Impact of Trump Tariff on Varanasi Weavers and Textile Industry बोले काशी- यूरोप-अफ्रीका पर करें फोकस, ट्रंप हो जाएंगे बेबस, Varanasi Hindi News - Hindustan
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बोले काशी- यूरोप-अफ्रीका पर करें फोकस, ट्रंप हो जाएंगे बेबस

Varanasi News - वाराणसी में ट्रंप टैरिफ का असर बुनकरों पर पड़ने वाला है। हालांकि, बुनकरों का मानना है कि अगर निर्यात नीति अफ्रीका और यूरोप पर केंद्रित की जाए, तो संकट को टाला जा सकता है। बनारसी वस्त्रोद्योग की...

Newswrap हिन्दुस्तान, वाराणसीTue, 8 April 2025 08:28 PM
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बोले काशी- यूरोप-अफ्रीका पर करें फोकस, ट्रंप हो जाएंगे बेबस

वाराणसी। ट्रंप टैरिफ से बनारस समेत पूर्वांचल की सबसे बड़ी कॉटेज इंडस्ट्री की रीढ़ यानी वीवर्स में भी हलचल है। वे सामान्य बुनकर हों या मास्टर वीवर, बड़ी सधी नजरों से हालात पर नजर गड़ाए हुए हैं। यह जानते हुए भी कि देर-सबेर 26 फीसदी अमेरिकी टैरिफ का असर बनारस पर पड़ना ही है, वे घबराहट में नहीं हैं। उनका कहना है कि टेक्स्टाइल इंडस्ट्री की काबिलियत समझते हुए इसकी कूबत जगा दी जाए और, निर्यात नीति का फोकस अफ्रीका और यूरोप पर हो जाए तो हाय-हाय की नौबत नहीं आएगी। बनारसी बुनकरों के हुनर का कमाल है कि बनारसी वस्त्रोद्योग की दुनिया के बाजारों में मजबूत मौजूदगी दिखती है। उनका दिमाग और हुनर है जिनकी बदौलत सूरत, बेंगलुरु आदि महानगरों में कपड़ा इंडस्ट्री के सितारे बुलंद हैं। वहां 90 फीसदी बनारसी बुनकर ही साड़ी-कपड़ों की बिनकारी का ताना-बाना तैयार करते हैं। इस काबिलियत की मुरीद रिलायंस, टाटा और बिड़ला समेत बड़ी कंपनियां कपड़े तैयार करवाने में बनारस को तरजीह देती हैं और, टेक्स्टाइल इंडस्ट्री कृषि के बाद रोजगार देने वाला दूसरा सबसे बड़ा क्षेत्र बनाा हुआ है। पीलीकोठी (दुल्ली गड़ही) निवासी नेशनल एवार्डी मास्टर वीवर हाजी हसीन मोहम्मद की गद्दी पर जुटे हुनरमंदों ने ‘हिन्दुस्तान से ट्रंप टैरिफ की घोषणा के बाद बने माहौल और भविष्य के हालात पर चर्चा की। हाजी हसीन के साथ निफ्ट के ट्रेनर रहे मुख्तार अंसारी ने कहा कि अमेरिका के लगाए टैरिफ का भारतीय या बनारसी वस्त्रोद्योग पर असर पड़ना तय है। भारतीय माल वहां के बाजार में महंगे हो जाएंगे। फौरी असर के रूप में, जैसा कि सूचनाएं मिल रही हैं, आर्डर कैंसिल होने शुरू हो गए हैं। यह सब जब बढ़ेगा तब जाहिर है, बनारस, मुबारकपुर और मऊ के भी लाखों बुनकरों के लूम-पॉवरलूमों की रफ्तार मंद पड़ जाएगी। हो सकता है, बहुतेरे बंदी के कगार पर पहुंच जाएं। फिर मंदी का लंबा दौर चल पड़े। ‘मगर, मुख्तार बोले,-‘बनारसी या भारत में कहीं के बुनकर हों, उनमें इस आफत से निपटने की पूरी कूबत है। आप (सरकार) उसे जगाएं तो। जगाने का मतलब यह कि ऐसी प्रोत्साहन नीति बने जिसमें एक्सपोर्टर, ट्रेडर और वीवर की खातिर सहूलियत, सुविधाएं हों। उन्होंने जोड़ा-‘सिर्फ पॉलिसी बना देने से काम नहीं चलेगा, उसे क्रियान्वित करने वाली एजेंसी ईमानदार हो। नेक इरादों से सहूलियतों को बुनकरों तक पहुंचाने की गारंटी भी ले।

चर्चा और कयासबाजी का दौर

नसीम मोहम्मद ने बताया कि फिलहाल बनारस शहर और लोहता में ट्रंप टैरिफ की चर्चाएं चल पड़ी हैं। कयासबाजी तो कहीं मंदी के बाबत आशंकाएं भी जताई जा रही हैं। उन्होंने कहा, असल असर आने में अभी वक्त लगेगा। वैसे भी अमेरिकी सरकार ने भारत को सितंबर-अक्तूबर तक मौका दिया है। नसीम के मुताबिक, शहर एवं लोहता मिलाकर तीन लाख से ऊपर पावरलूम जबकि हैंडलूम या हथकरघे 40 हजार के आसपास हैं। वहीं, 10 से 12 हजार गद्दीदार हैं।

सूरत की मार से बनारस बेजार

स्टेट अवार्डी शमीम मोहम्मद, अनीसुर्रहमान ने नसीम की बात से रजामंदी जताई कि बनारस को पहले सूरत की मार से बचाने की जरूरत है। इन मॉस्टर वीवरों के मुताबिक, बनारस में जो साड़ी तैयार होकर मार्केट में 600 या 700 रुपये में आती है, सूरत उसी वैराइटी की साड़ी बनारस में 300 रुपये में बेच रहा है। वसीम मोहम्मद ने जोड़ा कि आजमगढ़ के खैराबाद (मुबारकपुर) में भी 300 रुपये में बाकायदा बीनी हुई साड़ी मिल रही है। इन वीवरों ने कहा कि सरकारी पॉलिसी के चलते यह स्थिति है। इसमें भी चिंता की बड़ी बात यह कि सूरत की साड़ियों को बनारसी बता कर बेचा रहा है। बड़े-बड़े ट्रेडर और शोरूम संचालक यह काम कर रहे हैं। हाजी हसीन अंसारी ने बताया कि सूरत की टेक्स्टाइल इंडस्ट्री मैकेनाइज्ड हो चली है। एक से एक मशीनें हैं वहां। यूं समझ लीजिए कि यहां एक पॉवरलूम पर एक दिन में दो या तीन साड़ी तैयार होती है तो वहां उतने ही समय में छह से सात साड़ियां बिन जाती हैं। सबसे बड़ी बात वहां ऐसी मशीनें बहुतायत में हैं जिन पर तैयार साड़ियां हैंडलूम और पावरलूम का फर्क मिटा देती हैं। वे हैंडलूम के नाम पर बेची जा रही हैं। हाजी ने कहा-‘मशीनों के चलते सूरत में लेबर कॉस्ट घटा, फिर बल्क प्रोडक्शन के सहारे उन्होंने मार्केट में कई सस्ते आप्शन झोंक रखे हैं। इस लिहाज से बनारस और पूर्वांचल के वीवर अभी काफी पीछे हैं और मार्केट में मार खा रहे हैं। बोले, इस गैप को भरने की जरूरत है।

कौन चाहेगा हफ्ते भर बैठना

शमीम मोहम्मद ने बताया कि हाल के दिनों में कारीगरों के पलायन से सिर्फ पीलीकोठी एरिया के करीब सौ पावरलूम ठंडे हो गए हैं। वजह? बोले, यहां हमारा तैयार माल बाया गृहस्था चौक या दूसरी जगह बैठे ट्रेडर के पास जाता है। वहां बिकेगा तो नया आर्डर आएगा। आर्डर के मुताबिक लूम चलेंगे। इधर बीच बाजार मंदा है। इसलिए कारीगरों को हफ्ते-दस दिनों तक बैठना पड़ रहा है। इस नाते वे सूरत-बेंगलुरु, कोलकाता, हैदराबाद पलायन कर रहे हैं।

आसमान चढ़ी धागा की कीमत

बनारसी बुनकरों के सामने दूसरी भी गंभीर दिक्कतें हैं। नसीम ने बताया कि एक माह के अंदर रेशमी धागा की कीमत में एक हजार रुपये से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है। इस समय प्रति किलो छह हजार रुपये से अधिक का रेट है। वहीं, बिजली की दरों से भी पावरलूम वीवर परेशान हैं। सब्सिडी अब रही नहीं। दो किलोवाट के कनेक्शन पर हर माह 850 रुपये फिक्स चार्ज देना ही है, आपका लूम चले या न चले। पहले 175 रुपय देने पड़ते थे। अब्दुल मतीन ने बताया कि इन दिक्कतों के चलते कई पावरलूम वाले हथकरघा की ओर लौट आए हैं।

परंपरागत ग्राहकों की ओर लौटें

चर्चाओं के बीच निफ्ट ट्रेनर मुख्तार अंसारी ने सवाल उठाया कि अमेरिकी टैरिफ को लेकर इतनी हायतौब क्यों मचनी चाहिए? क्यों हम अमेरिकी बाजार पर ही फोकस हैं? उनके मुताबिक, पिछले डेढ-दो दशक से भारतीय टेक्स्टाइल उद्योग से अफ्रीका और यूरोपीय देशों के परंपरागत ग्राहक दूर हुए हैं। मसलन-फ्रांस, जर्मनी, इटली और यूके जैसे देशों में भारत नहीं, बांग्लादेशी माल की पहुंच अधिक है। अफ्रीकी महाद्वीप के कई देशों में भारतीय माल जाता था। अब स्थित उलट है। उन्होंने कहा कि हमारा वस्त्रोद्योग ग्लोबल सप्लाई चेन से जुड़ा है। इसलिए नीति में बदलाव करने में दिक्कत भी नहीं होगी। अभी से दीर्घकालिक योजनाएं बनाने और उनके मुताबिक प्रयास करने की जरूरत है। हमें यूरोप की मंडियों समेत गैर अमेरिकी देशों के बाजार में अपनी भागीदारी बढ़ाने की कोशिश शुरू कर देनी चाहिए।

जीएसटी से तत्काल मुक्ति मिले

अनीसुर्रहमान, इश्तियाक अहमद का कहना था कि ट्रंप टैरिफ से हाय-हाय की नौबत न आए, इसके लिए बनारसी वस्त्रोद्योग को जीएसटी से तत्काल मुक्ति मिले। अभी वस्त्र उत्पादन पर 5 फीसदी, धागों और प्रॉसेसिंग आदि पर 18-18 फीसदी जीएसटी है। इससे मैन्युफैक्चरिंग और ऑपरेशनल कॉस्ट महंगी हो जाती है। दूसरा उपाय-बनारसी वस्त्रोद्योग एमएसएमई का महत्वपूर्ण हिस्सा है मगर योजनाओं के स्तर पर न पारदर्शिता है और न ही ईमानदारी। उन्होंने कहा कि आज एमएसएमई में पंजीकृत उद्यमियों से व्यापारी बहुत कम माल लेते हैं। इसमें भी 45 दिनों के अंदर माल बिक्री के भुगतान की बाध्यता बहुत बड़ी परेशानी बन गई है। विक्रेता पर पेनाल्टी लगा दी जाती है। उसका लाभ भी नहीं मिलता, उल्टे धंधा प्रभावित होता है। ऐसे परेशान करने वाले नियमों में बदलाव होना समय की मांग है।

आयकर में छूट, ड्यूटी ड्रा बैक की दरकार

मुख्तार अंसारी ने ध्यान दिलाया कि एमएसएमई में रजिस्टर्ड एक्सपोर्ट ओरएंटेड उद्यमियों को इनकम टैक्स से पूरी छूट मिलनी चाहिए। बताया कि पहले निर्यातकों को सिल्क उत्पाद पर 20 प्रतिशत, ऊनी वस्त्र पर 15 और सूती वस्त्रों पर 10 प्रतिशत ड्यूटी ड्रा बैक भी मिलता था। यह कुछ वर्षों से बंद कर दिया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार पंजीकृत उद्यमियों को 15 प्रतिशत मार्केटिंग डेवलपमेंट असिस्टेंस (एमडीए) उपलब्ध कराए ताकि ग्लोबल मार्केट में वे प्रतिस्पर्धा कर सकें। इसके अलावा एग्जिम पॉलिसी को सरल किया जाना चाहिए। जोर दिया कि उद्यमियों को नये बाजार ढूंढ़ने के लिए आर्थिक सहायता मिलनी चाहिए।

माल की गुणवत्ता सर्वोपरि

सभी मास्टर वीवर इस बात पर सहमत दिखे कि दुनिया के बाजार में मजबूती से टिके रहने के लिए माल की गुणवत्ता से समझौता नहीं होना चाहिए। बल्कि गुणवत्ता बनाए रखना खुद उद्यमियों का कर्तव्य है। हाजी हसन अंसारी ने कहा कि साड़ी, फैब्रिक हो या कोई ड्रेस मैटरियल, उनकी क्वालिटी जांच की प्रक्रिया बहुत लचर है। कोई भी धन खर्च कर अपने माल पर श्रेष्ठ गुणवत्ता का टैग लगवा सकता है। इस स्थिति को बदलने की जरूरत है। सरकार को एक सक्षम नोडल एजेंसी नियुक्त करनी चाहिए ताकि विश्वसनीयता और मानकों का स्तर बना रहे।

सुझाव-शिकायतें

1. ट्रंप टैरिफ की मार को देखते हुए केन्द्र सरकार घरेलू और अन्तरराष्ट्रीय बाजार के मुताबिक अपनी निर्यात नीति में दीर्घकालिक बदलाव करे। नीति निर्धारण सिर्फ नौकरशाहों के भरोसे न हो।

2. वस्त्रोद्योग को जीएसटी के सभी नियमों से तत्काल छूट मिले ताकि उत्पादन स्तर पर ही माल की कीमतें न बढ़ सकें।

3. एमएसएमई में पंजीकृत उद्यमियों को आयकर से छूट के साथ उन्हें उत्पादों के अनुसार ड्यूटी ड्रा बैक मिले।

4. एग्जिम पॉलिसी को सरल किया जाए। उद्यमियों को नए बाजार खोजने के लिए 15 प्रतिशत मार्केटिंग डेवलपमेंट असिस्टेंस (एमडीए) दिया जाए।

5. वस्त्रोद्योग से जुड़ी निर्यात नीति में बुनकर, ट्रेडर और निर्यातक को समान रूप से स्टेक होल्डर माना जाए। उस हिसाब से सहूलियत मिले।

शिकायतें

1. मौजूदा मार्केटिंग और निर्यात नीति के चलते बनारसी साड़ी उद्योग एवं उससे जुड़े बुनकर सूरत से ही पिछड़ते जा रहे हैं। अमेरिकी टैरिफ तो नई मार है।

2. पांच से 18-18 प्रतिशत तक जीएसटी की दरों और दूसरे प्रावधानों से बनारसी ट्रेडर और वीवर-दोनों समान रूप से प्रभावित होते जा रहे हैं। धंधा बढ़ नहीं पा रहा है।

3. आयकर में छूट और ड्यूटी ड्रा बैक खत्म कर देने से एमएसएमई में पंजीकृत वीवर-उद्यमियों की मुश्किलें बढ़ी हैं। व्यापार मंदा होने से लूमों की बंदी और कारीगरों का पलायन बढ़ा है।

4. सरकार नया मार्केट खोजने के लिए प्रोत्साहन नहीं देती। अन्तरराष्ट्रीय बाजार में अफ्रीका और यूरोपीय ग्राहकों से दूरी का नकारात्मक असर पड़ा है।

5. केन्द्र सरकार वीवर-मैन्युफैक्चरर, ट्रेडर और एक्सपोर्टर को अलग-अलग नजरिए से देखती है। इससे बुनकर ‘बेचारा बन गया है।

सुनें और गुनें

ट्रंप की टैरिफ से हायतौबा क्यों? बनारसी बुनकरों में इस आफत से निपटने की पूरी कूबत है। सरकार सही प्रोत्साहन नीति बनाए।

-मुख्तार अंसारी

वस्त्र उत्पादन पर 5 फीसदी, धागों और प्रॉसेसिंग आदि पर 18-18 फीसदी जीएसटी है। इससे कॉस्ट बढ़ जाती है।

-हाजी हसीन मोहम्मद

मौजूदा नीति के चलते बनारसी साड़ी उद्योग एवं बुनकर सूरत से ही पिछड़ते जा रहे हैं। ट्रंप टैरिफ तो नई मार है।

-शमीम मोहम्मद

केन्द्र सरकार वीवर-मैन्युफैक्चरर, ट्रेडर और एक्सपोर्टर को अलग-अलग नजरिए से देखती है। यह गलत है।

-नसीम मोहम्मद

बनारसी वस्त्रोद्योग एमएसएमई का महत्वपूर्ण हिस्सा है मगर योजनाओं के स्तर पर न पारदर्शिता है और न ही ईमानदारी।

-अनीसुर्रहमान अंसारी

उद्यमियों को नए बाजार खोजने के लिए 15 प्रतिशत मार्केटिंग डेवलपमेंट असिस्टेंस (एमडीए) दिया जाए।

-वसीम अहमद

एमएसएमई में रजिस्टर्ड एक्सपोर्ट ओरएंटेड उद्यमियों को इनकम टैक्स से छूट संग ड्यूटी ड्रा बैक की सुविधा मिलनी चाहिए।

-इश्तियाक अहमद

सूरत में अधिक काम के चलते हाल में अनेक कारीगर पलायन कर गए। सौ के आसपास लूम पीलीकोठी में बंद हो गए हैं।

-अब्दुल मतीन

सरकार उद्यमियों को 15 प्रतिशत मार्केटिंग डेवलपमेंट असिस्टेंस (एमडीए) दे ताकि वे दुनिया में प्रतिस्पर्धा कर सकें।

-तारीक अहमद

सिर्फ अमेरिका के बजाय यूरोप और अफ्रीका की मंडियों पर फोकस होना पड़ेगा, तभी टेक्स्टाइल इंडस्ट्रीज बचेगी।

-उस्मान अली

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