रही हैं। अनुदेशक केवल शैक्षिक कार्यों तक सीमित नहीं हैं। उन्हें चुनावी ड्यूटी, मतगणना, बीएलओ कार्य, जनगणना और अन्य सरकारी कार्यों में भी लगाया जाता है। इसके बावजूद सरकार उनकी मेहनत का समुचित मूल्यांकन नहीं कर रही है।
नियमित न होने तक मिले सम्मानजनक मानदेय
अनुदेशक हरिओम बुधौलिया कहते हैं कि वर्ष 2013 से शारीरिक शिक्षा, कला शिक्षा, कार्यानुभव शिक्षा में अनुदेशक कार्य कर रहे हैं। 12 साल में महज 2000 रुपये की मानदेय में वृद्धि हुई है। जब तक हमें नियमित न किया जाए तो कम से कम सम्मानजनक मानदेय तो मिलना ही चाहिए।
बोले अनुदेशक
विषय विशेषज्ञ अनुदेशक को इस पद पर नियमित किया जाए। नियमित न होने तक हमें सम्मानजनक मानदेय मिलना चाहिए।
- प्रभाकर दुबे
नौनिहालों का भविष्य तो हम बना रहे हैं लेकिन अल्प मानदेय में अपने बच्चों का भविष्य बनाना महंगाई के दौर में टेढ़ी खीर साबित हो रही है।
- रेखा कुशवाहा
शिक्षकों की तरह हम भी बच्चों को बेहतर शिक्षा दे रहे हैं। शिक्षकों की तरह समान कार्य पर अनुदेशकों को भी समान वेतन मिलना चाहिए।
-विभूति पाण्डेय
नौ हजार रुपये के अल्प मानदेय में परिवार का भरण पोषण इस महंगाई के दौर में करना मुश्किल हो रहा है, इसलिए मानदेय बढ़ाया जाए।
- ज्ञान कुमारी
अनुदेशक अल्प मानदेय में शिक्षा दे रहे हैं। इन्हें नियमित किया जाए, जिससे हर
साल नवीनीकरण की प्रक्रिया से न गुजरना पड़े।
- संजय वर्मा
12 साल से अनुदेशकों के साथ शिक्षा विभाग सौतेला व्यवहार कर रहा है। शिक्षकों की तरह हमे भी वेतन मिले इसलिए हमें स्थाई किया जाए।
- शिव शंकर
12 साल में सिर्फ दो हजार रुपये मानदेय में बढ़ोतरी हुई है। जबकि इतने सालों में शिक्षकों का वेतन कई बार बढ़ाया जा चुका है।
- उदयवीर निरंजन
अल्प मानदेय में बच्चों को पढ़ाने वाले अनुदेशकों को भी आयुष्मान योजना का लाभ मिले, अवकाश का भी प्रावधान किया जाए।
- मुकेश
हर साल अनुदेशकों की नवीनीकरण की प्रक्रिया को समाप्त कर इन्हे नियमित किया जाए और मानदेय बढ़ाया जाए, जिससे शिक्षण कार्य कर सकें।
- विनीत ओझा
अल्प मानदेय में स्कूलों में ऑनलाइन गतिविधियों को कराने में अनुदेशकों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
- योगेंद्र कुमार
नौ हजार रुपये के अल्प मानदेय में गुजारा करना मुश्किल हो रहा है। ऐसे में जनपद के स्कूलों में तैनात कई अनुदेशकों ने नौकरी छोड़ दी है।
-महेश्वरी कुमार
आवश्यक शिक्षण संसाधन और उपकरण न होने से अनुदेशकों को बच्चों को अच्छी शिक्षा देने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है।
-पुनीत कुमार
सुझाव
1. दूर दराज के स्कूलों से हटाकर हमें घरों के पास स्कूलों में नियुक्ति दी जानी चाहिए।
2. समान वेतन समान कार्य के तहत हमें भी सम्मानजनक मानदेय मिलना चाहिए।
3. जिस विषय के लिए अनुदेशक की नियुक्ति है सिर्फ उसी विषय को पढ़ाने का काम लिया जाए।
4. शिक्षकों की तरह हमें भी चिकित्सीय सुविधा, दुर्घटना बीमा आदि का लाभ दिया जाए।
5. 12 साल में अनुदेशक को महंगाई भत्ते के नाम पर सिर्फ 2000 रुपये मानदेय बढ़ाया गया जो बेहद कम है।
6. महिला अनुदेशकों के लिए अंतर्जनपदीय व जिले के भीतर तबादले की सुविधा मिले।
शिकायतें
1. न तो ईपीएफ की सुविधा मिलती है और न ही दुर्घटना बीमा का कोई लाभ मिलता है।
2. अल्प मानदेय से ऑनलाइन गतिविधियों के कार्यों में समस्या आ रही है।
3. अवकाश के नाम पर अनुदेशकों के साथ भेदभाव किया जा रहा है।
4. 50 से 70 किलोमीटर दूरी पर स्कूलों में तैनात अनुदेशकों को किराया भाड़ा खर्च आदि में पूरा मानदेय चला जाता है।
5. अनुदेशकों की विशेषज्ञता किसी दूसरे विषय की जबकि अन्य विषय को पढ़ाने का दबाव बनाया जाता है।
6. आर्थिक सुरक्षा की गारंटी न होने से अनुदेशकों को कई दिक्कतें आ रही हैं।
बोले जिम्मेदार
जिले के सरकारी परिषदीय उच्च प्राथमिक विद्यालय में कक्षा छह से आठवीं के बच्चों को शारीरिक शिक्षा आदि के लिए 206 अनुदेशक तैनात हैं। स्थानीय स्तर पर अनुदेशकों की सभी समस्याओं को प्राथमिकता से सुनकर उनका तत्काल निराकरण किया जाता है।
-चंद्र प्रकाश, बीएसए, जालौन
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