UP Prayagraj Mahakumbh 2025 Shrimahant Sadhvi Pooja Puri following sannyas tradition of three generations महाकुंभ 2025: तीन पीढ़ियों की संन्यास परंपरा निभा रहीं श्रीमहंत, 2013 में बनीं साध्वी, Uttar-pradesh Hindi News - Hindustan
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महाकुंभ 2025: तीन पीढ़ियों की संन्यास परंपरा निभा रहीं श्रीमहंत, 2013 में बनीं साध्वी

  • श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा की श्रीमहंत पूजा पुरी को संन्यास परंपरा विरासत में मिली है। इनके माता-पिता, दादा-दादी और नाना-नानी, सभी संन्यासी रहे हालांकि अब इनमें से दुनिया में कोई नहीं है लेकिन इनके के पिता नारायण पुरी ने जन्म लेते ही इनका नामकरण करते हुए पूजा पुरी नाम रख दिया था।

Srishti Kunj हिन्दुस्तान, ध्रुव शंकर तिवारी, प्रयागराजTue, 7 Jan 2025 10:03 AM
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महाकुंभ 2025: तीन पीढ़ियों की संन्यास परंपरा निभा रहीं श्रीमहंत, 2013 में बनीं साध्वी

श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा की श्रीमहंत पूजा पुरी को संन्यास परंपरा विरासत में मिली है। इनके माता-पिता, दादा-दादी और नाना-नानी, सभी संन्यासी रहे हालांकि अब इनमें से दुनिया में कोई नहीं है लेकिन इनके के पिता नारायण पुरी ने जन्म लेते ही इनका नामकरण करते हुए पूजा पुरी नाम रख दिया था। पूजा पहली बार संगम की रेती पर वर्ष 2007 में आयोजित कुम्भ में अपने पिता के साथ जूना अखाड़े की छावनी में पहुंची थीं। पिता के साथ रहकर अध्यात्म की दुनिया में ऐसी रम गई कि वर्ष 2013 के कुम्भ में इनका नाम सबसे छोटी उम्र की साध्वी के रूप में दर्ज हो गया।

लखनऊ की रहने वाली श्रीमहंत पूजा पुरी जूना अखाड़ा की श्रीमहंत हैं। वह अब तक प्रयागराज में वर्ष 2007 के अर्द्धकुम्भ, 2013 के कुम्भ, 2019 के अर्द्धकुम्भ में अपने अखाड़े में आ चुकी हैं। पांच दिन पहले एक बार फिर महाकुम्भ में पहुंची हैं। श्रीमहंत पूजा बताती हैं कि 2013 के कुम्भ में साध्वी की उपाधि मिलने के बाद हमारे मुख्यालय काशी की ओर श्रीमहंत बनाने का प्रस्ताव दिया गया। अखाड़ों के अंतिम शाही स्नान पर्व वसंत पंचमी के बाद मेरे साथ बीस माई काशी गई थीं। हम सब वहां महाशिवरात्रि तक रुके थे।

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वहीं पर गुरु महंत देवेंद्र पुरी की अगुवाई में श्रीमहंत की उपाधि दी गई। तब से गुरु का सानिध्य प्राप्त होता आ रहा है। उन्होंने बताया कि जब परिवार में संन्यास की परंपरा का निर्वहन पीढ़ियों से चला आ रहा था तो ऐसे में संन्यास लेने के निर्णय का कोई सवाल ही नहीं उठा। ब्रह्मचर्य का पालन करना हो या महिला संन्यासी की तरह जीवन जीना हो, यह सब परिवार में बचपन से ही सीखना शुरू कर दिया था।

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