Parental Exploitation in Education Rising Costs and Demand for Regulation बोले उन्नाव : स्कूल शिक्षा को न समझें कारोबार, महंगी फीस भरने में हम हैं लाचार, Unnao Hindi News - Hindustan
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बोले उन्नाव : स्कूल शिक्षा को न समझें कारोबार, महंगी फीस भरने में हम हैं लाचार

Unnao News - बदलते समय में स्कूल शिक्षा के मंदिर से व्यापार बन गए हैं। अभिभावक महंगी फीस और अतिरिक्त खर्चों के कारण बच्चों को अच्छे स्कूल में नहीं पढ़ा पा रहे हैं। सरकारी स्कूलों में शिक्षा निशुल्क है, लेकिन वहां...

Newswrap हिन्दुस्तान, उन्नावThu, 10 April 2025 03:13 AM
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बोले उन्नाव : स्कूल शिक्षा को न समझें कारोबार, महंगी फीस भरने में हम हैं लाचार

बदलते दौर में शिक्षा के मंदिर कहे जाने वाले अधिकांश स्कूल अभिभावकों के शोषण का जरिया बन गए हैं। तमाम कवायद के बाद भी अभिभावकों का आर्थिक और मानसिक शोषण खत्म नहीं हो रहा है। फिर भी हर मां-बाप अपना पेट काटकर बच्चों को पढ़ाने की प्राथमिकता दे रहे हैं। लेकिन, महंगाई के इस दौर में कई परिवार ऐसे हैं जो सब कुछ करने के बाद भी अपने मनचाहे स्कूल में बच्चों को शिक्षित नहीं कर पा रहे हैं। वजह है कि लोगों की आय से ज्यादा शिक्षा का महंगा होना। अब स्कूल संचालकों ने इसे व्यवसाय बना दिया है। इसके कारण महंगी पढ़ाई पढ़कर कुछ बनने के अरमान हर परिवार के बच्चों के सामने आसान नहीं हो रहे हैं। आपके अपने अखबार ‘हिन्दुस्तान से अभिभावकों ने व्यवसाय बनती शिक्षा पर चिंता जताई है। सभी ने एकसुर में सरकार से इस पर नियंत्रण कसने की गुजारिश की है।

जिले में यूपी बोर्ड के बेसिक शिक्षा विभाग से संचालित 2709 परिषदीय, 34 एडेड, माध्यमिक के 37 राजकीय हाईस्कूल-इंटर और 58 एडेड स्कूल चल रहे हैं, जबकि 300 से अधिक वित्तविहीन स्कूल हैं। वहीं, सीआईएससीई के चार और सीबीएसई के 26 स्कूल संचालित हैं। सरकारी स्कूलों में निशुल्क शिक्षा की बात छोड़ दी जाए तो दूसरे सभी स्कूलों में पढ़ाई का स्तर काफी महंगा है या फिर कहें कि 20 से 25 हजार रुपये प्रति माह कमाने वालों के दायरे से ये स्कूल बाहर हैं। क्योंकि, इन स्कूलों की फीस इतनी ज्यादा है कि हर अभिभावक इसमें पढ़ाने के लिए सक्षम नहीं है। ऐसे में अच्छे और पसंदीदा स्कूल में पढ़ाने की उम्मीद इनकी पूरी नहीं हो पा रही है।

अभिभावक गुड्डी विमल का कहना है कि निजी स्कूल आज निजी प्राइवेट सेक्टर कंपनी की तरह काम कर रहे हैं। इसमें सिर्फ अभिभावकों को शोषण का जरिया समझा जा रहा है। मोटी फीस लेने के बाद भी अलग-अलग कमाने के जरिये बनाए हुए हैं। कॉपी, किताबें, स्टेशनरी, यूनिफार्म आदि में बदलाव करके अभिभावकों के ऊपर मोटा बोझ डाला जाता है। बची खुची कसर स्कूल मेंटीनेंस, कंप्यूटर लैब, सांस्कृतिक गतिविधियों से पूरा कर लेते हैं। अभिभावक अखिल मिश्रा ने कहा कि स्कूल में मनमाफिक ढंग से हर साल फीस बढ़ा दी जाती है। पाठ्य पुस्तकें भी बदल दी जाती हैं। इसके लिए समिति का गठन किया जाए। इसमें अभिभावक, चार्टेड अकाउंटेंट और अधिकारी आदि को जोड़ा जाए। इनकी बैठक और चर्चा के बाद ही इसमें बदलाव हों। मनमाने ढंग से स्कूलों का फैसला लेना गलत है। अभिभावक संघ के अध्यक्ष सुनीत तिवारी का कहना है कि सबसे बड़ी समस्या यह है कि अभिभावकों की शिकायतों को हमेशा ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है। यदि अधिकारी निस्तारण करना चाहें तो स्कूल वाले मनमानी नहीं कर पाएंगे। अधिकारियों को इस ओर ध्यान देना चाहिए।

खेल जैसी गतिविधियां न के बराबर

अभिभावक विवेक अवस्थी का कहना है कि स्कूलों में बच्चों को सिर्फ रट्टू तोता बनाया जा रहा है। रोज भारी भरकम होमवर्क दिया जाता है। बाद में उसको सही से चेक भी नहीं किया जाता है। बच्चे सिर्फ लिखते ही रहते हैं। पढ़ते हुए उन्हें कभी देखा ही नहीं जाता है। तमाम स्कूल में बच्चों की गतिविधियों के पैसे तो वसूले जाते हैं, लेकिन खेल जैसी गतिविधियां कभी देखने को नहीं मिलती हैं। इसके कारण बच्चे शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत नहीं बन पा रहे हैं। स्कूलों पर विशेष ध्यान देना चाहिए।

इंटर पास वाले छात्रों को बना रहे शिक्षक

तमाम प्राइवेट स्कूल ऐसे हैं, जहां पर मानक के अनुरूप बच्चों को पढ़ाने के लिए शिक्षकों की तैनाती नहीं है। इंटर और ग्रेजुएशन पास करने वाले छात्रों को शिक्षक बना देते हैं। न तो उन्हें पढ़ाने का ढंग पता है और न ही ज्यादा ज्ञान है। अभिभावक राहुल का कहना है कि एक-दो नहीं बल्कि दर्जनों की संख्या में ऐसे स्कूल हैं, जो बड़े-बड़े स्कूल और योग्य शिक्षकों के होने का दावा करके फीस तो मोटी वसूल रहे हैं, लेकिन पढ़ाई के नाम पर सारी कवायद नाकाम है। ऐसे शिक्षक जिन्हें खुद ही नॉलेज नहीं है, वह बच्चों को क्या पढ़ाएंगे। इस पर विचार करना चाहिए। इसलिए योग्य शिक्षक रखे जाएं। शिक्षा अधिकारी स्कूलों की जांच भी करवाएं।

सिर्फ व्यवसाय तक सीमित रह गई शिक्षा

प्राइवेट स्कूल में सिर्फ व्यवसाय तक शिक्षा सीमित रह गई है। यहां अच्छी पढ़ाई से ज्यादा अभिभावकों का शोषण करने पर मंथन किया जाता है। किताबों की कीमत इतनी अधिक होती है कि देखकर हैरानी होती है। कॉपी पर स्कूल का मोनोग्राम लगते ही कीमत आसमान छूने लगती है। ठीक यही हाल ड्रेस का भी है। मोनोग्राम के कारण उसकी भी कीमत बढ़ जाती है।

सरकारी स्कूल में शिक्षा निशुल्क, लेकिन पढ़ाई पर सवाल : अभिभावक मोनू तिवारी का कहना है कि सरकारी स्कूल में शिक्षा निशुल्क है। आज स्कूल मॉडल बन चुके हैं। डिजिटल कक्षाएं हैं और शिक्षक भी पढ़े-लिखे हैं, लेकिन वहां की पढ़ाई पर आज भी सवाल खड़े हो रहे हैं। इसलिए इन स्कूलों को बढ़ावा देना है तो शिक्षक, अफसर, नेता सबको अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए आगे आना होगा

सुझाव

1. सरकारी शैक्षिक संस्थानों को बढ़ावा दिया जाए।

2. निजी विद्यालयों के शिक्षकों की डिग्री सार्वजनिक की जाए।

3. अवैध रूप से संचालित स्कूलों पर रोक लगाने का काम हो।

4. प्रतिवर्ष लिए जाने वाले प्रवेश शुल्क पर रोक लगाई जाए।

5. कॉपी और बुक की खरीद को सार्वजनिक किया जाए।

6. निजी विद्यालयों की फीस का मानक शासन द्वारा तय किया जाए।

7. निजी विद्यालयों की 25 फीसदी सीटों पर आरटीई के तहत प्रवेश दिए जाएं।

8. पांच वर्ष से पहले यूनिफॉर्म में बदलाव न किया जाए।

शिकायतें

1. एक ही विद्यालय में प्रवेश पर दोबारा शुल्क लिया जाता है।

2. कमीशनबाजी से दिनोंदिन शिक्षा बेहद महंगी होती जा रही है।

3. सरकारी संस्थानों में सकारात्मक सुचार नहीं हो रहा है।

4. बेहतर शिक्षा के लिए निजी विद्यालयों में शोषण होता है।

5. पूरे सालभर एक्सट्रा एक्टिविटी के नाम पर धन वसूलते हैं।

6. बसों में क्षमता से अधिक छात्र-छात्राएं बैठाए जाते हैं। इस कारण हादसे हो जाते हैं।

7. हर वर्ष वार्षिक कार्यक्रम के नाम पर मोटी रकम वसूली जाती है।

8. तमाम स्कूल हर वर्ष यूनिफॉर्म में बदलाव कर देते हैं।

बोले अभिभावक

निजी स्कूल संचालक कमीशनबाजी के चलते तय दुकानों बुक शॉप से पुस्तकें-ड्रेस लेने का दबाव बनाते हैं। -अंकुश सोनी

स्कूल दिन के अनुसार मनमानी तरीके से ड्रेस का निर्धारण करते हैं। इस पर रोक लगनी चाहिए।

- सोनू वर्मा

हर साल सभी कक्षाओं की पुस्तकों का प्रकाशन बदल दिया जाता है। इस कारण नई पुस्तकें खरीदनी पड़ती हैं।

- अनुराग

आरटीई के तहत होने वाले प्रवेश का शुल्क सरकार वहन करती है। फिर भी प्रवेश देने में मनमानी करते हैं। - मनोज गुप्ता

स्कूलों के छात्रावासों में भी अभिभावक से मनमाना शुल्क वसूल किया जाता है। इस पर रोक लगाए जाए। - सुधीर

बोले जिम्मेदार

स्कूलों की अपने स्तर से कराएंगे जांच

विद्यालयों में अधिक फीस और पाठ्यपुस्तक, ड्रेस वितरण को लेकर अभिभावक स्तर से शिकायत अब तक नहीं आई है। फिर भी हम अपने स्तर से इसकी जांच कराएंगे। फीस नियामक समिति बनाने पर भी उच्चाधिकारियों से मार्गदर्शन लिया जाएगा। स्कूलों से संबंधित अन्य शिकायतें अभिभावक कर सकते हैं। नाम गोपनीय रखा जाएगा। - एसपी सिंह, डीआईओएस उन्नाव

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