Goddess mother gave darshan after worshipping Alha and Udal here यहां आल्हा और ऊदल की पूजा से प्रसन्न देवी मां ने दिए थे दर्शन, Sitapur Hindi News - Hindustan
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यहां आल्हा और ऊदल की पूजा से प्रसन्न देवी मां ने दिए थे दर्शन

इलाके के गांव सील्हापुर में स्थित मां सिलहट देवी का प्राचीन मंदिर 12वीं विक्रमी शताब्दी का इतिहास समेटे है

Gyan Prakash हिन्दुस्तान, सीतापुरSat, 23 Nov 2024 11:42 AM
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यहां आल्हा और ऊदल की पूजा से प्रसन्न देवी मां ने दिए थे दर्शन

इलाके के गांव सील्हापुर में स्थित मां सिलहट देवी का प्राचीन मंदिर 12वीं विक्रमी शताब्दी का इतिहास समेटे है। यहां महोबा के सिपहसालार दो भाई आल्हा व ऊदल रुके थे और माता की आराधना की थी। प्रसन्न देवी ने दर्शन किए जिसके बाद यह स्थान सिद्ध पीठ माना गया।

आस्था का प्रतीक यह प्रसिद्ध स्थान बनाफरवंशी लड़ाकों का पवित्र-पूज्य स्थान रहा है। मंदिर खुलने पर मां की मूर्ति पूजित मिलती है। यहां वर्ष में दो बार भव्य मेला आयोजित होता है। तहसील मुख्यालय से करीब तीन कोस की पश्चिम-उत्तर की दिशा में सील्हापुर गांव है। गांव के बाहर मां सिलहट देवी का भव्य मंदिर बना है। महोबा के राजा परिमाल के खास सिपहसालार आल्हा और ऊदल दो भाई थे। इनका जन्म 12वीं विक्रमी शताब्दी हुआ था। यह दोनों भाई कर वसूली के लिए उत्तर भारत में नेपाल तक जाते थे। कहा जाता है कि एक बार दोनों भाई क्षेत्रीय राज्य बेरिहागढ़ में टैक्स वसूलने आए थे। बेरिहागढ़ के राजा ने टैक्स देने से मना किया। इस पर युद्ध की स्थिति बन गई। आल्हा देवीजी के अनन्य भक्त थे। वह सील्हापुर गांव के जंगल में ठहरे थे। उन्होंने वहां देवी मां का आवाहन किया। माताजी शिला के रूप में प्रकट हुईं और आल्हा को विजय का आशीर्वाद दिया। युद्ध में आल्हा की विजय हुई। वह टैक्स वसूलकर वापस जाने लगे तो देवीजी से साथ चलने का आग्रह किया, लेकिन देवीजी एक पेड़ में विराजमान हो गई।

पेड़ से निकली जलधारा

कुछ समय बाद लकड़हारे ने उसी पेड़ को काटने के लिए जैसे ही कुल्हाड़ी मारी तो पेड़ से जलधारा निकलने लगी। स्थानीय लोगों द्वारा पूजन-अर्चन करने पर जलधारा रुकी थी। इस दौरान पास में एक मूर्ति मिली। तब उसी स्थान पर मां सिलहट देवी एक छोटी सी मठिया बनाई गई। यह मंदिर लोगों के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है।

नवरात्रों में लगता है भव्य मेला

चैत्र तथा शारदीय नवरात्र में यहां पर भव्य मेला लगता है। मान्यता है कि सच्चे मन से मांगी गई हर मनोकामना सिलहट माता पूरी करती हैं। 18वीं सदी में यहां भक्तों ने छोटी सी मठिया के एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया। मंदिर में प्राचीन मूर्ति को स्थापित करने के लिए काफी जतन किए गए लेकिन मूर्ति अपने स्थान से न हटी। तब से भक्त उसी स्थान पर पूजन अर्चन करते हैं।

बोले पुजारी

मंदिर के पुजारी उमाशंकर दीक्षित बताते हैं कि मंदिर के कपाट खुलने पर मां की मूर्ति पूजित मिलती है। बताया जाता है कि ऐसा सैकड़ों वर्षो से है। मां के आशीर्वाद से मनौती पूर्ण होने पर श्रद्धालु अपने बच्चों का अन्नप्राशन व मुंडन संस्कार भी कराते हैं।

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