धर्म और ज्योतिष का आपस में गहरा संबंध
Varanasi News - वाराणसी में ज्योतिष ज्ञान शिविर के 15 दिन पूरे हुए। आचार्य संजय उपाध्याय ने बताया कि ज्योतिष शास्त्र वेदों का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसका उपयोग मनुष्य के जीवन और प्राकृतिक घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने...
वाराणसी, मुख्य संवाददाता। ज्योतिष शास्त्र वेदों का महत्वपूर्ण अंग है। इसे वेदांग ज्योतिष भी कहा गया है। ज्योतिष शास्त्र का उपयोग करके मनुष्य के जीवन और प्राकृतिक घटनाओं का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। वेदांग ज्योतिष में ग्रहों, नक्षत्रों, राशियों और उनके प्रभावों का अध्ययन किया जाता है। धर्म और ज्योतिष का एक-दूसरे से गहरा संबंध है। उक्त बातें रविवार को दशश्वमेध स्थित शास्त्रार्थ महाविद्यालय में चल रहे ज्योतिष ज्ञान शिविर के 15 दिनी पूरे होने पर शिविर संचालक ज्योतिर्विद आचार्य संजय उपाध्याय ने कहीं। उन्होंने कहा कि ज्योतिषीय गणना का प्रयोग यज्ञों के लिए शुभ समय निर्धारित करने में भी किया जाता है इसलिए इसे वेद का एक महत्वपूर्ण अंग माना गया है।
ऋग्वेद में नक्षत्रों की स्थिति और सूर्य के आकर्षण बल का वर्णन मिलता है। अथर्ववेद में नक्षत्रों के बारे में जानकारी दी गई है। यजुर्वेद में भी ज्योतिष संबंधी जानकारी है। आचार्य संजय ने कहा कि ज्योतिष और धर्म दोनों ही मानवीय अनुभव के महत्वपूर्ण पहलू हैं। दोनों के बीच में एक जटिल संबंध है। यह कई धर्मों के अनुष्ठानों और मान्यताओं का अभिन्न अंग रहा है। धर्म ज्योतिष को विभिन्न तरीकों से उपयोग करता है। जैसे भविष्यवाणियां और धार्मिक शिक्षा आदि। शिविर संयोजक संस्था के प्राचार्य डॉ. पवन कुमार शुक्ल ने कहा कि अब तक पंचांग, हस्तरेखा, कुण्डली निर्माण से संबंधित जानकारियां सिखाई जा चुकी हैं। अब भाल अर्थात माथे की रेखाओं का समझाया जा रहा है। इसमें भी कभी-कभी शोध की दृष्टि से कुछ न कुछ नए तथ्य सामने आ रहा हैं जो सीखने और सिखाने वाले के लिए महत्वपूर्ण साबित हो रहे हैं। भाल रेखा के माध्यम से कुण्डली निर्माण के विधान की जानकारी भी हुई है।
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