बोले सीतापुर-कुछ बेहतर तो कुछ का नहीं खुलता ताला
Sitapur News - सीतापुर में 1464 पंचायत भवन हैं, जिनमें से कुछ अपनी कार्यशैली के कारण मिसाल बने हुए हैं, जबकि कई भवन बंद रहते हैं और ग्रामीणों को समस्याओं के लिए ब्लॉक मुख्यालय जाना पड़ता है। उरदौली पंचायत भवन का...

सीतापुर। जिले में पंचायत भवनों की बात करें तो उनकी संख्या 1464 है। इन भवनों में से जिले में कुछ तो ऐसे हैं जो कि अपनी कार्यशैली के चलते जिले में अपनी मिसाल कायम किए हुए हैं। इनका रोज समय से ताला खुलता है और ग्रामीणों को जन सुविधाओं का लाभ मिलता है। लेकिन इसके इतर जिले के कुछ पंचायत भवन ऐसे भी हैं कि जो कि सरकार की मंशा पर पानी फेरने का काम कर रहे हैं। इनका ताला कब खुलेगा और जिम्मेदार कब आएंगे इसका कोई पता ठिकाना नहीं है। मजबूरी वश ग्रामीण जब भी इन पंचाय भवनों में अपनी समस्याओं को लेकर जाते हैं तो उनको बैरंग वापस लौटना पड़ता है।
कहीं ताला लगा मिलता है तो किसी पंचायत भवन में जिम्मेदार नहीं मिलते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि कुछ पंचायत भवन तो ऐसे हैं कि वह कब खुलते और कब बंद हो जाते हैं। इसका कोई पता ठिकाना ही नहीं है। कुछ भवनों को लेकर तो ग्रामीणों का कहना है कि यहां के जिम्मेदार अपने निजी आफिस बनाकर दूर स्थानों पर काम करते हैं। जर्जर भवन में मिला ताला ग्राम पंचायत राजा करनाई की बात करें तो यह पंचायत भवन जर्जर हालत में पहुंच गया है। यहां पर ग्रामीणों का कहना है पंचायत भवन में कभी भी अधिकारी नहीं पहुंचते हैं, जिससे ग्राम वासियों को अपनी समस्याओं को लेकर छह किलोमीटर ब्लॉक मुख्यालय जाना पड़ता है। ग्रामीणों ने बताया जन्म प्रमाण पत्र, परिवार रजिस्टर और नकल सहित अन्य तमाम कामों को लेकर ब्लॉक तक की दौड़ उनको भारी पड़ती है। पंचायत भवन की बात करें तो वह जर्जर हालत में है। बाहर की बाउंड्री वॉल भी टूटी है। हाल के खिड़की पल्ला दरवाजा भी टूटे हुए हैं। पंचायत भवन में बने शौचालय अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहे हैं। पड़ताल के दौरान पंचायत भवन बंद पड़ा मिला। वहां पर कोई भी जिम्मेदार मौजूद नहीं था। ग्रामवासी बताते हैं कभी-कभी यहां पर पंचायत सहायक ऑपरेटर आकर तो बैठते हैं। बाकी यहां पर कोई भी जिम्मेदार अधिकारी नहीं आते हैं। पंचायत भवन परिसर में झाड़ियां पंचायत भवन अंगराधी परिसर में झाड़ियां उगी मिलीं। बाहर से अंदर जाने का रास्ता तक सुगम नहीं था। अंदर जाने पर कई दरवाजों की सिटकनी टूटी पड़ी मिलीं। इसके अलावा कोई भी जिम्मेदार अधिकारी परिसर में नहीं मिला। आसपास के ग्रामीणों ने बताया कि यह पंचायत भवन अंतिम बार कब खुला था इसका कोई अनुमान नहीं है। लेकिन इतना जरूर है कि पेंटिंग आदि समय पर हो जाती है, जिससे भवन सुसज्जित नजर आता है। काम होने की बात पर बोले कि जब पंचायत भवन में कोई आता ही नहीं है तो काम की बात तो मत करिए। पंचायत भवन की कार्यशैली को लेकर ग्रामीण काफी गुस्से में नजर आए। बताया कि उनको अपने कामों के लिए ब्लॉक और तहसील के चक्कर लगाने पड़ते हैं। ग्रामीणों की मांग थी कि अगर कभी जिले के बड़े अधिकारी इस भवन का दौरा कर लें तो शायद स्थिति में कुछ सुधार हो सकता है। दीवारें रंगी, कमरों में ताला विकास खंड पिसावां का पंचायत भवन मूड़ाकलां में दीवारें और भवन तो अपनी रंगीन पुताई से सभी की अपनी ओर आकर्षित कर रहा था लेकिन कमरों में ताला लगा हुआ था। काफी देर तक इंतजार करने के बाद भी मौके पर कोई जिम्मेदार नहीं मिला। ग्रामीणों से बातचीत करने पर पता चला कि इस भवन का ताला कब खुलता और कब बंद हो जाता इसका पता नहीं चलता है। ग्रामीणों का कहना था कि यह भवन केवल हमारे गांव का एक सुंदर भवन है। इसके अलावा इस भवन ने कितने ग्रामीणों का उद्धार किया यह किसी को पता नहीं है। ग्रामीणों ने कहा कि यदि यह भवन खुलने लगे तो उनको दूर का चक्कर लगाने से आराम मिल जाएगी। जिले के लिए मिसाल बना उरदौली पंचायत भवन विकास खंड महोली के उरदौली गांव में बना पंचायत भवन जिले के लिए मिसाल साबित हो रहा है। जिले की अन्य ग्राम सभाओं से यदि इस ग्राम सभा की तुलना की जाए तो यहां पर व्यवस्थाएं बेहतर नजर आ रही हैं। इस पंचायत भवन में ग्राम से सभा से जुड़े कई कार्यों को संपन्न किया जाता है। पंचायत भवन की देख रेख का जिम्मा पंचायत मित्र के कंधों पर है। पंचायत भवन में बने जन सुविधा केंद्र से क्षेत्र के लोगों को इंटरनेट के जुड़े कार्यों के लिए इधर से उधर की दौड़ नहीं लगानी पड़ती है। लोगों को पंचायत भवन में ही सभी सुविधाएं आसानी से मिल जाती हैं। यह पंचायत भवन पूरी तरह से सीसीटीवी कैमरों से लैस है। ग्राम सभा में होने वाली अधिकांश बैठकों के इस पंचायत भवन में ही संपन्न होती है। यह था उद्देश्य ग्राम पंचायतों में पंचायत भवनों के निर्माण के पीछे मुख्य उद्देश्य था कि इन्हें जनसमस्याओं के समाधान के केंद्र बनाया जाए। साथ ही सम्बंधित कर्मचारियों को निर्देश थे कि प्रत्येक कार्य दिवस पर पंचायत भवन में अपनी उपस्थिति सुनिश्चित करें और समयबद्ध तरीके से शिकायतों का निस्तारण करने की अहम जिम्मेदारी दी गई थी। पंचायत भवन का सबसे प्राथमिक दायित्व ग्राम पंचायत की मासिक और विशेष बैठकों का आयोजन करना है। यह वह स्थान है जहां ग्राम प्रधान, ग्राम पंचायत सदस्य, ग्राम सचिव और अन्य अधिकारी ग्रामीणों के साथ मिलकर विकास कार्यों की योजना बनाते हैं, बजट पर चर्चा करते हैं और समस्याओं का समाधान खोजते हैं। नियमित बैठकों से पारदर्शिता बढ़ती है और ग्रामीण सीधे अपनी बात रख सकते हैं। यह भवन ग्रामीणों के लिए विभिन्न सरकारी योजनाओं, नीतियों, कार्यक्रमों और सूचनाओं का एक महत्वपूर्ण स्रोत होते हैं। यहां नोटिस बोर्ड पर महत्वपूर्ण घोषणाएं, ग्रामसभा के प्रस्ताव और विभिन्न योजनाओं के बारे में जानकारी प्रदर्शित की जानी चाहिए। सही मायनों में पंचायत भवनों की स्थापना के पीछे मुख्य उद्देश्य जन्म प्रमाण पत्र बनवाने से लेकर, सरकारी योजनाओं की जानकारी लेने , या फिर किसी शिकायत को दर्ज कराने जैसे छोटे-छोटे कामों के लिए भी ब्लॉक मुख्यालय की के चक्कर ना लगाने पड़ें। कुछ वरदान तो कुछ का रवैया उदासीन जिले में तमाम पंचायत भवन आत ग्रामीणों के वरदान साबित हो रहे हैं। काफी हद तक ये पंचायत भवन ग्रामीणों को घर में ही उनकी तमाम समस्याओं का करने में सफल हैं। वहीं ऐसे पंचायत भवनों की संख्या कम नहीं है, जो खाली पड़े रहते हैं। जिम्मेदारी कर्मचारियों की उदासीनता के चलते इन गांवों के ग्रामीणों को आज भी अपने छोटे-छोटे कामों के लिए ब्लॉक मुख्यालय के चककर काटने पड़ते हैं। यही नहीं कर्मचारियों के गैर जिम्मेदाराना रवैये की वजह से ग्रामीणों को सरकार की ओर से चलाई जा रही तमाम योजनाओं की जानकारी नहीं हो पाती है। ग्रामीणों का कहना हैं कि पंचायत भवनों की इस निष्क्रियता के लिए जवाबदेही तय होनी चाहिए। सबसे पहले, ग्राम प्रधान और ग्राम सचिव को अपने दायित्वों को गंभीरता से लेना होगा और नियमित रूप से पंचायत भवन में उपस्थित रहना होगा। दूसरा, ब्लॉक और जिला स्तर के अधिकारियों को इन भवनों की निगरानी करनी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे अपने उद्देश्य की पूर्ति कर रहे हैं। जब तक ये पंचायत भवन केवल ढांचा बनकर खड़े रहेंगे और 'जिम्मेदार' अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ते रहेंगे, तब तक ग्रामीण अपनी छोटी-छोटी समस्याओं के लिए ब्लॉक मुख्यालयों के चक्कर काटते रहेंगे और सुशासन का सपना अधूरा ही रहेगा। भवनों को फिर से सक्रिय किया जाए और उन्हें ग्रामीण सशक्तिकरण का सच्चा केंद्र बनाया जाए। शिकायतें ग्राम पंचायत भवनों में नियमित रूप से ग्राम सभा की बैठकें आयोजित नहीं होती हैं। कुछ पंचायत भवनों में समस्या पंजीकरण डेस्क नहीं है। पंचायत भवन को एक सूचना केंद्र के रूप में विकसित नहीं हो सके हैं। ग्राम पंचायत भवन डिजिटल रूप से सशक्त नहीं हैं। अधिकतर पंचायत भवनों में पुस्तकालय या रीडिंग रूम नहीं है। महिलाओं के लिए कौशल विकास प्रशिक्षण और जागरूकता कार्यक्रम आयोजित नहीं किए जाते हैं। सुझाव पंचायत भवनों का अधिकारियों की ओर से औचक निरीक्षण हो। सीसीटीवी कैमरों से लैस किए जाएं और मुख्यालय से उनकी निगरानी हो। सुरक्षा के इंतजाम के लिए गार्ड आदि की तैनाती की जाए। जिम्मेदारों के फोन नंबरों की सूची चस्पा की जाए, जिससे ग्रामीण फोन कर सकें। पंचायत भवनों को वाई फाई से लैस किया जाए, ताकि इंटरनेट ठीक से चले। पंचायत भवनों में होने वाले कामों की सूची बोर्ड पर लगाई जाए। प्रस्तुति - अविनाश दीक्षित, अतुल त्रिवेदी, राहुल मिश्रा, धर्मेंद्र नाग
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