Revival of Rampuri Knife From Infamy to Gift Item खौफ का पर्याय रामपुरी चाकू अब सबसे अच्छा गिफ्ट आइटम, Rampur Hindi News - Hindustan
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खौफ का पर्याय रामपुरी चाकू अब सबसे अच्छा गिफ्ट आइटम

Rampur News - रामपुरी चाकू, जो कभी हिंसा का प्रतीक था, अब गिफ्ट आइटम के रूप में लोकप्रिय हो रहा है। 1965 में राजकुमार के डायलॉग से मशहूर हुआ यह चाकू अब स्थानीय विरासत के प्रतीक के रूप में उभरा है। हालांकि, 1990 में...

Newswrap हिन्दुस्तान, रामपुरWed, 18 June 2025 03:22 AM
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खौफ का पर्याय रामपुरी चाकू अब सबसे अच्छा गिफ्ट आइटम

रामपुर। 1965 में रिलीज हुई फिल्म ‘वक्त में अभिनेता राज कुमार का एक डायलॉग खूब मशहूर हुआ था-जानी...ये बच्चों के खेलने की चीज नहीं, ये रामपुरी है, लग जाए तो खून निकल आता है...। उस वक्त रामपुरी चाकू की दहशत हुआ करती थी। स्थिति यह थी 60 और 70 के दशक में ज्यादातर फिल्मों में विलेन का सबसे पॉपुलर हथियार चाकू हुआ करता था। लेकिन, दौर बदला तो सब कुछ बदल गया। हिंसक प्रवृत्ति वाले चाकू की धार कुंद हो गई। नतीजतन, कभी बदनाम, कुख्यात रहा रामपुरी चाकू अब प्रख्यात होने लगा है और लोगों के घरों की शान बना हुआ है।

साथ ही लोग अब रामपुरी चाकू को गिफ्ट आइटम की तरह भी इस्तेमाल करने लगे हैं। बतौर तोहफा यह अफसरों से लेकर नेताओं तक के मन को खूब भा रहा है। 18वीं सदी के दौरान जब आग उगलने वाले हथियारों का चलन हुआ तब रामपुर के नवाब फैजुल्ला खां ने अपनी सेना के लिए छोटे हथियारों के रूप में चाकू का इस्तेमाल करना शुरू किया था। भारत के दूसरे स्टेट के नवाब और राजाओं ने भी रामपुरी चाकू को अपनी शान के रूप में रखा। रामपुर के बेमिसाल पिस्तौलनुमा चाकू की छाप अंग्रेजों तक पर पड़ी। सन् 1949 में जब रामपुर स्टेट का आजाद भारत में विलय हुआ तक चाकू के व्यवसाय में सबसे ज्यादा उछाल आया। रामपुर में ही चाकू बेचने की बाध्यता समाप्त हो गई, कारोबारी दूसरे शहरों में भी रामपुरी चाकू बेचनें लगे। जिससे चाकू उद्योग कभी बुलंदियों पर था। आलम यह था कि रामपुर बस स्टैंड या रेलवे स्टेशन से उतरते ही लोगों में बटनधारी चाकू को देखने की हसरत नजर आती थी। बाजार में तीन इंच से लेकर पंद्रह इंच तक के एक तरफा धार, दो तरफा धार और बटन से खुलने वाले चाकू बहुत मशहूर थे। लेकिन, 1990में राज्य सरकार ने चार इंच से ज्यादा लंबे ब्लेड के चाकू पर प्रतिबंध लगा दिया। तब से यह कारोबार मंदा होता चला गया। कैसे लगी धार पर जंग जरायम पेशा लोगों के बीच जब रामपुरी चाकू पसंदीदा हुआ तो इस चाकू को हिंसा से जोड़कर देखा जाने लगा। साल 1990 में उत्तर प्रदेश सरकार ने एक फैसला किया और 6 इंच से अधिक लंबे ब्लेड वाले चाकुओं की बिक्री पर रोक लगा दी, वही इसकी बर्बादी की वजह भी बन गया। चौराहे पर लगा है 45 लाख का चाकू सालों पुरानी विरासत को जिंदा रखने की कोशिश आज भी जारी है। स्थानीय प्रशासन ने भी इस दिशा में कदम बढ़ाया है। रामपुर के फेमस रामपुरी चाकू की 20 फुट लंबा-चौड़ा मॉडल शहर के बीचों-बीच बनाया गया है। करीब 45 लाख का यह चाकू बना है, जिसे एक चौक पर लगाया गया है। इस काम में कुल लागत करीब 52 लाख रुपये आयी है। आरडीए ने इसे दुनिया का सबसे बड़े चाकू के रूप में दर्ज कराने के लिए कागजी प्रक्रिया भी शुरू की है। चाकू चौक पर बने इस रामपुरी चाकू के मॉडल को देखकर आप एक बार तो जरूर इस विरासत के बारे में जानना चाहेंगे। अब सिर्फ तीन कारखाने जिसमें छह कारीगगर कभी दूर-दूर तक मशहूर रामपुरी चाकू की अब कुल दो-तीन दुकानें ही हैं। कुल तीन कारखाने हैं जिसमें टोटल छह कारीगर काम कर रहे हैं। चाकू कारीगरों के कुल तीन लाइसेंस हैं। जबकि, पहले लगभग चार सौ लाइसेंस थे। 12 सौ से लेकर 1.25 लाख तक के गिफ्ट अब चाकू बतौर गिफ्ट दिया जा रहा है। इसके बारह सौ रूपये से लेकर लगभग 1.25 लाख रुपये तक के शोपीस चाकू उपलब्ध हैं। दुकानदारों की मानें तो सभी शोपीस चाकू रामपुर के ही तैयार हैं। डीजीपी से लेकर सीएम तक ने सराहा रामपुरी चाकू को बीते वर्ष यहां आए तत्कालीन डीजीपी प्रशांत कुमार और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को जब प्रशासन और स्थानीय नेताओं ने रामपुरी चाकू गिफ्ट किया तो उन्होंने इसे खूब सराहा था। चंद रोज पहले ही कांग्रेस के पूर्व जिलाध्यक्ष धर्मेंद्र देव गुप्ता ने उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को यही चाकू भेंट किया। इतना ही नहीं जीआरपी के एडीजी चार दिन पहले रामपुर आए तो उन्हें भी यही चाकू भेंट किया गया, जिसे उन्होंने सराहा। इनकी सुनिए रामपुरी चाकू का कारोबार, जो कभी 5000 से अधिक कारीगरों के साथ फलफूल रहा था, अब सिमट कर दो-तीन दुकानों और पांच-छह कारीगरों तक रह गया है। कारीगरों का कहना है कि 1995 में 4.5 इंच से अधिक लंबे ब्लेड वाले चाकुओं पर प्रतिबंध लगने के बाद से कारोबार में गिरावट आई है। अब इसे सिर्फ बतौर तोहफा दिया जा रहा है, लेकिन वह बहुत कम। -शहजाद आलम, दुकानदार आजकल चाकू सिर्फ दीवारों पर शोकेस में लगाने के काम आ रहे हैं। लिहाजा, कम ही लोग खरीदते हैं। चाकू के अब तमाम कारीगर और दुकानदार बर्तन, रेडीमेड कपड़े या अन्य सामान बेच रहे हैं, क्योंकि चाकू का कारोबार अब लाभदायक नहीं रहा। अब इस कारोबार से परिवार का पालन पोषण मुश्किल हो रहा है। -फैजान, दुकानदार -कच्चे माल की लागत में वृद्धि और लाभ में कमी भी इस गिरावट में योगदान दे रही है। अब लोगों का ध्यान नई तकनीक से बने चाकुओं की तरफ ज्यादा आकर्षित हो रहा है। लोग इसे गिफ्ट के तौर पर रामपुर आने वाले मेहमानों को दे रहे हैं। खासकर नेताओं में इसका चलन बढ़ा है। ईशरत अली खां,कारीगर रामपुरी चाकू का कारोबार, जो कभी रामपुर की पहचान था, अब संकट में है। सरकार को इस पारंपरिक कला को बचाने के लिए हस्तक्षेप करना चाहिए। हालांकि, प्रशासन के स्तर से इस विरासत को बढ़ावा देने की कवायद की गई। चाकू चौक बनाया गया। गिफ्ट में अधिकारियों को दिया जाने लगा। लेकिन, इससे कारोबार को उछाल नहीं मिल पाया। -शाने आलम, कारीगर

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