Empowerment of Women Challenges Faced by Self-Help Group Leaders in Rural India बोले सहारनपुर : समूह सखियां कर रही चुनौतियों का सामना, Saharanpur Hindi News - Hindustan
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बोले सहारनपुर : समूह सखियां कर रही चुनौतियों का सामना

Saharanpur News - समूह सखियां ग्रामीण भारत में महिला सशक्तिकरण की रीढ़ मानी जाती हैं। सहारनपुर में कार्यरत 1173 समूह सखियों का मासिक वेतन केवल 800 रुपये है, जो समय पर नहीं मिलता। इन्हें अतिरिक्त कार्यों के लिए भी कोई...

Newswrap हिन्दुस्तान, सहारनपुरMon, 16 June 2025 02:32 AM
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बोले सहारनपुर : समूह सखियां कर रही चुनौतियों का सामना

समूह सखियां स्वयं सहायता समूहों की रीढ़ मानी जाती हैं। इनका कार्यक्षेत्र गांवों तक सीमित है, लेकिन इनकी जिम्मेदारी अत्यंत व्यापक हैं। समूह सखियों के सामने अनेक समस्याएं है जिसमें वेतन का कम होना, समय पर वेतन न मिलना, वेतन बढ़ाए जाने, समय पर वेतन मिलने, अतिरिक्त कार्यों का कोई अलग से भुगतान नहीं होना बड़ी समस्या है। ग्रामीण भारत के सामाजिक और आर्थिक विकास में महिला सशक्तिकरण की महत्वपूर्ण भूमिका है। उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जनपद में कार्यरत 1173 समूह सखियां इसी दिशा में सक्रियता से काम कर रही हैं। ये सखियां ग्रामीण क्षेत्रों में स्वयं सहायता समूहों को संगठित करती हैं, योजनाओं की निगरानी करती हैं और सरकारी कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में सहयोग देती हैं।

इनके जिम्मे लोकॉस एप पर डाटा अपलोड करना, सीसीएल (कम्युनिटी कैडर लिस्ट) की निगरानी, लखपति दीदी योजना को आगे बढ़ाना, फैमिली आईडी तैयार कराना, मिशन अंत्योदय व जीरो पॉवर्टी प्रोजेक्ट जैसे विभिन्न कार्य आते हैं। लेकिन, इन कार्यों के पीछे मेहनत करने वाली ये महिलाएं खुद कई समस्याओं से जूझ रही हैं। उनका मासिक वेतन महज 800 रुपये है, जो उनकी मेहनत और जिम्मेदारियों के मुकाबले बेहद कम है। समूह सखियों ने वेतन बढ़ाए जाने, समय पर वेतन मिलने, पर्सनल खाते में वेतन स्थानांतरित होने सहित कई सुझाव दिए हैं। यदि संबंधित संस्थाएं उनके वेतन, पहचान और सामाजिक सुरक्षा की मांगों पर गंभीरता से विचार करें, तो न केवल उनकी स्थिति में सुधार होगा बल्कि गांवों में महिला सशक्तिकरण और विकास की गति को और भी तेज किया जा सकता है। समूह सखियां स्वयं सहायता समूहों की रीढ़ मानी जाती हैं। इनका कार्यक्षेत्र गांवों तक सीमित है, लेकिन इनकी जिम्मेदारी अत्यंत व्यापक हैं। वे न केवल समूहों की मासिक बैठकें आयोजित करती हैं, बल्कि उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए प्रशिक्षण, लोन सुविधा, और उद्यमिता विकास से संबंधित गतिविधियों में भी शामिल होती हैं। सरकार द्वारा चलाई जा रही लखपति दीदी योजना में भी उनकी प्रमुख भागीदारी है, जिसका उद्देश्य महिलाओं को स्वरोजगार के जरिए आत्मनिर्भर बनाना है। इसके अतिरिक्त, फैमिली आईडी जैसे डाटा संकलन और प्रविष्टि वाले कार्य, मिशन अंत्योदय के तहत गांवों की आवश्यकताओं का मूल्यांकन, और जीरो पॉवर्टी मिशन के तहत जरूरतमंद परिवारों की पहचान जैसे कार्य भी इन्हीं पर निर्भर हैं। लोकॉस एप पर रिपोर्टिंग करना एक तकनीकी जिम्मेदारी है, जो डिजिटल दक्षता भी मांगती है। सबसे गंभीर समस्या जो सामने आती है, वह है अत्यंत कम वेतन। महज 800 रुपये प्रतिमाह। इससे भी बड़ी समस्या यह है कि यह वेतन नियमित रूप से नहीं मिलता। कई बार दो से तीन महीने तक भुगतान नहीं होता, जिससे सखियों को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ता है। समूह सखियों के अनुसार कई बार उन्हें अपने व्यक्तिगत खर्चों से यात्रा करनी पड़ती है, प्रिंटआउट, मोबाइल रिचार्ज, डाटा पैक, स्टेशनरी इत्यादि पर खर्च करना पड़ता है, जिसकी भरपाई उन्हें नहीं मिलती। इसका सीधा असर उनकी कार्यक्षमता और मानसिक स्थिति पर पड़ता है। समूह सखियों का कार्य ग्रामीण समाज में महिला नेतृत्व और सशक्तिकरण की एक महत्वपूर्ण कड़ी है। वे न केवल सरकारी योजनाओं को धरातल पर क्रियान्वित करती हैं, बल्कि गांवों में महिला सशक्तिकरण, वित्तीय साक्षरता, और सामाजिक बदलाव की भी वाहक हैं। लेकिन मौजूदा समय में जिस तरह उन्हें कम वेतन, समय पर भुगतान की कमी, और अतिरिक्त कार्यों का बोझ उठाना पड़ रहा है, वह चिंता का विषय है। यदि सरकार व संबंधित संस्थाएं उनके वेतन, पहचान और सामाजिक सुरक्षा की मांगों पर गंभीरता से विचार करें, तो न केवल उनकी स्थिति में सुधार होगा बल्कि गांवों में महिला सशक्तिकरण और विकास की गति को और भी तेज किया जा सकता है। --- अतिरिक्त कार्यों का कोई अलग भुगतान नहीं समूह सखियों को अक्सर ऐसे कार्यों में भी लगाया जाता है जो उनके मूल कार्यक्षेत्र से अलग होते हैं, जैसे रैलियों में भाग लेना, सरकारी और राजनीतिक आयोजनों में भीड़ जुटाना, या जन जागरूकता रैलियों का आयोजन करना। ये कार्य न केवल मानसिक और शारीरिक श्रम की मांग करते हैं, बल्कि इनमें समय और संसाधनों की भी आवश्यकता होती है, जबकि इनके लिए कोई अतिरिक्त भुगतान नहीं किया जाता। यह न केवल शोषण की श्रेणी में आता है, बल्कि यह उनके आत्मसम्मान को भी ठेस पहुंचाता है। ------------------------ समूह सखियों की समस्याएं एवं सुझाव -समूह सखियों का वेतन बहुत कम है। गुजारा नहीं होता। -समूह सखियों को समय पर वेतन नहीं मिलता है। -समूह सखियों की वेतन से अधिक खर्च की समस्या - समूह सखी का वेतन समूह के खाते में आता है -रैली अथवा सरकारी राजनीतिक कार्यक्रम में भीड़ इकट्ठा करने का दबाव सुझाव -समूह सखियों का वेतन बढ़ाया जाए -समूह सखियों को समय पर वेतन मिले -समूह सखी के पर्सनल खाते में वेतन मिले -समूह सखियों को स्वास्थ्य बीमा का लाभ मिले -रैली अथवा सरकारी कार्यक्रमों में भागेदारी के लिए दबाव न बनाया जाए --------------------------------------------------- 0-प्रतिक्रियाएं दो साल से समूह से जुड़ी हूं। सरकारी स्वास्थ्य बीमा योजनाओं में सखियों को शामिल किया जाए, ताकि वे इलाज और स्वास्थ्य सेवाओं के लिए आत्मनिर्भर हों। -राज शिक्षा, देवबंद ब्लॉक -करीब तीन साल से समूह से जुड़ी हूं। समूह सखियों को पहचान मिले। उन्हें पहचान पत्र, ड्रेस कोड और पदनाम के साथ काम करने का अधिकार दिया जाए, ताकि गांव स्तर पर उनकी साख और पहचान बने। -ममतेश, देवबंद ब्लॉक -करीब तीन साल से समूह से जुड़ी हूं। वेतन समूह खाते में आता है। वेतन व्यक्तिगत खाते में दिया जाए। इससे पारदर्शिता बनी रहेगी और भुगतान की निगरानी आसान होगी। -संगीता, गंगोह ब्लॉक -आठ सौ रुपये वेतन मिलता है और वो भी समय पर नहीं मिलता। कई बार छह से सात महीने बाद वेतन मिलता है। वेतन समय पर मिलना चाहिए। -बरखा,नकुड़ ब्लॉक -समूह सखियां वेतन बढ़ोतरी के लिए लंबे समय से मांग कर रही हैं। कई बार धरने-प्रदर्शन किए गए हैं। प्रशासनिक अधिकारियों को ज्ञापन भी दिया है। -पूनम,गंगोह ब्लॉक -आठ सौ रुपये महीने का वेतन ऊंठ के मुंह में जीरे के समान है। जिस प्रकार के कार्य कराए जाते हैं। उसी प्रकार से वेतन नहीं मिलता है। वेतन बढ़ाने की आवश्यकता है। -सोनिया गंगोह ब्लॉक -समूह सखियों की समस्याओं के समाधान के लिए संबंधित अधिकारियों से शिकायत की है। लेकिन आज तक किसी समस्या का समाधान नहीं मिला है। -बबीता, सरसावा ब्लॉक -समूह सखी को जितना वेतन मिलता है उससे ज्यादा तो उसका खर्च हो जाता है। इतने कम वेतन में परिवार चलाना नामुनकिन है। वेतन बढ़ाया जाए। -उमा, सरसावा ब्लॉक -करीब साढे तीन साल से समूह से जुड़ी हूं। समूह सखियों का कार्य ग्रामीण समाज में महिला नेतृत्व और सशक्तिकरण की एक महत्वपूर्ण कड़ी है। समस्याओं का समाधान होना चाहिए। -प्रीति, नकुड़ ब्लॉक -समूह सखियां वेतन बढ़ोतरी के लिए लंबे समय से मांग कर रही हैं। कई बार धरने-प्रदर्शन किए गए हैं। प्रशासनिक अधिकारियों को ज्ञापन भी दिया गया है। लेकिन आज तक समाधान नहीं मिला है। -आरती, गंगोह ब्लॉक -करीब दो साल से समूह से जुड़ी हूं। समूह सखियों की कई मांगे हैं। जिसके लिए वो संघर्षरत हैं। वेतन, पहचान और सामाजिक सुरक्षा की मांगों पर गंभीरता से विचार करे। -सुनीता, गंगोह ब्लॉक -समूह सखियों को अक्सर ऐसे कार्यों में भी लगाया जाता है जो उनके मूल कार्यक्षेत्र से अलग होते हैं। इस संबंध में कई बार शिकायत की गई है। लेकिन समाधान नहीं हुआ है। -पूजा, गंगोह ब्लॉक -राजनीतिक रैली अथवा सरकारी कार्यक्रम में भीड़ जुटाने के लिए समूह सखियों पर दबाव बनाया जाता है। कई बार आने-जाने का खर्च भी अपनी जेब से देना पड़ता है। -प्रियंका, गंगोह ब्लॉक -वेतन सीधे उनके व्यक्तिगत खातों में न जाकर स्वयं सहायता समूहों के खाते में आता है। इससे पारदर्शिता और समय पर भुगतान को लेकर कई बार विवाद और विलंब होता है। -प्रियंका, गंगोह ब्लॉक -करीब दो साल से समूह से जुड़ी हूं। समूह सखियों का कार्य ग्रामीण समाज में महिला नेतृत्व और सशक्तिकरण की एक महत्वपूर्ण कड़ी है। हमारी उपेक्षा की जा रही है। -सोनिया, देवबंद, -समूह सखी को जितना वेतन मिलता है उससे ज्यादा तो उसका खर्च हो जाता है। इतने कम वेतन में परिवार चलाना नामुनकिन है। वेतन बढ़ाया जाए। -ममतेश, देवबंद कंटेंट-मनोज नरुला/फोटो-एच.शंकर शुक्ल

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