बोले प्रयागराज : गांव से शहर बने हो गए चार साल, आज भी 500 रुपये में खरीदकर पीते हैं पानी
Prayagraj News - प्रयागराज के झलवा क्षेत्र में पानी की कमी से परेशान सैकड़ों परिवार हर महीने 300-500 रुपये पानी खरीदने को मजबूर हैं। चार साल पहले नगर निगम में शामिल होने के बाद भी यहां बुनियादी सुविधाओं का अभाव है।...
प्रयागराज, प्रमुख संवाददाता। इलाहाबाद पश्चिमी के झलवा में एक इलाका ऐसा हैं, जहां के सैकड़ों परिवारों को पानी की सरकारी आपूर्ति नहीं होती है। कहने को दो दशक पहले क्षेत्र का विकास हो गया। आवास विकास परिषद, प्रयागराज विकास प्राधिकरण ने आवासीय योजना बना दी। क्षेत्र का मुख्य मार्ग चमचमा रहा है। फिर भी घुंघरू चौराहे के पास इस मोहल्ले में रहने वाले परिवार हर महीने 300-500 रुपये देकर पानी खरीदते हैं। मोहल्ले के जिन लोगों के घरों में सबमर्सिबल लगा है वे पानी बेचकर हर महीने मोटी कमाई कर रहे हैं। हल्की बारिश हो जाए तो दर्जनों घरों में पानी भर जाता है। पानी निकासी के लिए नालियां नहीं हैं। सीवर लाइन नहीं बिछाई गई। शहर के एक किनारे बसा यह मोहल्ला शहर का हिस्सा तो बन गया, लेकिन यहां की जिंदगी गांव से भी बदतर है।
झलवा में घुंघरू चौराहा से उत्थान जाने वाली सड़क किनारे बसा मोहल्ला सवा चार साल पहले तक ग्रामीण क्षेत्र था। तब मोहल्ले के लोग पार्षद की जगह प्रधान का चुनते थे। गांवों में विकास के लिए केंद्र और प्रदेश सरकार ने पानी की तरह पैसा बहाया, लेकिन सड़क किनारे गांव से मोहल्ला बने की इस इलाके में बुनियादी सुविधाओं में कोई सुधार नहीं हुआ। प्रदेश सरकार की अधिसूचना के बाद यह मोहल्ला एक जनवरी 2020 को शहर का हिस्सा बना तो यहां के लोग बुनियादी सुविधाएं मिलने का सपना देखने लगे। मोहल्ले की सूरत बदलने का आश्वासन भी मिलने लगा। प्रधान की जगह बने पार्षद ने भी विकास का भरोसा दिलाया। सवा चार साल बाद मोहल्ले के लोग कह रहे हैं कि आखिर शहर में शामिल होने पर क्या मिला। अब लोगों ने न्यूनतम शहरी सुविधा मिलने का सपना देखना छोड़ दिया है।
आपके अपने अखबार ‘हिन्दुस्तान की 'बोले प्रयागराज' टीम ने मोहल्लावासियों से बात की तो स्थानीय लोगों ने बताया कि यहां की हालत तो गांव से भी बदतर है। मोहल्ले में नल के जरिए घर-घर पानी पहुंचाने का इंतजाम हो रहा है। यहां हर महीने 300-500 रुपये भुगतान कर पानी खरीदना मजबूरी है। वो भी एक वक्त ही पानी दिया जाता है। मोहल्ले के चंद घरों में सबमर्सिबल पंप लगे हैं। लोग इन्हीं घरों से पाइप के जरिए पानी लेते हैं। कुछ लोग तो बाल्टी से पानी ढोते हैं। लोगों ने बताया कि चार साल से पानी मिलने का सपना देख रहे हैं। दो साल से मोहल्ले में पानी का पाइप बिछाने का आश्वासन दिया जा रहा है। महाकुम्भ के पहले कहा जा रहा था कि जल्द लोगों को सरकारी पानी मिलेगा। महाकुम्भ शुरू हो गया तो कहा जाने लगा कुछ दिन इंतजार कीजिए। महाकुम्भ बीते भी एक महीना हो गया, लेकिन कहीं कोई काम शुरू नहीं हो पाया।
जलभराव इलाके की बड़ी समस्या
लोगों के मुताबिक पानी का पाइप बिछाने के लिए सर्वे हो चुका है। बजट स्वीकृत हो गया है, इसके बाद भी काम शुरू नहीं हुआ। भले ही यहां पीने के लिए पानी नहीं मिलता लेकिन बारिश के दौरान पानी मुसीबत बन जाता है। बारिश का पानी निकासी के लिए नालियां नहीं होने से दर्जनों घरों में जलभराव होता है। मुख्य मार्ग किनारे नालियां कूड़े से पटी हैं। मोहल्ले के खाली प्लॉटों पर कूड़े का ढेर लगा है। गड्ढे में पानी भरा होने से मच्छरों का आतंक है। मोहल्ले में वर्षों से पानी, जलभराव की समस्या से जूझ रहे जितेंद्र ने बताया कि आसपास आवास विकास और पीडीए की कॉलोनियों में पर्याप्त पानी है। पानी निकासी के लिए नालियां हैं। सीवर लाइन है। यही एक मोहल्ला है जहां के लोगों को सिर्फ आश्वासन दिया जाता है। अब कोई आश्वासन देता है तो लोग मुस्कराते हैं। सभी को पता है कि आश्वासन पर कुछ होना नहीं है।
उत्थान रोड आज भी अंधेरे में
प्रयागराज। झलवा क्षेत्र में उत्थान रोड एक ऐसा मार्ग है, जहां कई शिक्षण संस्थान और गेस्ट हाउस हैं। मार्ग से प्रतिदिन हजारों लोगों का आवागमन होता है लेकिन शाम होने के बाद अचानक सन्नाटा पसर जाता है। सूर्यास्त के बाद शायद ही कोई पैदल चलता दिखाई पड़े। रात में गाड़ियों की रोशनी से ही कभी-कभी रोड का पता चलता है। हैरान करने वाली बात है कि इतनी व्यस्त सड़क, जिसके किनारे गेस्ट हाउस और शिक्षण संस्थान हैं, वहां स्ट्रीट लाइट ही नहीं लगी। मार्ग पर आवागमन करने वाले लोगों ने बताया कि स्ट्रीट लाइट लगाने का प्रस्ताव कई बार तैयार किया गया। शहर की चौहद्दी में शामिल हुए क्षेत्र को सवा चार साल बीत गए, लेकिन स्ट्रीट लाइट नहीं लगी। अंधेरे में लोग इस मार्ग से आवागमन करने में डरते हैं।
सुविधा नहीं, फिर भी मिला गृहकर का बिल
प्रयागराज। झलवा के उत्थान रोड किनारे मोहल्ले में न्यूनतम बुनियादी सुविधा नहीं है। सीवर नहीं है। स्ट्रीट लाइट नहीं है। नालियां नहीं बनी। सफाई नाम की होती है, फिर भी नगर निगम ने यहां रहने वाले भवनस्वामियों को गृहकर का बिल भेज दिया। पहली बार लोगों को गृहकर का बिल मिला। कुछ लोग सवाल खड़ा कर रहे हैं कि जब कोई सुविधा नहीं है, गांव जैसी स्थिति बनी हुई है तो गृहकर क्यों दे। फिर भी अधिकतर भवनस्वामियों ने बिल जमा कर दिया। लोगों का कहना है कि अब शहर में आ गए हैं, बिल भी मिल गया है तो कहां तक लड़े। अब ऐसे ही रहना हमारी नियति बन गई है। कभी तो हालात बदलेंगे।
शिकायतें
-सुविधा कुछ नहीं और गृहकर ले रहे।
-सरकारी पानी आज तक नहीं मिला।
-बारिश के पानी की निकासी नहीं होती।
-मुख्य मार्ग पर लाइट नहीं लगी।
-सीवर लाइन नहीं बिछाई गई।
सुझाव
पानी की आपूर्ति घर-घर हो।
सीवर लाइन बिछाई जाए।
जल निकासी की व्यवस्था हो।
सड़क किनारे लाइट लगाई जाए।
अन्य शहरी सुविधाएं मिलनी चाहिए।
हमारी भी सुनें
पानी का बहुत संकट है। 500 रुपये हर महीने पानी के लिए देते हैं। दो साल से सरकारी पानी मिलने का सिर्फ आश्वासन मिल रहा है।-- मगनलाल
पीने के लिए ही नहीं, स्नान करने और कपड़े धोने के लिए भी पानी खरीदते हैं। सबमर्सिबल वाले को हर महीना 300 रुपये देते हैं।-- राजेंद्र कुमार
300 रुपये हर महीने देकर पानी खरीदना मजबूरी है। एक वक्त ही पानी मिलता है। वर्षों से नलकूप से पानी मिलने की बात ही सुन रहे हैं।-- सीमा देवी
खानपान से अधिक यहां पानी कीमती है। घर के खर्चे में कमी कर देते हैं, ताकि हर महीने पानी के लिए 500 रुपये का भुगतान कर सकें।--- शिमला देवी
पीने का पानी खरीदना पड़ता है। हर महीने भुगतान न करें तो पानी बंद। बारिश में पानी घरों में घुस जाता है। पानी निकलने की व्यवस्था नहीं है।--संगीता देवी
नगर निगम सीमा में हुए चार साल हो गए, लेकिन सरकारी पानी नहीं मिला। नालियां भी नहीं हैं। बारिश में घरों में पानी भरता है।--गिरधारी लाल केसरवानी
पानी का संकट तो है। मोहल्ले में नालियां नहीं हैं। सीवर लाइन नहीं बिछाई गई। वर्षों से पानी का पाइप बिछाने का सिर्फ आश्वासन मिल रहा है।-- पुष्पा साहू
नगर निगम में शामिल होने के बाद भी गांव जैसी स्थिति है। पीने को पानी नहीं मिलता और बारिश में घरों से पानी निकालना पड़ता है।--मनोज भारतीय
किराये के मकान में रहते हैं। महीनेभर की कमाई का बड़ा हिस्सा घर के किराये और पानी खरीदने में खर्च हो जाता है। कुछ नहीं बचा पाते।--गीता देवी
शहरी बन गए, लेकिन हालात गांव जैसा ही है। पीने को सरकारी पानी नहीं है। सड़क पर लाइट नहीं है। बारिश का पानी घरों में जाता है।--खुन्नू लाल यादव
काफी समय तक खरीदकर पानी पीते रहे। हर महीने पानी के लिए मोटी कीमत चुकाते थे। पैसे जमा कर अब घर में सबमर्सिबल लगा लिया है।-- शिवबाबू
शहर में शामिल होने के बाद कुछ भी नहीं सुधरा। पीने के लिए सरकारी पानी तक नहीं मिला। रात में सड़क पर अंधेरे में आवागमन करते हैं।-- दशरथ लाल
नाली नहीं है। हर महीने पानी के लिए भुगतान करना पड़ता है। घरों में बारिश का पानी भरता है। सिर्फ नाम के लिए शहर में रहने पर गर्व है।-- राजनारायण
दो साल से पानी का पाइप बिछाने का आश्वासन दे रहे हैं, लेकिन कुछ हो नहीं रहा। पानी खरीदना मजबूरी है। क्षेत्र में गांव जैसी ही स्थिति है।--रवि कुमार
शहर में रहते हैं, लेकिन घरों में टोटियां नहीं हैं। घरों में जलभराव होता है। मार्ग पर लाइट नहीं लगी। शिकायत पर आश्वासन मिलता है।-- बिट्टन देवी
महाकुम्भ में पूरा शहर चमकने लगा। क्षेत्र में विकास की किसी ने सुधि नहीं ली। क्षेत्र में एक नलकूप नहीं लग पाया। नालियां नहीं बनीं।--सचिन आर्या
पानी, सीवर और नाली के लिए गुहार लगा रहे हैं। आसपास मोहल्लों में सारी व्यवस्था दुरुस्त हैं। सिर्फ उत्थान मार्ग पर कोई काम नहीं हो रहा।--- जितेंद्र कुमार
सरकारी पानी नहीं मिला तो घर में सबमर्सिबल लगाना मजबूरी हो गई। सीवर निकासी की व्यवस्था नहीं है। बारिश में घुटने भर पानी भर जाता है।--आयुष
बोले अधिकारी
झलवा के किसी क्षेत्र में पानी की इतनी विकराल समस्या की जानकारी नहीं है। लोगों से इसकी शिकायत भी नहीं मिली। वहां के पार्षद ने भी कभी पानी संकट के बारे में शिकायत नहीं की। फिर भी वहां समस्या है तो उसका निदान करेंगे। इंजीनियर को भेजकर दिखवाएंगे। पता कराते हैं कि क्षेत्र में आजतक पानी का संकट क्यों है।
-- कुमार गौरव महाप्रबंधक जलकल प्रयागराज
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