बोले प्रयागराज : गंगा-यमुना की नगरी में प्यास लगे तो पानी खरीदकर पीजिए
Prayagraj News - प्रयागराज में गर्मी के मौसम में राहगीरों को पानी की व्यवस्था नहीं मिलने से परेशानी हो रही है। प्रमुख चौराहों, बस अड्डों और बाजारों में प्याऊ की अनुपस्थिति से लोग पानी खरीदने को मजबूर हैं। नगर निगम की...
प्रयागराज, हिन्दुस्तान टीम। जिस शहर में गंगा-यमुना जैसी पवित्र नदियां बहती हों वहां राहगीरों को पानी के लिए परेशान होना पड़े और खरीद कर पानी पीना पड़े तो इससे बड़ी विडंबना क्या हो सकती है। गर्मी अब बीतने को है लेकिन शहर के लगभग सभी प्रमुख चौराहों, बस अड्डे व बाजारों में अब तक प्याऊ की व्यवस्था नहीं की गई है। सिविल लाइंस सरीखे अतिव्यस्त इलाके में जहां कई प्याऊ राहगीरों की प्यास बुझाते थे वहीं इस वर्ष चौराहों पर प्याऊ दिखाई नहीं दे रहे हैं। हनुमान मंदिर चौराहा, रोडवेज बस अड्डा, सुभाष चौराहा, पत्थर गिरजाघर, हाईकोर्ट चौराहा, वाल्मीकि चौराहा, नगर निगम चौराहा, महिला थाना के बाहर, एजी ऑफिस चौराहा, प्रधान डाकघर सहित इन सभी प्रमुख स्थान पर प्याऊ की व्यवस्था न होने से यहां काम से आने वाले लोग या तो पानी की बोतल लेकर आते हैं या फिर पानी खरीदकर पीते हैं।
गर्मी चरम पर है और शहर की सड़कों पर प्याऊ की व्यवस्था न होने से राहगीर परेशान हैं लेकिन नगर निगम को इसकी फिक्र नहीं है। शहर के किसी भी बाजार या सड़क पर चले जाइए अगर प्यास लगती है तो आपको पानी खरीदकर ही पीना पड़ रहा है। जो कीमत चुका सकते हैं वो तो पानी खरीद लेते हैं लेकिन जो नहीं चुका सकते वह दुकान या ठेलेवालों से मांगकर अपनी प्यास बुझाते हैं। आपके अपने अखबार ‘हिन्दुस्तान की टीम ‘बोले प्रयागराज के तहत शहर के कुछ इलाकों में प्याऊ की पड़ताल में निकली तो पता चला पूरे सिविल लाइंस में कहीं प्याऊ नहीं है। मेडिकल चौराहे पर लोग बस एवं ऑटो के इंतजार में धूप में खड़े दिखे जो पानी के लिए परेशान थे। पूछने पर बताया कि जो पानी लेकर निकले थे वह तो खत्म हो गया। अब बोतल कहां भरें और पानी कहां मिले इसके लिए प्याऊ या नल तलाश रहे हैं। हनुमान मंदिर के पास भी कुछ ऐसा ही दृश्य देखने को मिला। तेज धूप में बिलबिला रहे लोग पानी न मिलने पर गन्ने के रस और जूस की दुकानों पर राहत तलाशते देखे गए। साफ तौर पर लोगों का कहना था कि प्रमुख स्थानों पर प्याऊ होते तो क्यों दूसरे विकल्प तलाशते। सिविल लाइंस बस अड्डे चौराहे पर प्रतापगढ़ से लौटे नैनी के प्रमोद प्रशासन की ओर से प्याऊ की व्यवस्था न किए जाने को लेकर काफी नाराज दिखे। उनका कहना था कि गर्मी में पानी तो सबसे बड़ी जरूरत है लेकिन जिम्मेदार आम लोगों की परेशानी से बेपरवाह बने हैं। प्याऊ होने के कारण ही बोतलबंद पानी का कारोबार बस अड्डे और उसके आसपास फल फूल रहा है। कमोवेश यही स्थिति सुभाष चौराहा, नवाब युसुफ रोड, पत्थर गिरजाघर, प्रधान डाकघर, एजी ऑफिस चौराहा, पानी की टंकी, हाईकोर्ट चौराहा आदि स्थानों पर देखने को मिला जहां कहीं प्याऊ नहीं नजर आया और लोग पानी के लिए परेशान दिखे। हैंडपंप होते तो मिलती राहत प्रमुख बाजारों एवं चौराहों के आसपास हैंडपंप की कमी भी लोगों को बेहद अखरती है। अगर पर्याप्त संख्या में हैंडपंप लगे होते तो लोगों को प्यास बुझाने को पानी मिल जाता लेकिन शहर की हालत यह है कि आप हैंडपंप तलाशते रह जाएंगे लेकिन नहीं मिलेगा। जहां हैंडपंप लगे भी थे वह रखरखाव के अभाव में दम तोड़ चुके हैं। न कहीं सार्वजनिक नल लगे हैं, न हैंडपंप है और न ही प्याऊ लगे हैं, ऐसे में दिनोंदिन बोतलबंद पानी का कारोबार बढ़ता जा रहा है। नगर निगम परिसर में भी नहीं है पानी की मुकम्मल व्यवस्था नगर निगम जिस पर पूरे शहर के विकास और देखभाल की जिम्मेदारी है उसके अपने कार्यालय में ही आने वालों के लिए पेयजल की कोई व्यवस्था नहीं की गई है। परिसर में कहीं न तो पानी के घड़े रखे हैं और न ही कहीं वाटर कूलर दिखते हैं। पूरे परिसर में कायार्लय के पिछले भाग में एक नल दिखता है जिससे गर्म पानी आता है। एक तो लोग जानकारी के अभाव में वहां तक नहीं पहुंच पाते, जो पहुंच भी जाते हैं तो नल से गर्म पानी आता देखकर मन मसोर कर लौट जाते हैं। लोगों का कहना है कि जहां निगम के आला अफसर बैठते हों वहां इस तरह की लापरवाही हो रही है तो बाकी शहर को कौन पूछने वाला है। निगम के मुख्य द्वार के पास तो कम से कम वाटर कूलर लगाना चाहिए था। अगर वाटर कूलर लगा होता तो लोगों को पानी के लिए दस तरह परेशान न होना पड़ता। नहीं बची चरही, जानवर भी घूम रहे प्यासे गर्मी में आम इंसान ही नहीं बल्कि जानवर भी पानी के लिए परेशान हैं। इंसान तो पानी मांगकर, खरीद कर या किसी प्रकार जुगाड़ कर लेता है लेकिन बेजुबान जानवरों के लिए पानी की व्यवस्था न होने के कारण वह प्यासे इधर उधर घूम रहे हैं। लोगों का कहना है कि पहले जगह जगह चरही हुआ करती थी जहां गाय, भैंस, घोड़े आदि जानवर अपनी प्यास बुझा लेते थे। पूर्व में नगर महापालिका आम लोगाों के लिए प्याऊ और जनवरों के लिए चरही की व्यवस्था गर्मी आते ही कर देती थी लेकिन समय के साथ प्रयागराज स्मार्ट सिटी हो गया और जानवर ही नहीं आम आदमी की जरूरतें भी हाशिए पर चली गईं। स्वयंसेवी संस्थाओं ने भी खड़े कर लिए हाथ शहर में जहां स्थानीय प्रशासन जगह-जगह नि:शुल्क प्याऊ की व्यवस्था करता था वहीं तमाम स्वयंसेवी संस्थाएं भी बढ़-चढ़कर इसमें भागीदारी करती थी लेकिन अब संस्थाओं की भूमिका मात्र खास दिनों पर खास जगहों पर शरबत वितरण कार्यक्रम तक सिमट कर रह गई है। करीब एक दर्जन संस्थाएं जो प्याऊ लगाती थीं अब इसमें दिलचस्पी नहीं ले रही है। इस कारण पहले जो प्याऊ दिखते थे वह नहीं दिख रहे हैं। ------हमारी भी सुनें--------- जौनपुर से अभी आ रहे हैं, जो पानी साथ लेकर आए थे वह रास्ते में खत्म हो गया। बस अड्डे के आसपास पानी तलाशा लेकिन प्याऊ नहीं मिला। प्याऊ होता तो बीस रुपये का पानी न खरीदना पड़ता और प्यास बुझ जाती।-अमित कुमार लोग बस पकड़ने के लिए आते हैं जिन्हें दूर जाना होता है। बस अड्डे के आसपास पेयल की कोई व्यवस्था नहीं की गई है। पहले प्याऊ लगते थे लेकिन इस बार वह भी नहीं दिख रहे जिससे पानी खरीदकर पीना पड़ रहा है।-सुमित चौराहे के आसपास न तो प्याऊ लगाया गया है और न ही हैंडपम्प हैं। बिना कुछ खरीदे दुकानदार पानी भी नहीं छूने देते। मजबूरी में बोतल का पानी खरीद कर लोग पीते हैं। नि:शुल्क प्याऊ की व्यवस्था हो तो लोग पानी क्यों खरीदें।-उमेश चन्द्र गर्मी में चौराहों और प्रमुख स्थानों पर नि:शुल्क पानी की व्यवस्था न हो तो यह गंभीर बात है। जिम्मेदारों को इस पर ध्यान देना चाहिए था लेकिन इस गंभीर समस्या को नजर अंदाज कर दिया गया है जिससे लोग परेशान हैं।-विपिन प्रमुख चौराहों पर नि:शुल्क पानी की व्यवस्था करना स्थानीय प्रशासन का काम है। प्याऊ लगे होते तो लोगों को राहत मिलती। जिम्मेदारों की उदासीनता के कारण राहगीरों को गर्मी में पानी के लिए परेशान होना पड़ रहा है।-प्रकाश पहले हनुमान मंदिर चौराहे के दोनों तरफ प्याऊ लगते थे जहां लोगों को मटके का ठंडा पानी मिल जाता था लेकिन इस बार देख रहे हैं कि चौराहे पर कहीं प्याऊ ही नहीं लगाया गया है। कहीं सार्वजनिक नल भी नहीं लगा है।-अनिकेत सिंह लोग गर्मी में प्यास से परेशान रहते हैं और पानी तलाशते हैं। अगर चौराहों पर सार्वजनिक नल या प्याऊ हो तो लोगों को पानी के लिए इधर उधर न भटकना पड़े। कहीं पानी नहीं मिलता तो मजबूरी में लोग बोतल खरीद कर पीते हैं।-सुनील श्रीवास्तव इंसान ही नहीं जानवरों के लिए भी पानी का इंतजाम किया जाना चाहिए। पहले जगह-जगह प्याऊ लगा करते थे, जानवरों के लिए भी चरही होती थी लेकिन अब तो स्मार्ट सिटी है, यहां हर सुविधा की कीमत चुकाए बिना पानी भी नहीं मिलता।-सुगेश चौधरी पहले गर्मी आते ही स्वयंसेवी संस्थाएं चौराहों पर नि:शुल्क पानी की व्यवस्था करती थीं। नगर निगम और स्थानीय प्रशासन भी प्रमुख स्थानों पर प्याऊ लगवाते थे लेकिन अब प्याऊ न होने से बोतल का पानी खरीदना पड़ता है।-गुड्डू गर्मी आते ही पहले प्याऊ लग जाते थे, स्वयंसेवी संस्थाओं के लोग भी जगह-जगह पेयजल के घड़े रखते और दान करते थे, वहां गुड़ और पेठा भी राहगीरों को नि:शुल्क दिया जाता था लेकिन अब पानी खरीद कर काम चलाना पड़ता है।-विनीत लोगों को पानी के लिए भटकना पड़े तो व्यवस्था पर सवाल तो उठेंगे ही कि आखिर वह कर क्या रहे हैं। जिम्मेदारों की उदासीनता के कारण तमाम लोग परेशान हो रहे हैं। सभी जगह नि:शुल्क पानी की व्यवस्था होनी चाहिए।-प्रकाश घर से जो पानी लेकर निकलते हैं वह घंटेभर में खत्म हो जाता है, उसके बाद पानी खरीदना पड़ता है। अगर प्रमुख चौराहों एवं बाजार में नि:शुल्क प्याऊ की व्यवस्था हो तो लोगों को गर्मी में पानी के लिए परेशान न होना पड़े।-शुभम शर्मा पहले पानी पिलाना पुण्य का काम समझा जाता था और लोगों में इसके लिए होड़ मची रहती थी। दुकानदार भी किसी को पानी के लिए मना नहीं करते थे लेकिन अब सब बदल गया है, पानी न खरीदें तो प्यासे रह जाएं।-दीपक जिस शहर में आम लोगों के लिए प्याऊ तक नहीं बनाया गया है वहां कैसे उम्मीद की जाए की जानवरों की किसी को फिक्र होगी। इंसान तो पानी खरीद कर पी लेगा लेकिन जानवरों को गर्मी में पानी कहां मिलेगा इस पर विचार किया जाना चाहिए।-कमल गिरि हनुमान मंदिर के पास पहले दो प्याऊ लगते थे जहां हमेशा ठंडा पानी उपलब्ध रहता था लेकिन इस वर्ष न तो चौराहे पर प्याऊ दिख रहा है न ही पूरे सिविल लाइंस इलाके में कहीं नि:शुल्क पानी की व्यवस्था की गई है। राहगीर परेशान हैं।-संजय पाल बस अड्डे और इसके आसपास प्याऊ लगा होता तो यात्रियों को इस प्रकार परेशान न होना पड़ता। यात्री पानी तलाशते हैं तो पता लगता है कि कहीं व्यवस्था नहीं है, मजबूरी में लोग पानी की बोतल खरीद कर काम चलाते हैं।-विकास केसरवानी इस गर्मी में घर से निकलें तो पानी साथ में रखें क्योंकि अगर कहीं प्यास लगी तो शहर में न तो कहीं प्याऊ मिलेगा और न ही सार्वजनिक नल या हैंडपंप। शहर अब स्मार्ट हो गया है, प्यास बुझाना है तो पानी खरीदकर पीजिए।-जय गोस्वामी गर्मी शुरू होते ही पहले प्याऊ और जानवरों के लिए भी चरही बन जाती थी। लोग अपने घरों के सामने पानी के टब रखते थे। स्वयंसेवी संस्थाएं घड़े दान करती थीं लेकिन अब न प्रशासन को फिक्र है, न लोगों में दिलचस्पी रह गई है।-विनय बोले जिम्मेदार शहर में धोबी घाट, हाथी पार्क, रामबाग स्टेशन, लेबर चौराहा आदि स्थानों पर जलकल विभाग की ओर से नि:शुल्क पानी की व्यवस्था की गई है । जिन स्थानों पर प्याऊ की आवश्यकता है उसका पता लगाया जा रहा है। पार्षदों से भी राय ली जा रही है, संबंधित जोनल अधिकारियों को निर्देशित किया गया है कि ऐसे सार्वजनिक स्थानों को चिह्नित कर सूची उपलब्ध कराएं जहां प्याऊ लगाया जा सके। इसके लिए बराबर काम चल रहा है। शीघ्र इस समस्या का समाधान करा दिया जाएगा।-शिवम मिश्र, एक्सईएन, जलकल विभाग
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