जिले की विलुप्त हो रहीं पांच नदियों का होगा जीर्णोद्धार
Sambhal News - संभल में 'एक जिला, पांच नदियां' थीम के तहत जल संरक्षण और पर्यावरण को प्रोत्साहित करने के लिए पुरानी नदियों का पुनरुद्धार किया जा रहा है। जिलाधिकारी डॉ. राजेंद्र पैंसिया ने बताया कि इस योजना के अंतर्गत...

संभल की प्राचीन पहचान 68 तीथ व 19 कूप के बाद अब प्रशासन ने एक नई पहल के तहत 'एक जिला, पांच नदियां' थीम पर कार्य प्रारंभ कर दिया है। जिले में जल संरक्षण, संवर्धन और पर्यावरण की दिशा में विलुप्त हो चुकी व अस्तित्वहीन हो रही नदियों को पुनर्जीवित करने की योजना को अमल में किया जा रहा है। जिलाधिकारी डॉ. राजेंद्र पैंसिया ने बुधवार को कलक्ट्रेट सभागार में आयोजित प्रेसवार्ता में इस महत्वाकांक्षी योजना की विस्तार से जानकारी दी। डीएम ने बताया कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के 'एक जिला, एक नदी' के आह्वान पर जिले में सोत, महावा, आरिल, वर्धमार और महिष्मति नदियों के पुनरुद्धार का कार्य युद्धस्तर पर चल रहा है।
इन नदियों की पुरानी पहचान को पुनः स्थापित करने के लिए अतिक्रमण हटाने, खुदाई, पौधारोपण व सौंदर्यीकरण जैसे कार्य किए जा रहे हैं। हालांकि सोत नदी को पुराने स्वरूप में लाने के लिए मनरेगा के तहत काम कराया जा चुका है। सभी नदियों को इनके पुराने स्वरूप व पहचान दिलाने के लिए मनरेगा योजना के तहत मानव दिवस सृजित कर खुदाई का काम किया जा रहा है। इसके अलावा सुंदर व स्वच्छ वातावरण के लिए इन नदियों के किनारे सहजन एवं बांस के पौधे भी लगवाए जाएंगे। डीएम ने बताया कि इसके अलावा वर्षा जल संरक्षण के लिए राजस्थान के जल पुरूष के रूप में पहचान हासिल करने वाले राजेंद्र सिंह के सुझाव पर जल संरक्षण के लिए मनरेगा के माध्यम से गौशालाओं समेत अन्य स्थानों पर ट्रेंच बनाने का काम होगा। सोत नदी बनी पुनरूत्थान की मिसाल सोत नदी संभल जिले की सबसे लंबी नदी है, जिसकी कुल लंबाई 112 किलोमीटर है। गंगा की सहायक इस नदी का अमरोहा से प्रवेश होता है और जिले के पांच ब्लॉकों के 71 गांवों से होकर बहती है। मनरेगा योजना के तहत इस नदी के पुनरुत्थान में 1.72 लाख मानव दिवस सृजित किए गए, जिससे स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिला। पर्यावरण को संतुलित रखने के लिए इसके किनारे 10246 बांस के पौधे रोपे गए और जल में 30,000 गैंबूसिया मछलियां छोड़ी गईं, जिससे मच्छरजनित बीमारियों को रोका जा सके। ब्लॉक रजपुरा व गुन्नौर से होते हुए बदायूं जाती है महावा नदी डीएम ने प्रेसवार्ता के दौरान बताया कि यह नदी पूर्व में संभल की जीवन रेखा रही है। महावा नदी की लंबाई जिले में 42.50 किलोमीटर है। यह वर्तमान में विलुप्त हो चुकी है। ब्लॉक रजपुरा के गांव सिरसा के निरियावली से शुरू होकर ब्लॉक गुन्नौर के गांव मझोला फतेहपुर से होते हुए ब्लॉक जुनावई के गांव पुसावली से निकलकर बदायूं में जाती है। यह जिले के 38 गांवों मे प्रवाह करती है। डीएम ने बताया कि 48043 मानव दिवस का सृजन कर करीब 11.90 किलोमीटर का जीर्णोंद्धार कार्य पूरा कर लिया गया है। शेष गांवों में काम प्रगति पर है। असमोली के गुमसानी से होता है आरिल नदी का उद्गम बहजोई। जिलाधिकारी ने अरिल नदी के पुनरुद्धार को लेकर बताया कि इसकी लंबाई जिले में 22.60 किलोमीटर की है और यह पूर्ण रूप से विलुप्त है। ब्लॉक असमोली के गांव गुमसानी से इसका उदगम होता है। इसके बाद गांव ठाक शहीद से बहकर जिला मुरादाबाद में प्रवेश करती है। इसके अलावा ब्लॉक बनियाखेड़ा के गांव अकरौली में भी बहती है। आरिल नदी 19 गांवों से होकर गुजरती है। इसका करीब 18.50 किलोमीटर का काम पूरा हो चुका है। शेष पर काम तेजी से कराया जा रहा है। जिसमें 2855 मानवदिवसो को सृजित कर लिया गया है। विलुप्त हो चुकी वर्धमार नदी की लंबाई है 14.10 किलोमीटर बहजोई। डीएम ने बताया कि वर्धमार नदी जो, वर्तमान में विलुप्त हो चुकी है। इसकी लंबाई जिले में 14.10 किलोमीटर है। यह नदी जिले के 11 ग्राम पंचायतों में प्रवाह करती है। इसके पुनरूत्थान को लेकर काम चल रहा है। करीब 906 मानव दिवसों का सृजन कर पुनः पुराने स्वरूप में लाने का काम किया जा रहा है। महिष्मति नदी का भी कराया जाएगा पुनरुत्थान बहजोई। डीएम डॉ. राजेंद्र पैंसिया ने बताया कि माहिष्मती नदी जो आज भैंस नदी के रूप में जानी जाती है। इस नदी को पुनर्जीवन प्रदान करने की को कैचमेंट एरिया में शामिल मणिकर्णिका तीर्थ के समीप खुदाई का कार्य प्रारंभ किया गया है। इसके साथ ही साथ इस प्राचीन एवं पवित्र नदी के बहाव क्षेत्र की अपस्ट्रीम एवं डाउनस्ट्रीम का सर्वे का भी काम भी आरंभ हुआ है। बहाव क्षेत्र में शामिल प्रमुख ग्रामों में हबीबपुर ,रसूलपुरसराय, तुरतीपुर ईल्ला, रुकनुदिनसराय, नरोत्तम सराय, बदायूं दरवाजा अंदर चुंगी, सुल्तानपुर बुजुर्ग बाहर चुंगी, सुल्तानपुर बुजुर्ग अंदर चुंगी, हल्लू सराय बाहर चुंगी, हसनपुर मुजबता, सिकंदर सराय, हैबतपुर एवं चंदायन है। जो लगभग 18 किलोमीटर है। सर्वे के दौरान नदी के उद्गम स्थल से आगे तुरतीपुर इल्ला में एक बड़ा तालाब नदी से लगा है। जिसे एक रमणीक तीर्थ के रूप में विकसित करने की योजना का कार्य चल रहा है। माहिष्मती नदी के पुनर्जीवन प्रदान करने को प्रसिद्ध पर्यावरण विज्ञानी, नदी विशेषज्ञ तथा नमामि गंगे के सलाहकार प्रोफेसर डॉक्टर वेंकटेश दत्त की टीम द्वारा नदी के अपस्ट्रीम से लेकर डाउनस्ट्रीम तक के क्षेत्र का नगर पालिका प्रशासन, तहसील प्रशासन के साथ स्थलीय सर्वे किया जा चुका है। प्रोफेसर दत्त के सर्वे में एक खास बात सामने आई की जब माहिष्मती नदी अपने वजूद में थी तो नगर क्षेत्र में जल भराव की समस्या नहीं होती थी। आज इसके बहाव क्षेत्रफल में तमाम अतिक्रमण कर लोगों के द्वारा दुकान एवं मकान निर्मित कर इसके बहाव क्षेत्र को बाधित कर दिया गया है। जिससे मामूली बरसात में जल भराव की समस्या बन जाती है। प्रधानमंत्री मोदी कर चुके हैं मन की बात में तारीफ बहजोई। जिला प्रशासन की ओर से जिले की सबसे बड़ी नदी सोत नदी के पुनरूत्थान व जीर्णोंद्धार का कार्य कराया गया था। कई गांवों से होकर गुजरने वाली सोत नदी का जीर्णोंद्धार होने के बाद जनवरी 2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कार्यक्रम मन की बात में इसका जिक्र करते हुए जिला प्रशासन की तारीफ भी की थी।
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